Monday, March 18, 2013
21st World book fair Pragti Maidan Delhi........my book "Dhyan release event......
21st World book fair Pragti Maidan
Delhi........my book "Dhyan release
my hearty thanks to
Mr.Pankaj
TrivediJi.............without him this was
not possible...........
लोकार्पण ............
Delhi........my book "Dhyan release
my hearty thanks to
Mr.Pankaj
TrivediJi.............without him this was
not possible...........
@ Bhavna prakashan 'world book fair
'Pragti Maidan ' Delhi ..
अंतररास्ट्रीय पुस्तक मेला
नई दिल्ली
१०-०२-२०१३ — at World Book Fair, Pragati
मेरे देव,
मैंने कभी भी ख़ुशी से ,
ख़ुशी की ओर नहीं देखा ,
अनचाहे से दुःख से ही खुद को ,
बस दुखी ही होते देखा ,
मुझे मालूम है कि
तुम्हारा इंतज़ार
करना ही है
इसलिए कभी भी
बदलते मौसमों
की ओर नहीं देखा
2-
पति के जन्म-दिवस पर
मेरे ....
अगम ही
परमात्मा का
सर्वोच्च मंदिर हैं,
इसलिए
साक्षात् देवता
की पूजा करना
मुझे सदैव ही
भला लगता है
.................तुम्हारी
जियो जी भर के
जियो जी भर के ............क्योंकि
...दमित इच्छाओं से ग्रसित मन कभी भी अपने
कर्तव्यों
की इतिश्री सुखपूर्वक नहीं कर सकता क्योंकि एक
प्रसन्न व् संतुष्ट मन व् तन ही खुशियाँ बिखेर
सकता है हंसने के लिए पैसा खर्च नहीं होता , ये तो
इश्वर प्रदत्त अनमोल उपहार है ,
हँसी गरीबी-अमीरी या शिक्षित- अशिक्षित की मोहताज़
नहीं होती
हँसी तो निर्मल ह्रदय की उन्मुक्त भाषा है ,भोले मन
की परिभाषा है ....
...........
अब तो ज़िन्दगी से बस यही शिक्षा ली है .....
Dr.ShaliniAgam
अपने निर्णय शांत होकर लें
1- HELLO INDIA
अपने निर्णय शांत होकर लें )
नमस्ते भारतवर्ष ,
सफलता जीवन में सभी चाहतें हैं ,कोशिश भी करतें
हैं ,प़र कुछ बातों को व्यवहार में ढाल लिया जाये
तो काम आसान हो जाता है जैसे-
१- जब आपका मन पूरी तरह स्थिर हो तभी कोई
अहम् फैसला लें .जल्दबाजी या गुस्से में लिया कोई
भी फैसला कभी ठीक नहीं होता .जब आपका
मस्तिष्क -रुपी घोडा आपके काबू में हो तभी कोई
महत्वपूर्ण कार्य को अंजाम द्दें .इस बात का सदा
ध्यान रखें कि दुखी अथवा उलझन पूर्ण -स्तिथि में
किसी भी समस्या का निर्णय नहीं लिया जा सकता
२-यदि आपका मानसिक संतुलन सही है ,तो आप
किसी भी शत्रु को स्वं प़र आक्रमण नहीं करने देंगें
,जब भी कभी निराशा में हों ,अवसाद से घिरें हों
,उदासीन हों तब कभी भी कोई निर्णय न लें बल्कि
प्रयास करें कि मन में अवसाद और निराशा जैसे
विकारों को आने ही न दिया जाये .और अगर कभी
मन विचलित हो भी तो उसे अपने मन-मस्तिष्क
प़र हावी न होने दें क्योंकि -सांसारिक सफलताओं
में मानसिक संतुलन का बहुत महत्त्व है सदैव
शांत मन से हर कार्य के सकारात्मक व्
नकारात्मक दोनों पहलुओं प़र सोच विचार करके
ही निर्णय लें .
३-जीवन में उत्साह होना बहुत ज़रूरी है और वो
अपने मन से ही पैदा होता है,उत्साह हीनता से
आपकी निर्णय शक्ति हीन और क्षीण हो जाती है,
भय के दबाब में आकर व्यक्ति प्राय: अपनी
कार्यक्षमता प़र अविश्वास करके
मूर्खतापूर्ण कार्य करने लगता है .इसलिए जब भी
आप यह जानने में असमर्थ हो जाएँ कि आपको
क्या करना है,किस रास्ते जाना है,तो शांत होकर
विचार करें
४- अस्थिर न हों ,परमशक्ति प़र विश्वास रखें, स्वं
प़र विश्वास रखें , शांत और स्थिर होकर बैठें
,मनन करें -आपको रास्ता मिल जायेगा .
५-जब मन में भय अथवा चिंता घिरी रहती है तो
सारी मानसिक व् शारीरिक शक्तियों का ह्रास होने
लगता है . उस समय आप एकाग्र चित्त होकर
किसी भी बात का सही निर्णय नहीं कर
पाते.इसलिए पहले निर्णय लेने के लिए मन को
शांत करें .
६- सारी चिंताओं व् उलझनों को एक बार कोशिश
कर झटक कर मन से बाहर फेंके ,शांत भाव से
अपने कक्ष में बैठें ,अपने मन से आँखे बंद कर बात
करना आरम्भ करें , तत्पश्चात अपने मस्तिष्क
प़र ऐसा अधिकार जमाये,उसे आदेश दे कि ,"ओ
मेरे मन केवल कुछ समय के लिए ही सही तू चिंता
मुक्त हो जा,भविष्य में क्या लिखा है तू नहीं
जानता ,परेशानी छोड़ ,मेरा सच्चा मार्गदर्शक बन ,
तू अकेला नहीं है ,मैं और मेरी सकारात्मक सोच
तेरे साथ है ,तुझे वही मार्ग चुनना है जो मेरे हित में
है, बस थोड़ी देर के लिए शांत होकर हर चिंता व्
दुविधा को त्याग दे फिर देख तू और मैं मिलकर
कितनी सफलता अर्जित करेंगे .रे मेरे मन तू मेरी
कमजोरी नहीं मेरी ताक़त बन ,अगर मन प्यार से
न माने फिर भी चिंता व् उलझन कि ही स्तिथि में
रहे तो उसे फटकार लगा कर कहें " आज तुझे मेरा
कहना मानना ही होगा जो परेशानी आई है उसको
धैर्य के साथ टालना ही होगा और निर्णय मेरे ही
पक्ष में देना होगा "............................. .....
७- अस्थिर मन को डाँट लगाकर उसे अपने हिसाब
से चलने का आदेश दें ,जिस प्रकार घोड़े की लगाम
को कसकर और चाबुक लगाकार घोड़े को सही
दिशा में चलने प़र विवश किया जाता है .
द्वारा
अपने निर्णय शांत होकर लें )
नमस्ते भारतवर्ष ,
सफलता जीवन में सभी चाहतें हैं ,कोशिश भी करतें
हैं ,प़र कुछ बातों को व्यवहार में ढाल लिया जाये
तो काम आसान हो जाता है जैसे-
१- जब आपका मन पूरी तरह स्थिर हो तभी कोई
अहम् फैसला लें .जल्दबाजी या गुस्से में लिया कोई
भी फैसला कभी ठीक नहीं होता .जब आपका
मस्तिष्क -रुपी घोडा आपके काबू में हो तभी कोई
महत्वपूर्ण कार्य को अंजाम द्दें .इस बात का सदा
ध्यान रखें कि दुखी अथवा उलझन पूर्ण -स्तिथि में
किसी भी समस्या का निर्णय नहीं लिया जा सकता
२-यदि आपका मानसिक संतुलन सही है ,तो आप
किसी भी शत्रु को स्वं प़र आक्रमण नहीं करने देंगें
,जब भी कभी निराशा में हों ,अवसाद से घिरें हों
,उदासीन हों तब कभी भी कोई निर्णय न लें बल्कि
प्रयास करें कि मन में अवसाद और निराशा जैसे
विकारों को आने ही न दिया जाये .और अगर कभी
मन विचलित हो भी तो उसे अपने मन-मस्तिष्क
प़र हावी न होने दें क्योंकि -सांसारिक सफलताओं
में मानसिक संतुलन का बहुत महत्त्व है सदैव
शांत मन से हर कार्य के सकारात्मक व्
नकारात्मक दोनों पहलुओं प़र सोच विचार करके
ही निर्णय लें .
३-जीवन में उत्साह होना बहुत ज़रूरी है और वो
अपने मन से ही पैदा होता है,उत्साह हीनता से
आपकी निर्णय शक्ति हीन और क्षीण हो जाती है,
भय के दबाब में आकर व्यक्ति प्राय: अपनी
कार्यक्षमता प़र अविश्वास करके
मूर्खतापूर्ण कार्य करने लगता है .इसलिए जब भी
आप यह जानने में असमर्थ हो जाएँ कि आपको
क्या करना है,किस रास्ते जाना है,तो शांत होकर
विचार करें
४- अस्थिर न हों ,परमशक्ति प़र विश्वास रखें, स्वं
प़र विश्वास रखें , शांत और स्थिर होकर बैठें
,मनन करें -आपको रास्ता मिल जायेगा .
५-जब मन में भय अथवा चिंता घिरी रहती है तो
सारी मानसिक व् शारीरिक शक्तियों का ह्रास होने
लगता है . उस समय आप एकाग्र चित्त होकर
किसी भी बात का सही निर्णय नहीं कर
पाते.इसलिए पहले निर्णय लेने के लिए मन को
शांत करें .
६- सारी चिंताओं व् उलझनों को एक बार कोशिश
कर झटक कर मन से बाहर फेंके ,शांत भाव से
अपने कक्ष में बैठें ,अपने मन से आँखे बंद कर बात
करना आरम्भ करें , तत्पश्चात अपने मस्तिष्क
प़र ऐसा अधिकार जमाये,उसे आदेश दे कि ,"ओ
मेरे मन केवल कुछ समय के लिए ही सही तू चिंता
मुक्त हो जा,भविष्य में क्या लिखा है तू नहीं
जानता ,परेशानी छोड़ ,मेरा सच्चा मार्गदर्शक बन ,
तू अकेला नहीं है ,मैं और मेरी सकारात्मक सोच
तेरे साथ है ,तुझे वही मार्ग चुनना है जो मेरे हित में
है, बस थोड़ी देर के लिए शांत होकर हर चिंता व्
दुविधा को त्याग दे फिर देख तू और मैं मिलकर
कितनी सफलता अर्जित करेंगे .रे मेरे मन तू मेरी
कमजोरी नहीं मेरी ताक़त बन ,अगर मन प्यार से
न माने फिर भी चिंता व् उलझन कि ही स्तिथि में
रहे तो उसे फटकार लगा कर कहें " आज तुझे मेरा
कहना मानना ही होगा जो परेशानी आई है उसको
धैर्य के साथ टालना ही होगा और निर्णय मेरे ही
पक्ष में देना होगा ".............................
७- अस्थिर मन को डाँट लगाकर उसे अपने हिसाब
से चलने का आदेश दें ,जिस प्रकार घोड़े की लगाम
को कसकर और चाबुक लगाकार घोड़े को सही
दिशा में चलने प़र विवश किया जाता है .
द्वारा
डॉ स्वीट एंजिल
अपनी मनोकामना पूरी कैसे करें
अपनी मनोकामना पूरी कैसे करें
नमस्ते भारतवर्ष
अपनी मनोकामना पूरी कैसे करें
चलिए मैं आपको बतातीं हूँ .
हमें अपने जीवन से क्या चाहिए .......?
शक्ति एवं बुद्धि ,शोर्य ,तेज,ओज,शांति,धन-संपत्ति ,उत्तम स्वास्थ्य ,दाम्पत्य जीवन में मधुरता ,सभी दिलों में प्यार का प्रसार,कार्य-क्षमता में वृद्धि , मानसिक शांति की प्रचुरता, स्वम् को
समझने की शक्ति इत्यादि-इत्यादि ....
हृदय की गहराईयों में हमारी आकान्षाएं क्या हैं ,हम कैसे लोग चाहते हैं ,कैसी परिस्तिथियों को हम पसंद करते हैं,क्या-क्या सुविधाएँ जीवन में चाहियें .इन सबका मूल्यांकन करके चयन
करें और प्राथमिकता दें उस बात को ,उस मनोकामना को ..........जो सबसे तीव्र है और तब उसको पूर्ण करने का संकल्प लें .
मनोकामना सिद्ध करने के लिए चार चरणों से निकलना पड़ता है ................
प्रथम चरण
सर्वप्रथम अपने दृष्टिकोण को सकारात्मक बनाइये .अपने अन्दर की नकारात्मकता को दूर निकाल फेंकिये
भरपूर आत्मविश्वास के साथ जीवन -समर में विजय की भावना के साथ खड़े हो जाइये .
दृढ निश्चय के साथ अपनी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए मनोकामना -सिद्ध ध्यान के लिए तैयार हो जाइये .
द्धितीय चरण
प्राथमिकता सबसे आवश्यक मनोकामना को दें अपना लक्ष्य चुनें जो वस्तु या परिस्थिती आप चाहतें हैं उसे स्पष्ट रूप दें ,
उसकी मानसिक कल्पना करें ,ऐसे मनन करें या जागी आंखों से अपने लक्ष्य को इस प्रकार निहारें कि लगे कि सभी कुछ आपके अनुसार
घटित हो रहा है ........
उदाहरण के लिए ...अगर आप छरहरा व् आकर्षक व्यक्तित्व चाहतें है तो स्वंय को उसी स्तिथि में विचारें कि आप बेहद स्वस्थ ,सुंदर व् आकर्षक बदन के स्वामी अथवा स्वामिनी हैं आप से अधिक आकर्षक कोई नहीं.
अगर आप मानसिक तनावों से मुक्त होना चाहतें हैं तो अनुभव करें कि "मुझे किसी प्रकार की कोई चिंता नहीं है ","मैं विश्रामावस्था में हूँ ",
"शांत व् प्रसन्न-चित्त हूँ ". इसी प्रकार घर चाहतें है तो सुंदर , आरामदायक घर की कल्पना कीजिये ......"आप आराम कुर्सी प़र बैठे है ,सुंदर व् आकर्षक घर है चारो ओर शांति व् हरियाली है ...."
कष्ट दूर करना है तो उस रोग से मुक्त होने की कल्पना कीजिये और स्वंय को पूर्ण रूप से स्वस्थ अनुभव अनुभव करने की मनोकामना को बार-बार दोहराते हुए
कल्पना करें कि आपके शरीर में १६ साल जैसे बालक के समान उर्जा व् शक्ति का संचार हो रहा है ,आप रोग मुक्त व् बेहद शक्तिवान हैं .................अपनी कोई भी इच्छा जो आप पूरी होते देखना चाहतें हैं उसको मान कर चलिए कि वह पूरी हो रही है स्वंय को सकारात्मक सोच में ढालिए .
परछाईं के पीछे मत भागो..........
.
परछाईं के पीछे मत भागो...............
ये आपको केवल अंत-हीन
कठिनाइयों व् परेशानियों में
ही डालेगी
................असमंजस की ही स्तिथियाँ
पैदा होंगी..........
राह भटकाने वालीं होंगी.........इसलिए सच्चाई का ही
सामना करो ............जो हकीक़त है ........उसे ही
अपनाने का प्रयास करो ...
एक बार जब पूरी सच्चाई और इमानदारी के साथ
असल को पा लोगे तो परछाईयां तो पीछे-पीछे भागेंगी .........
कभी आईने में गौर से देखो ....क्या अपना प्रतिबिंब
पकड़ सकते हो ? नहीं ना! अपनी ही इमेज को छूते
हो तो आईने में भी प्रतिबिम्ब को पकड़ा हुआ पाते हो
यही ज़िन्दगी में भी होता है .......
,तेरी भोली सी मासूम मुस्कराहट पे
, ,तेरी भोली सी मासूम मुस्कराहट पे
दुनिया लुटाने को जी चाहता है,
फूल की पंखुरिया खिल -खिल जाती हैं
ओस की बूंदों सी इस मुस्कराहट पे
.................................................
बेकरारी का राज खुला भरी महफ़िल में ,
सिमट गयी मैं शर्मो -हया के दामन में,
क्या छुपाऊँ अब राजे-दिल अपना ,
कम्बक्त ने धोखा दिया भरी महफ़िल में
......................................................
जानता है ज़माना तो जानने दो
अब किसी कि परवाह नहीं
तेरे गीतों में गर बसतीं हूँ मैं
इसमें मेरी कोई खता नहीं
...............................................
तुम्हे छू कर आ रही है पवन .........
मुझे गुदगुदा रही है पवन
कि जैसे तुम यहीं हो ..........
मेरे पास ही कहीं हो ......
करना है तो पहले खुद को प्यार करो
नमस्ते भारतवर्ष,
करना है तो पहले खुद को प्यार करो .
करना है तो पहले खुद को प्यार करो ............. खुद का ध्यान रखो ........... तभी आप दूसरों को प्यार और सुरक्षा दे पाएंगे......अपने -आप से नाराज व्यक्ति कभी किसी को ख़ुशी नहीं दे सकता ....चाहो तो आजमा कर देख लो ..........
बनना है तो पहले अपने आप के सच्चे मित्र 'बेस्ट फ्रेंड ' बनो ....तभी आप किसी के सच्चे और अच्छे मित्र बन पाएंगे ............
भरोसा करना है तो पहले खुद की आत्मशक्ति प़र भरोसा करो ...........जिसमे पर्वतों को हिलाने की भी शक्ति है ......दिशाओं को बदलने का भी हुनर है.....
प्यार लेना है तो पहले अपनी बाँहे पसारना शुरू कर दो .......... ये पक्की बात है कि जो बाँटोगे वही मिलेगा .......
कभी भी ये ख़याल गलती से भी ना आये कि आप बेकार है....
कभी भी ये ख़याल गलती से भी ना आये कि आप बेकार है.....आपकी कोई ज़रुरत नहीं ....................या आप किसी लायक नहीं............................... आपको मालूम ही नहीं कि आप इस दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण इंसान हो ...................गौर से देखो तो तुम्हारी ज़रुरत हल-पल किसी ना किसी को है ........अगर आपकी वजह से किसी के चेहरे प़र पल -भर के लिए भी मुस्कुराहट आ जाती है तो आप बेशकीमती हैं क्योंकि किसी का भी दिल दुख देना बहुत आसान कार्य है प़र .....रोते को हँसा देना बेहद मुश्किल...................आपकी उपस्तिथि किसी का दिन बना सकती है...............या किसी के लिए आशीर्वाद स्वरुप है............बस आवश्यकता है तो आपको स्वं को श्रेष्ठ समझने की..................क्योंकि ये तो तय है कि इस दुनिया में कहीं ना कहीं एक बंदा तो ऐसा ज़रूर है जिसे आपकी बहुत ज़रुरत है..
जियो जी भर के
जियो जी भर के ............क्योंकि
...दमित इच्छाओं से ग्रसित मन कभी भी अपने कर्तव्यों
की इतिश्री सुखपूर्वक नहीं कर सकता क्योंकि एक
प्रसन्न व् संतुष्ट मन व् तन ही खुशियाँ बिखेर सकता है
...........
अब तो ज़िन्दगी से बस यही शिक्षा ली है .....
डॉ शालिनी अगम
-कुछ देर सिमट कर जी लूं मैं,सौंदर्य का सार,(स्व:)
1-कुछ देर सिमट कर जी लूं मैं,
कुछ देर सिमट कर जी लूं मैं ,
तुम्हारे मखमली आगोश में ,
कुछ देर मचल कर अंगड़ाई लूं मैं,
महकती गर्म साँसों के घेरे में,
सहमी तर तराई इस ख़ुशी को ,
समेट लो अपने बाजुओं में ,
टिकी रहे देर तक मुझ प़र,
भुला दे,जो मुझसे मुझको,
मादकता में बहके हम दोनों,
खों जाएँ एक-दूसरे में.....................
डॉ.स्वीट एंजिल
2- (स्व:)
कौशार्य की विस्मृत कोमलता लौट आने को है,
बचपन के उमंग , उल्लास ,स्वच्छंदता ,गीत-नाद ,
उत्सव------ सब कुछ लुप्त हुए थे कभी ,
प़र साजन के प्रेम में भीगी ,
चपल खंजन-सी ,फुदकती,चहकती ,
नवयुवती अलसाने को है!
2002
DrSweet Angel
सौंदर्य का सार
सौंदर्य का सार
सौंदर्य ........................................
भला लगता है नेत्रों को,
सुखद लगता है स्पर्श से,
सम्पूर्ण विश्व एक अथाह सागर ,
जिसमें भरा है सौंदर्य अपार ,
हर चर-अचर हर प्राणी ,
सौंदर्य को पूजता है बारम्बार !
सौंदर्य का कोष है पृथ्वी-लोक ,
सौंदर्य का भण्डार है देव- लोक,
प्रत्येक पूजित-अपूजित व्यक्ति,
कल्पना करता है तो केवल ,
सौंदर्य को पाने की ,
परन्तु......................
ऐसे कितने मिलते हैं यंहा ,
जो रूपता-कुरूपता को,
समान पलड़े प़र तोलते हैं ,
जो चाहतें हैं मानव-मात्र को
मानते हैं दोनों को समान?
डॉ.शालिनीअगम
1991
3:40am
आलिंगन कर लूं
जीवन का ?
तो क्या छोड़ दूं ?
अपनी सीमाओं को,
क्षुद्रताओं कों???????????
और वरण कर लूं असीम को,
क्या ये सारा आकाश मेरा है,?
और पृथ्वी के सारे सुख मेरे हैं?
क्या उठूं और आलिंगन कर लूं
जीवन का ??????????
डॉ. शालिनिअगम
5-
काश! उत्सव आ जाए
काश! उत्सव आ जाए ,
दीये ही दीये जल जाएँ ,
फूल ही फूल खिल जाएँ,
जो मैने जाना, मैंने जिया ,
मैंने पहचाना .........
कुछ न मिला...................
काश!
भीतर मेरी आत्मा का स्नान हो जाये ,
भीतर में स्वच्छ हो जाऊं ,
भीतर में आनंदमग्न हो जाऊं........
डॉ.स्वीट एंजिल
"BE YOURSELF because You aRe WONDERFUL The WAY YoU ARE'' ....
It is easier to criticize, but DIFFICULT TO IMPROVE!
- Hide quoted text -
JUDGE YOURSELF! YOU ARE YOUR BEST JUDGE!!!
किसी को उपदेश देना उसकी गलतियाँ निकाल देना बहुत आसान होता है ,प़र दूसरों की गलती को सुधार देना या दूसरों के कार्य को सुधारने में उनकी मदद करना बहुत कठिन होता है .........
में आपको एक घटना बताती हूँ , ध्यान से पढेंगे तो पाएंगे की इस घटना के सभी चरित्र हमें अपने आस-पास ही मिल जायेंगे .
एक बहुत ही मेहनती व् गुणी युवक था ,अच्छी चित्रकारी कर लेता था ,उसके गुरु को उस प़र पूरा विश्वास था की ये नव-युवक एक दिन देश का नाम रौशन करेगा ,
देश-विदेशों में इसकी ख्याति फैलेगी , परन्तु वह नव -युवक स्वं प़र भरोसा कम करता था .उसमे आत्मविश्वास की बड़ी कमी थी ,जिस कारण वो जितनी उन्नति कर सकता था नहीं कर पा रहा था , उसे हमेशा दूसरों की तारीफ का इंतज़ार रहता था ,अगर किसी ने तारीफ की तो उसे अपना काम अच्छा लगता था और अगर कोई उसके किसी भी कार्य में नुख्स निकाल देता था तो उसका मनोबल टूट जाता था ,परेशान हो जाता था ,और किसी भी कार्य को करने से पहले अपना मन बना लेता था की अमुक कार्य जो वो करने जा रहा है या कर रहा है वो शायद अच्छा ना हो ,उसकी इस आदत से उसके गुरु भी परेशान ही चुके थे .
एक दिन उसके गुरु ने उससे कहा कि प्रशंसा पाने का इतना लोभ अच्छा नहीं,ना ही दूसरों की पसंद ना पसंद प़र निर्भर रहना ठीक है , खुद प़र भरोसा करो ,पहचानो अपनी योग्यता को, तभी जिंदगी में कुछ हासिल कर पाओगे ".प़र वह युवक नहीं समझा .
दूसरे दिन उसने एक {आयल पेंटिंग} तैल चित्र बनाना शुरू किया .बहुत उत्तम कलाकारी की , सुंदर रंग भरे , और ४-५ दिन के परिश्रम के पश्चात् एक खूबसूरत चित्र बनकर तैयार हो गया .
वह अपने चित्र को लेकर एक तंग गली के व्यस्त मोड़ प़र पहुंचा जो एक ओर से बंद थी , वहां ले जाकर उसने अपना चित्र रख दिया और साथ में एक तख्ती भी रख दी ,एक सूचना नोट के साथ कि " में एक नया -नया चित्रकार हूँ ,मेरे हाथ में अभी हुनर भी कम है , जिस भी व्यक्ति को मेरे चित्र में कही भी कोई गलती नज़र आ रही हो वो उस स्थान प़र एक 'x' चिन्हित कर दे " नीचे एक ब्रुश और रंग भी रख दिया और वहां से चला आया .
उसी दिन सायंकाल को वह अपनी कलाकृति को देखने पहुंचा तो अवाक् रह गया ,पूरा चित्र अनगिनत 'x' crosses से भरा पड़ा था ,और कुछ लोगों ने कटु आलोचनात्मक टिप्पणियां भी की थी . चित्रकार यह देख कर बहुत दुखी और निराश हुआ ,भागा-भागा अपने गुरु के पास पहुंचा और फफक कर रो पड़ा , आंसुओं से उसके गाल भीग गए ' मैं किसी काम का नहीं गुरूजी लोगों ने मुझे पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया है ,मुझे मर जाना चाहिए ,मुझे जीने का कोई अधिकार नहीं. मैं आपकी दी हुई शिक्षा का कोई मान न रख सका " .
गुरु ने उस सांत्वना देते हुए कहा कि जो तुम्हे ठीक लगा तुमने किया अब क्या मेरी एक बात मानोगे ....ध्यान से सुनो .'कल से एक बिलकुल वैसा ही दूसरा चित्र बनाओ ,उसी कि अनुकृति ,कोई फर्क मत करना और फिर जैसा मैं कहूँ करो .
युवा चित्रकार अपने गुरु के कहने प़र फिर से दूसरा चित्र बनाने में जुट गया और कुछ दिन बाद हुबहू वैसा ही चित्र बनकर तैयार हो गया ,वो गुरु के पास पहुंचा ..
चित्र देखकर गुरु मुस्कुराये और बोले बिना कोई प्रश्न किये मेरे साथ आओ ,और जैसा बोलूं अनुसरण करो ,गुरु अपने शिष्य के साथ उसके चित्र को लेकर उसी गली मेंपहुंचे और बिलकुल उसी पहले वाले स्थान प़र चित्र रख दिया ,और साथ में एक तख्ती भी ये लिख कर रख दी ..." महानुभाव , जिस भी किसी व्यक्ति को मेरे चित्र में कोई त्रुटी दृष्टिगत होती है तो कृपया नीचे रखे ब्रुश और रंगों से भरे बॉक्स कि मदद से इसे सही करने का कष्ट करें ".........
दोनों वहां से चले आये और शाम होने की प्रतीक्षा करने लगे ...... शाम को वहां पहुँच कर गुरु और शिष्य दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा .उस चित्र प़र ना तो एक भी 'x' का चिन्ह था ना ही किसी ने कोई भी गलती सुधारने का प्रयास किया था , रंग और ब्रुश अनछुए ही पड़े थे ,अब उस व्यक्ति की समझ में सब कुछ आ गया था . .......
"BE YOURSELF because You aRe WONDERFUL The WAY YoU ARE'' ....
उसने चित्र वहीँ पड़े रहने दिया और अगले दिन फिर से जाकर देखा प़र उस प़र कोई निशान नहीं था ..इस तरह लगभग एक महीने तक वो चित्र वही रखा रहा ,प़र किसी भी शख्स ने उस छेड़ा नहीं ..चित्रकार अब बहुत खुश था.......................... अपने निर्णायक स्वं बनो और खुद प़र भरोसा रखो ....
Moral of the story:
It is easier to criticize, but DIFFICULT TO IMPROVE!
So don't get carried away or judge yourself by someone elses criticism and feel depressed...
डॉ.स्वीट एंजिल
कोई "सम वन स्पेशल ", "कोई विशेष प्रिय ' आपके जीवन में प्रवेश पा चुका है ..........
नमस्ते भारतवर्ष,
जिंदगी का सबसे मुश्किल दौर वो नहीं होता,
जब कोई
आपको समझता नहीं है ,
बल्कि जीवनकष्ट-कर तब होता है,
जब हम खुद को नहीं समझते ...........
हमें क्या चाहिए ,
हमें क्या पाना है,
हमें क्या अच्छा लगता है,
किसके साथ हमें परेशानी होती है या
किसकेसाथ पल दो पल में भी
हम मुस्करा पड़ते है
और सारा -सारा दिन
ललक रहती है उससे मिलने की
उसका मिलना जीवन में नई चेतना का संचार कर देता है
हर ओर बस खूबसूरती दिखाई पड़ती है
तब मन गुनगुनाने को करता है
चेहरे प़र दबी सी मुस्कुराहट रहती है
जो बार-बार खिलखिला कर
बाहर आने को तैयार रहती है
जब हम खुद अनुभव करतेहैं
प़र यकीन नहीं करते कि
यही प्यार है..................
चहेरे प़र लाली आने लगती है
आकर्षण बढ़ रहा है
मन सुंदर ,तन जवां हो रहा है
कितनी उमंग है जीवन में
एक नयी ख़ुशी व् उत्साह से
भर जाता है सर्वस्व
कितना ज्यादा किर्या शील हो जाते है
कल तक जो काम बोझ सा था
कल तक जहाँ मन रमता न था
उसकी छवि की आस में
उसे पाने की चाह में
वही दैनिक किर्या -कलाप
मजे-मजे में कब पूरे होने
लगते हैं पता ही नहीं चलता ..............
तब समझ लेना चाहिए कि
कोई "सम वन स्पेशल ",
"कोई विशेष प्रिय '
आपके जीवन में प्रवेश पा चुका है ..........
प्रथम -मिलन की इस बेला पर
प्रथम -मिलन की इस बेला पर
अश्रु -विगलित नेत्रों से जब
देखा उन्होंने पहली बार
मन में कुछ हुआ था तब
आशायें थी जागी हज़ार
समर्पण की चाह उठी
न्योछावर की इच्छा जगी
जीवन-साथी बना लो मुझको
वरुण तन-मन क्षण-क्षण
मन के तारों की लय से
उर तरंगित होने लगे
मूक -दृष्टि से मैं और वो
प्रेम -गीत भी गाने लगे
त्याग-जल के सिंचन से
प्रेम -बेल विकसित होगी
एक -दुसरे के बनकर ही
जीवन -समर में जय होगी
Value Yourself....................
नमस्ते भारतवर्ष,
कभी भी ये ख़याल गलती से भी ना आये कि आप बेकार है.....आपकी कोई ज़रुरत नहीं ....................या आप किसी लायक नहीं............................... आपको मालूम ही नहीं कि आप इस दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण इंसान हो ...................गौर से देखो तो तुम्हारी ज़रुरत हल-पल किसी ना किसी को है ........अगर आपकी वजह से किसी के चेहरे प़र पल -भर के लिए भी मुस्कुराहट आ जाती है तो आप बेशकीमती हैं क्योंकि किसी का भी दिल दुख देना बहुत आसान कार्य है प़र .....रोते को हँसा देना बेहद मुश्किल...................आपकी उपस्तिथि किसी का दिन बना सकती है...............या किसी के लिए आशीर्वाद स्वरुप है............बस आवश्यकता है तो आपको स्वं को श्रेष्ठ समझने की..................क्योंकि ये तो तय है कि इस दुनिया में कहीं ना कहीं एक बंदा तो ऐसा ज़रूर है जिसे आपकी बहुत ज़रुरत है.......................Sometimes your existence gives hope to one person,Your smile can brighten up someone's day,Your presence can be a blessing to others,So Value Yourself....................
Dr.Shalini Agam अपनी खुशियाँ अपने हाथ
नमस्ते भारतवर्ष ,
चौखट के उस पार खड़ी ख़ुशी ने
फुसफुसा के कहा --------
मैं तो कबसे खड़ी हूँ इंतजार में
कि-कब द्वार खुले
और मैं अन्दर दाखिल हूँ
मगर ----!!!
फुसफुसा के कहा --------
मैं तो कबसे खड़ी हूँ इंतजार में
कि-कब द्वार खुले
और मैं अन्दर दाखिल हूँ
मगर ----!!!
तुमको न आना था ......और न आये .......द्वार खोलने
तुमसे तो अच्छी वो मासूम बच्ची है ज़रा सा मुस्कुरा क्या दी दौड़ कर मेरे पीछे -पीछे भाग आती है ......
और जब वो खुली बांहों से मेरा स्वागत करती है तो मैं ही कहाँ पीछे रहने वाली हूँ .........लिपट जाती हूँ उससे .....और वो दु :ख है न .... चिढ़कर कर भाग जाता है ...
ही-ही-ही--
ही-ही- ..........जलनखोर
कहीं का ........फिर मैं और वो मासूम कली खिल-खिलातें हैं अपनी जीत पर ....
तुम सोचते हो की मैं आऊँ तो मुस्कुराओ तुम .........पर मैं कहती हूँ कि मुकुराओं तो आऊं मैं पास तुम्हारे .............क्योंकि ख़ुशी हूँ मैं ......भई सी बात है ... मेरा तो
जो स्वागत
करता है,मेरा आदर करता है,मुझे अपने जीवन में शामिल करता है .....उसके पास तो मैं दौड़-दौड़ कर आती हूँ ..............पर जो मेरे पास होते हुए भी अपनी ख़ुशी न
देख
दूसरों की खुशियों से दुखी होता है .तो .....फिर तो मैं वहां अपने सौतेले भाई "आंसू" को भेज देती हूँ .........
खुशियों को जियो ,उनका स्वागत करो, अपने से नीचे वाले को देख
कर संतोष करो कि उसकी जगह होते तो क्या करते ..दुःख
आतें हैं .........दुःख चले जातें हैं .......दोनों द्वार खोल कर रखो
........कि अगर कोई परेशानी ज़िन्दगी के भीतर दाखिल हो भी
गयी तो
शीघ्र ही पिछले रास्ते से ज़िन्दगी से बाहर खदेड़ देना ही असली
जांबाजी है ..............
खुशियों की न कोई परिभाषा है न कोई तोल-मोल ...........बस
महसूस करने की बात है ..........क्योंकि खुशियों के पास क्या ,
क्यों,किसके लिए,किसके पास,कौनसी,कहाँ ,जैसे पैमाने नहीं होते
.............खुशियाँ नहीं हैं अभी ......तो क्या उसके सपने तो हैं
...............अरे हम वो सपने इतने दिल से देखेंगे ............इतने
करीब से महसूस करेंगे की पूरी सृष्टि उन सपनो को पूरा करने में
जुट जाएगी ............. हमारी जिद के आगे उसे झुकना ही पड़ेगा
..........क्योंकि वो अपरम्पार ,वो परम सृष्टि भी मजबूर जो
जाएगी हमारे हिस्से की खुशियाँ हमें लौटाने को
.............और हमारी खुशियों की जिद के आगे उस असीम सत्ता
को घुटने टेकने ही पड़ते हैं ........फिर जो ऊपर से रिम-झिम
खुशियों की बरसात होगी ........कभी अजमा कर देखिये
.......उसमे सराबोर होकर नाचने न लग जाएँ तो कहना ........
अब से हर पल ........हर घडी ..........हर स्वप्न (जागती आँखों
से ही सही) बस यही कि मैं खुश हूँ .......दर्पण देखें तो मुस्कुराते
हुए .......किसी से भी बात करें तो मुस्कुराते हुए ............अकेले
हों तो भी खुद से बातें करें ......की अरे यार आज तो मैं बहुत ही
खुश हूँ .........बार-बार बस एक ही रट कि "मैं इस दुनिया का
सबसे खुश प्राणी हूँ ........फिर देखिये कमाल ............खुशियाँ
झर् -झराती हुई आपकी झोली में गिरने लगेंगी .........
शुभकामना के साथ ...........सदा हँसने -मुस्कुराने का वादा
आप
सबसे
लेते हुए .......
डॉ .शालिनी अगम
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