नींद की सरगोशी में
अंगड़ाई टूटे आलिंगन में तुम्हारे
काश वो ऐसी सुबहा हो
अलसाई मदहोशी में होंठ तेरे
कुछ बुदबुदाएं यूँ ..........
उनकी छुअन से शरमा जाऊं
आंखे खुलें और देखें तो
सामने तुम्हारा चेहरा हो ..
लेकर मुझको बाँहों में
बस हम यूँ ही सिमटें रहें
फ़िक्र ना हो कहीं दुनिया की
ना कोई और फ़साना हो
काश वो ऐसी सुबहा हो
अपनी कोमल चेहरे को
पाऊँ जब तेरी हथेलियों में
मुख मेरा चूमों तुम
बिखरी सूरज की किरणों में
भीगी लटें जब मेरी बिखरें
तुम्हारे कपोलों प़र और कुछ
बूंद गिरे अनजाने में
काश वो ऐसी सुबहा हो
तुम चुपके से आ जाओ
और झांक के मेरी सांसों में
विरह की पीर भुला जाओ
मन महके तुम्हारी खुशबू से
और महके मेरी सांसे भी …
जब तुम मुझको प्यार करो
एक हो जाएँ फूल में सुगंध से
काश वो ऐसी सुबहा हो
Sunday, October 10, 2010
shaliniagam ( काश वो ऐसी सुबहा हो)
नींद की सरगोशी में
अंगड़ाई टूटे आलिंगन में तुम्हारे
काश वो ऐसी सुबहा हो
अलसाई मदहोशी में होंठ तेरे
कुछ बुदबुदाएं यूँ ..........
उनकी छुअन से शर्मा जाऊं
आंखे खुलें और देखें तो
सामने तुम्हारा चेहरा हो ..
लेकर मुझको बाँहों में
बस हम यूँ ही सिमटें रहें
फ़िक्र ना हो कहीं दुनिया की
ना कोई और फ़साना हो
काश वो ऐसी सुबहा हो
अपनी कोमल चेहरे को
पाऊँ जब तेरी हथेलियों में
मुख मेरा चूमों तुम
बिखरी सूरज की किरणों में
भीगी लटें जब मेरी बिखरें
तुम्हारे कपोलों प़र और कुछ
बूंद गिरे अनजाने में
काश वो ऐसी सुबहा हो
तुम चुपके से आ जाओ
और झांक के मेरी सांसों में
विरह की पीर भुला जाओ
मन महके तुम्हारी खुशबू से
और महके मेरी सांसे भी …
जब तुम मुझको प्यार करो
एक हो जाएँ फूल में सुगंध से
काश वो ऐसी सुबहा हो
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