Monday, October 5, 2015

Dr.Shalini Agam

"कुछ शब्द मेरे अपने" ……… मन में उमड़ते -घुमड़ते भावों के अतिरेक ही सृजन की प्रेरणा है

"कुछ शब्द मेरे अपने" ……… मन में उमड़ते -घुमड़ते  भावों के अतिरेक  ही सृजन की प्रेरणा है
क्या मेरे शब्द खो गएँ हैं कहीं ? क्या मैं शब्द विहीन हो गयी हूँ ? कहाँ गए मेरे शब्द ? बौरा सी गयीं हूँ एक निरुद्देश्य सा पंथ ,गंतव्य से अनजान  दिशा जिस पर अंतहीन  को लुभाने वाली ठंडी-ठंडी बयारों में   रिमझिम -रिमझिम बारिशों में जो मेरा फेवरेट मौसम है आह ! बारिश और माँ के हाथ के गरम-गरम जलेबी और पकोड़े हरी चटनी  के साथ और फिर  बाद में अदरक वाली चाय किसी भी ५ स्टार और सेवन स्टार के मास्टर शेफ की रेसिपी के आगे फ़ेल।  खुले आसमान के नीचे जाती थी  तो प्रतीत होता था कि सारे  वातावरण में मानो शब्द ही शब्द बिखरे पड़े हैं  दौड़ -दौड़ कर मुट्ठी में भर लूँ और समेट  लूँ  अपने रेशमी अंचल में सारे  शब्दों को  वो शब्द मानों एक अबोध  शिशु हैं और फिर उसे पोषित -पल्ल्वित करुँगी उन्हें एक जननी की भांति अपने हिसाब से।  माँ हूँ न ! गढूंगी उस स्वप्न-सलोने को अपनी इच्छा से ,दुनिया का सर्वश्रेष्ठ "अंश "  . ………  जब सारी दुनिया सोती है थक कर गहरी नींद में , मैं  दीवानी सी घर की छत पर भाग  जाती हूँ अपने स्वप्नों के शीश महलों को बनाने के लिए काली गहरी अँधेरी रातों में न जाने कितने स्वप्न बुनती रहती हूँ जागती अँखियों से और उन सपनों को गढ़ती रहती हूँ शब्दों के ताने-बानों  से , ऊपर आकाश में चाँद मेरा नायक जो मेरे हर मनोभाव का साक्षी भी है और मेरी सपनीली दुनिया का हीरो भी ,एक बाँका  सजीला मन का मीत ,जिसने मेरी खिलखिलाहटों  को देख न जाने कितनी मासूम पंक्तियाँ लिख डाली  हैं मेरे लिए  न जाने कितने खूबसूरत गीतों की रचना कर डाली हैं इन मदभरे नयनों  की ख्वाहिश में … व्योम में टंके  चमकीले सितारे कितना आकर्षित करते हैं मुझे। उन्हें रोज ही तो तोड़ -तोड़ कर टाँकती रहती हूँ अपनी पोशाक में। . छमछम करते पांवों को और भी मदमाती चाल से चलते हुए इतराती रहती हूँ यहाँ से वहां से शब्दों को बीन-बीन कर भर्ती रहती हूँ भावों की गगरिया और जब ये गगरी छलकती है तो उस जल के सिंचन से होता है एक  अभूतपूर्व सृजन। . एक रचना का जन्म।   मेरे अपने सर के ऊपर जो एक छोटा सा मेरे आकाश का टुकड़ा है न ! और जो मेरे पैरों के नीचे की ज़मीन का वो नन्हा सा टुकड़ा !  बस यही तो है मेरी दुनिया ,और उसी में अठखेलिया करते हैं मेरे स्वप्न ,मेरे भाव-विभाव -संचारी भाव  .... .......... पर अब एक शून्य सा पसरा है मन में ,एक ठहराव सा , क्या में संवेदन शून्य हो गयी हूँ ,भावहीन ? न -न  । संवेदनहीनता तो एक नकारात्मक भाव है यानि कि  आप कठोर व् निर्दयी हो गए हो।  फिरर ? अश्रु व् अट्ठास से विलग तो नहीं हूँ मैं। । मैं  तो आनंद सागर में गोते  लगाने वाली उस नन्ही मछली सी हूँ जो बड़ी -बड़ी विशाल मछलियों को देख या तो डर कर किसी शैवाल -जाल में छिप जाती है या फिर उन विशालकाय जलचरों की प्रभुसत्ता के समक्ष स्वम् को तुच्छ  समझ कर दूर से ही प्रणाम कर देती है और फिर अपनी ही दुनिया में मस्त हो अपनी छोटी-छोटी खुशियों के लिए ढेर सारे   बड़े-बड़े संघर्ष करती रहती है।   जब मैं भावशून्य भी नहीं ,संवेदन शून्य  भी नहीं तो फिर मेरे अंदर का वो शिशु -रचनाकार कहाँ लुप्त हो गया क्या पढ़ने-पढ़ाने की पोषक खुराक के आभाव में कुपोषण का शिकार हो गया है ? मन में उमड़ते -घुमड़ते  भावों के  अतिरेक  ही सृजन की प्रेरणा है। .... अधिकता चाहे उन्माद की हो ,आनंद की , दुःख की या शोक की। . सृजन को उकसाती है फिर चाहे वो लेखन के रूप में पन्नों में कैद हो जाये  चाहे शिल्प के रूप में किसी मास्टर पीस कलाकृति में जीवंत हो उठे , नृत्य दवारा सृष्टि की ताल से ताल मिला ले या फिर गीतों की सुमधुर लहरियों के साथ तन मन को झूमा प्रकृति को सुर प्रदान कर दे। मन का सागर भावों के ज्वरभाटाओं से अभी थम सा लगता है तभी न तो लहरें हिलोरें ले रहीं हैं किसी कोमल -अनुरागी मन को लुभाने के लिए किसी काव्य-सृजन की ,न ही कोई सूनामी आई है जज्बातों की इसीलिए शब्द बेपरवाह हो उछाल-उछाल कर सागर से बाहर नहीं आ रहे तहस -नहस करने ,वज़ूद हिलाने किसी पाषाण हृदय का विचारों की आंधी  लेकर  । 
तो फिर ठीक है जब तक भावातिरेक घनघोर घटायें मन को भिगा नहीं देतीं ,जब तक आनंदम  ढोल -नगाड़े मन को हर्षा कर झूम-झूम कर नृत्य करने पर मजबूर नहीं कर देते तब तक मैं भी शांत व् स्थिर मन व् दृष्टि से दुनिया की हर आवा -जाही को निहारती रहूंगी एक अपरिचित राहगीर की तरह से  
डॉ स्वीट एन्जिल 
थका और ऊबा देने वाला सफर।   पहले ऐसा कभी लगता था कि मेरे इस अतिरंगीन जहाँ में मेरे मूड के हिसाब से शब्द बिखरे पड़े हैं यहाँ वहां घर ,बगीचे ,बाजार ,समाज ,रिश्ते,प्रकृति की अनुपम छटाओं में ,मौसमों के बिगड़े मिज़ाज़ों में तो कहीं जी1530418_783558695004443_1648176912_n.jpg

स्त्री विमर्श दरकता दाम्पत्य -सूत्र

दरकता दाम्पत्य -सूत्र न जाने कितने कारण  छुपे होतें हैं टूटते रिश्ते के
पीछे , इनमे से एक  आपके सामने लेकर आ रही हूँ
नमस्ते भारतवर्ष
दरकता दाम्पत्य -सूत्र
*प्रेम बंधन नहीं ...............एक स्वतंत्र अनुभूति है *
पिछले दिनों में एक महिला से मिली .........अपनी किट्टी पार्टी प़र
..........मेरी ही एक सहेली की नई पड़ोसन ....हमारी किट्टी की नई मेम्बर .
हँसी-ख़ुशी का माहौल था सब सखियाँ एक दूसरे प़र टीका-टिप्पणी कर हँसी-मज़ाक कर
रहीं थी ,तम्बोला खेलने का आनंद ले रहीं  थीं,खाने -पीने का लुफ्त उठा रहीं थी
......वहां बात-बात प़र केवल खिलखिलाहटें ही सुनाई दें रहीं थी ..कहने का मतलब
है कि सब खूब एन्जॉय कर रहे थे ...........प़र उस नई मेम्बर का चेहरा लटका हुआ
था ,आँखे सूनी-सूनी ,जबरन जैसे कभी-कभी   मुस्कुरा भर देती .पूरा प्रयास करने
प़र भी वह उस माहौल में अपने मन की उदासी नहीं छिपा पा रही थी .मैंने एक -दो
बार उसकी ओर देखा तो सिवाय मायूसी के और कुछ ना दिखा चेहरे प़र ..........मुझे
उसके प्रति सहानुभूति हुई कि पूछूं  कि उसकी परेशानी कि वज़ह क्या है
..........? प़र पहली बार मिली थी इसलिए हिम्मत नहीं हुई
..............इक्तेफाक  से  अगले दिन उसका फ़ोन ही आ गया मेरे पास  कि वो
मुझसे मिलना चाहती है ..............कुछ ज़रूरी बात करनी  है .........
नियत समय प़र वो मुझसे मिली और जो कुछ मैंने उसके मुहँ  से सुना वो मुझे कुछ
भी नया नहीं लगा .....................ऐसा लगा कि शायद रोज ही इस तरह की
परेशानी किसी ना किसी की व्यक्ति  सुनने में आ जाती है .......................
'मेरे पति को हर चीज से लगाव है ............................. अपने घर से ,
घर की हर बेजान चीज ,गाड़ी से, क्यारी में लगे हर पौधे से , अपने कुत्ते से
,अपने काम से..............अगर नहीं है तो बस मुझसे ...............कहकर फफक
पड़ी .....कितना अकेला महसूस करती हूँ हल पल  किसके लिए
जियूँ.................किसके लिए सजूँ.............कैसे अपना समय काटूँ
......कही अच्छा नहीं लगता ...........कोई अच्छा नहीं लगता ........वो नहीं तो
कुछ नहीं है मेरे जीवन में .
यहाँ ऐसे कितने ही लोग हैं जो अपने कुत्तों को प्यार कर सकतें हैं .अपने
बगीचों को प्रेम कर सकतें हैं ,अपनी गाड़ी से प्रेंम कर सकतें हैं .......वो
दुनिया में अपने परिवार के अतिरिक्त हर किसी से प्रेम कर सकतें हैं
..................यहाँ तक कि गर्ल -फ्रेंड से भी ( लेकिन तब तक जब तक वो
केवल  हाँ ही करती रहे और आपका प्रतिकार ना करे )
 दुनियां  में आदमी के अलावा हर चीज से प्रेम कर सकतें हैं ..क्यों ....?
क्योंकि  व्यक्ति का मतलब है तुम अकेले नहीं हो,दूसरा भी वहां है ,निर्जीव
वस्तुएं या पालतू जानवर संवाद नहीं करते ,आपकी बात का प्रतिउत्तर नहीं देते
जैसे कि प्राय : मियां-बीबी में होता है ...............एक शिल्पकार
मूर्तियाँ  बनाता   है  उन्हें  सजाता है................ उनसे  बातें  करता
 है ...........उनसे  प्रेम करता है प़र वो मूर्तियाँ मृत होतीं हैं ...वह
कलाकार उन मूर्तियों से सम्बंधित नहीं हो सकता क्योंकि वह जीवन्त  है
.......जीवन और मृतु के बीच संवाद संभव नहीं है ..........संवाद नहीं तो कोई
मतभेद भी नहीं .........कोई कलह भी नहीं.......
मूर्ति या अपनी किसी भी प्रिय वस्तु के साथ  जो   तुम करते हो ,वह एकालाप है
........क्योंकि वह वस्तुएं कुछ भी पलटकर कहने वाली नहीं हैं वह तुम्हारी
आलोचना करने वाली नहीं हैं ...............तुम्हारे ऊपर आधिपत्य ज़माने वाली
नहीं हैं   .उन चीजों को जैसे चाहे उपयोग करो या दुरूपयोग करो वह कुछ कहने
वाली नहीं है तुम उनपर पूरा आधिपत्य रखते हो,,,,,,,,,,,,प़र तुम मनुष्य के साथ
ऐसा नहीं कर सकते.....अपने परिवार के सदस्यों,मित्रों परिचितों के साथ ऐसा
नहीं कर सकते ........
जब दो जीवन्त चेतनाएं मिलतीं हैं तो एक दूसरे प़र अधिकार नहीं जमा सकते .सबके
अपने -अपने स्वतंत्र विचार हैं ,आचरण है .इसलिए मतभेद भी संभव हैं
......मनुष्य के साथ प्रेम होना आसान बात नहीं है.दुनिया में प्रेम सम्बन्ध
सबसे कठिन है.इसका कारण ही यही है कि दो चेतनाएं ,दो जीवंत मनुष्य  .किसी भी
प्रकार कि गुलामी सहन नहीं कर सकते.
जब तुम वस्तुओं के उपर ,चीजों के उपर कार्य कर रहे होते हो तो वो हाँ या  ना
कुछ नहीं कह सकती .जो कुछ भी तुम उनके साथ करना चाहते हो तुम कर सकते हो ......
आज जब परिवार एकाकी हो रहें हैं सब से ज्यादा वैचारिक मतभेद पति-पत्नी के बीच
होता है ,बच्चे भी तभी तक बचे रहतें है जब तक माँ-बाप कि हाँ में हाँ  मिलाते
रहतें हैं .......अभी तक हमारी समझ इतनी परिपक्व नहीं हुई है कि हम समझ पायें
कि मनुष्य के साथ,यदि तुम प्रेमपूर्ण रिश्ता चाहते हो अपने अधिकार कि शक्ति की
राजनीति को भूल जाना चाहिए ,तुम बस मित्र हो सकते हो ......ना तो दूसरे प़र
प्रभुत्व  ज़माने की कोशिश कर सकते हो ...ना दूसरों को अपने ऊपर प्रभुत्व ज़माने
देना चाहते हो .
मनुष्य को प्रेम करना दुनिया में बहुत कठिन कार्य  है  ,क्योंकि  जिस  क्षण
तुम   अपना  प्रेम  जाहिर   करते  हो  दूसरा शक्ति कि कामना करने लगेगा वह
जानता है या जानती है कि तुम उसपर आश्रित हो ...और इस तरह सारे रिश्ते गुलामी
में बदल  जातें हैं और कोई भी रिश्ता गुलामी  नहीं चाहता .
मूर्ति शिल्पकार को गुलाम नहीं बनाएगी.......................... अपना कहना
नहीं मनवाएगी............जानवर भी प्रेम नहीं करते केवल प्रजनन करते हैं ,मानव
चेतना के साथ प्रेम  सृजन होता है एक दूसरे को पाने   की ललक पैदा होती है
,जहाँ भी मन माफिक ना मिले टकराव शुरू होने लागतें हैं ............ऐसा लगता
है ज़बरदस्ती हो रही है ........प्रेम बंधन लगने लगता है
..................कभी लगता है आज़ादी छीन रहा है सबसे अपना .........जिसे
प्रेम करते हो उसे सम्मान व् सुरक्षा के साथ-साथ आज़ादी भी देनी
होगी....................उसके विचारों को आज़ादी............घर में छोटी-छोटी
खुशियाँ जो वो चाहे उसकी आज़ादी ............हम प्रेम बांटते नहीं अपितु कई बार
झपटते हैं............ये मेरा पति है .....किसी से बात कैसे की.............हर
वक़्त की शिकायतें............आज ये नहीं लाये ...........आज वो नहीं
लाये...........मुझे टाइम नहीं दिया...........जितना में चाहती थी वैसा कुछ
नहीं मिला .................परिणाम .............सामने वाला स्वं को हल पल उस
रिश्ते में खुद को जकड़ा हुआ महसूस करता है ...............छोड़ दो उसे
खुला.......करने दो जो वो करना चाहता है...............अगर आपके प्यार में
 शक्ति है तो कही भी जाये वापिस आपके पास ही आएगा ............नहीं तो जकड कर
बैठोगे तो बंधन  तोड़ कर चला जायेगा  प्रेम ज़बरदस्ती थोपा नहीं जा सकता
...................तुम भी मौन हो जाओ.....जड़ हो जाओ ना...............ना कोई
प्रतिकार...............ना कोई उलाहना .......ना कोई इच्छा .......ना कोई
ज़रुरत ...........तब देखो वो भी तुम्हें  अपने आस-पास ही महसूस करेगा
............आज़ाद मन पूरी तरह तुम्हें प्रेम करेगा.......
 डॉ.शालिनी अगम
एम ए पी एच डी हिंदी साहित्य 
 रामप्रस्थ कॉलोनी ग़ज़िआबाद २०१०११ 
संपर्क। . ९९९००१८९८९ 
@sweetangel twiter 
स्पिरिचुअल हीलर ,रेकी ग्रैंड मास्टर , 
सकारात्मक सोच से कैसे लाएं जीवन मैं परिवर्तन  खुशहाली व् सफलता इस विषय पर ४ किताबें  …  "अपना भाग्य निर्माता स्वॅम" पर आधारित मोटिवेशनल आर्टिकल  प्रकाशित ,
 नारी लेखन पर " सम्मान से लगातार  वर्षों से सम्मानित  ।
 श्रृंगार पर आधारत दो किताबें ,
दो रेकी पर ,व् 
एक पारिवारिक पृष्ठ भूमि पर केंद्रित दीर्घ कथा संग्रह  

प्राकृतिक आपदाएँ प्रकृति दोहन का दुष्परिणाम environment


प्राकृतिक आपदाएँ प्रकृति दोहन का दुष्परिणाम

ये पृथ्वी माँ हमारी जननी ज़रूर है 
नामुराद औलाद पर क्रोध भरपूर है 
न सुधरेगा ये कुपूत अगर अभी भी 
सहनशक्ति उसकी चुकने पर मजबूर है 

संसाधनों का दोहन क्यों करता जा रहा है 
 आभूषण माँ के क्यों बेच खा रहा है 
अन्न-जल खाकर जिसका हुआ तू इतना बलि 
उसी माँ की कोख तू क्यों जला  रहा है 
दुर्गा से काली  बनी है आज ये भूमि माता 
 क्यों सब्र और ममता  तू  आजमा रहा है 

शोषण किया है तूने सब तेल-ओ-खनिज का 
बर्बाद कर दिया क्यों जल वसुंधरा का 
पेड़-फूल-पत्तर सबका  किया है दोहन 
भूगर्भ सम्पदा भी करते हैं अब ये रोदन 
विष पान  कर रहें सारे प्राकृतिक संसाधन 
रो रही है ये धरा और  रो रहा है ये गगन 

मत कर अवरुद्ध मार्ग तू उस कुदरत का 
न छेड़ -छाड़ कर  उस खुदा  की नेमतों से 
न रोक रास्ता उस बहती चंचल नदी का 
न खोद बेदर्दी से सीना उस पाषाण का 
क्यों काट  रहा बेपरवाह हरे भरे जंगल 
न फैला जहर तू अपने घर की  हवा में 
मान जा तू मान जा ओ रे पापी बेटा 
न हो गर माँ बन जाये आज यूँ कुमाता 

डॉ .शालिनी अगम 
पी एच डी हिंदी साहित्य 

Story by Dr.Shalini Agam

"प्राण मेरे "
साँझ का समय था अल्हड ,मदमस्त हवाएँ चारों ओर फ़िज़ा के रंग में घोल  रही थीं। वातावरण में सघन चुप्पी सी थी ,दूर कहीं पानी का झरना  अपनी सुरीली सी तान छेड़ रहा था ,सुरम्य वादी महकते  फूलों से भरी थी ,पास ही झील  में खूबसूरत फूल खिले हुए थे मानों किसी मनमोहिनी के कर-कमलों का स्पर्श पाने को आतुर हों , सरसराती पवन और उसमे लहराते  "कुमार" के बाल। . बार-बार एक लट चन्द्र -कला सी उस रजत-चन्द्र के मुखड़े पर आकर ठहर जाती थी। . गुलाबी कोमल अधरों पे कोई गीत था। जिसे "कुमार" बड़ी तन्मयता से गुनगुना रहे थे। . मोंगरे की भीनी -भीनी महक वातावरण को सुवासित कर रही थी ,अपने ही गीत में गुम  होते -होते "कुमार" अतीत की उस काली अमावस्या में खो गए। . उदासी भरे भाव उनके मुख-मंडल पर अनायास ही गहराने लगे मानो कोई चि"प्रतियोगिता के लिए 'र -परिचित पीड़ा उन्हें किसी भी प्रकार चैन नहीं लेने देती।  ये हर शाम का उपक्रम था जब कुमार दिन  ढले यहाँ  आकर वर्षों पड़ी एक शिला पर बैठ जाया करते थे और इसी प्रकार विरह की तान छेड़ा करते थे ,दृष्टि उनकी सदैव सामने एक खंडहर पर ही रहती जैसी किसी का इंतज़ार है एक मुद्दत से , ....  और यहाँ आकर  जैसे ही वो व्याकुल प्रेमी श्रृंगार गीत का राग छेड़ेगा उसकी नायिका तड़पती हुई बड़ी शिद्दत से लिपट जाएगी कुमार के सीने  से  । ये मात्र कल्पना नहीं ऐसा ही होता था जब भी कुमार यहाँ आकर अपनी सुरीली तान छेड़ते ''नंदिनी  का मन बेकाबू होने लगता सारी  सीमायें तोड़ वो दौड़ती हुई कुमार के चौड़े कन्धों पर  अपना सर टिका देती  ।आह!कितना सुहाना पल होता था वो जब नायक के गीतों पर नायिका के महावर रचे नरम पैर घुँघरू की ध्वनि से गुंजायमान हो थिरकने लगते थे ,नृत्य -मग्न नायिका और गीत गाते  नायक की लय -ताल पर जैसे सारी  प्रकृति  ही आनंदित होकर झूमने लग जाती थी  ,शिव और शक्ति का ऐसा अनुपम मिलन देख देवता भी पुष्प वर्षा करते न थकते थे 
"कैसी हो प्रिये ?' बरसों पहले की घटना कुमार की यादों में तैरने लगी। । 'तुम्हारे बिना कैसी रहूंगी '  , तुम मुझे छोड़कर क्यों चले जाते हो ,न जाया करो कुमार। . 'फिर से आने के लिए ' प्यार से मुस्कुराये कुमार 'जाऊंगा नहीं तो आऊंगा कैसे ' कहते हुए कुमार ने श्वेत -धवल महकते मोंगरे नंदिनी के केशों में सजा दिए ,निन्दिनी का रूप और निखर आया ,कुमार अपलक देखते रह गए ,प्रणय-चिह्न कपोलों पर अंकित करते हुए कहा 'नंदू '… सदा के लिए मेरी बन जाओ ,मैं जल्द ही विवाह का प्रस्ताव लेकर आता हूँ तुम्हरे माता-पिता के पास '
अचानक छिटक गयी वो उस प्रणय-आलिंगन से ,काँप  सी  गयी  वो … कुमार को समझ न आया कि अचानक ये भाव-भंगिमा क्यों बदल गयी नंदिनी की तभी किसी ने पुकारा उस पुरानी हवेली से 'नंदू उउउउ ओ नंदू उउउउउ घबरा कर नंदिनी ने कुमार का हाथ  छोड़ा  और हवेली की ओर भागती चली गयी  … उसके पैरों मैं बंधे घुंघरुओं की खनक देर तक बजती रही ,उसके महावर से सजे पैरों और वो पीली रेशमी साड़ी  …। बस यही आखिरी स्मृति रह गयी सदा के लिए कुमार के मन में। 
तब से लेकर आज तक मानो  एक युग बीत गया ,नंदिनी की वो आखिरी झलक का आखिरी  चरण ,उसे हर पल  याद में तड़पाता है ,स्वप्न में आता है ,उसी दृश्य को ,उसी स्वप्न को साकार करने कुमार यहाँ हर रोज आतें हैं कि फिर से वो गुनगुनाएंगे और नंदू का वही सुन्दर सा सजा हुआ पैर हवेली की चौखट से बाहर आयेगा ,और सदा के लिए अपना लेगा उसे , कहाँ -कहाँ नहीं ढूँढा उस पगले प्रेमी ने अपनी प्रियतमा को।  पर उसे न मिलना था  . न वो मिली ................ 
सालों  बीत गए  इस दौरान कुमार ने एक  तैल -चित्र बनाया था।  इसी छवि का  पीली साड़ी  में लिपटा  ,महावर रचा ,घुँघरू से बंधा एक चरण ,जो चौखट को लांघकर पुरानी हवेली में प्रवेश कर रहा था ' । मौलिक चित्र और उस के पीछे लिखा एक सन्देश 'चली आओ मधुरे ,जीवित तो हूँ पर प्राण नहीं ,तुम जो आ जाओगी पास मेरे ,तो भर जाएगी झोली मेरी भी खुशियों से ' 
वो चित्र जब एक नगर -वधू ने देखा तो अवाक् रह गयी उस चित्र को खरीद समय गवाए बिना जा पहुँची उसी पुरानी ,झरने के पास वाली हवेली में ,सायं-काल को  हमेशा की भांति जब कुमार ने आकर नंदिनी को अपने गीतों में पुकारना शुरू किया तो सामने उन्हें नंदिनी के होने का एहसास हुआ , बेकरारी में करार आ गया  , वो नंदू ही थी।  कुमार की प्रसन्नता का पारावार न रहा ,दो प्रेमियों का मधुर -मिलन ,सारी  सृष्टि भी जैसे झूमना चाहती थी ,'कहाँ चली गयी थी तुम मधुरे !?'अश्रु -पूरित नेत्रों से बोले कुमार  'कुमार ,मेरे स्वामी मैं आपके लायक नहीं ,उस वक़्त मैं डर गयी थी ,कह न सकी ,मैं नगर-वधू हूँ ,किसी की गृह-लक्ष्मी नहीं बन सकती।  
कुमार ने कसकर उसे गले लगा लिया 'पगली क्यों तुमने मेरा जीवन सूना कर दिया ,मुझे कोई आपत्ति नहीं ,तुम जो भी हो ,जैसी भी हो ,मेरी हो प्रिये ! 
और नंदिनी  ………………… 
उसे तो सारा जहाँ मिल गया था।  
डा शालिनी अगम दिल्ली

गणतंत्र दिवस

श्रेष्ठतम भारत श्रेष्ठतम गणतंत्र बने ,
श्रेष्ठतम नागरिक बन स्वाभिमान से हम रहे , स्वतंत्रता की प्राप्ति हेतु कर मरे या मर मिटे ,
श्रेष्ठतम
 सुशासन,अनुशासन उन्नति का प्रजातंत्र बने

Dr.Shalini Agam

वृद्धावस्था में क्यों पड़ जातें हैं घर के वृद्ध अलग -थलग ?
सम्भ्रांत शब्द सुनते ही मन में एक छवि उभरती है  जीवन की सांध्य से गुजरता व्यक्तित्व   
 सुबह व् दोपहर के बाद शाम में विचरता एक शख्स  . .........जीवन की संध्या या सम्भ्रांत शब्द जीवन की विश्रांति बेला जो सुन्दर भी है और सुनहरी है जहाँ अनुभव की धूप की तपिश का तेज है चेहरे पर  और बीते जीवन की कर्तव्यों को निभाने के पश्चात  दिखाई देती  हुई सफेद चांदनी है सिर पर 
   पर क्यों ? किसी किसी वृद्ध के चेहरे की तपिश तेज न बन जल कर उदासी व् अकेलेपन की कालिमा ओढ़ लेती है और बालों की सफेदी  चांदनी न होकर मायूसी का समंदर बन जाती है  ? क्यों वो सम्भ्रांत वृद्ध उम्र को जीता नहीं ढोता  है   हर दिन सुबह की शुरुआत होती है तो निराशा से ,हताशा से , या तो कुछ भी करने की ख्वाहिश ख़त्म हो गयी है  … या बच्चे हर बार या तो  ये कह कर रोक देते हैं की बजट नहीं खर्चे बहुत हैं अपने बच्चे पालें या आपके नखरे उठायें या फिर चुपचाप भजन पूजा में मन  लगाओ अब आपकी उम्र नहीं  ये सब करने की   
उम्र ??  अनेको सवाल  सैंकड़ों प्रश्न कौंध जाते हैं एक ही पल में उस थके हुए  बूढ़े मन में 
हाँ उम्र तो सारी  बीत गयी तुम्हे बड़ा करने में और तुम्हारा करियर बनाने ,शादी ब्याह ,ज़मीन जायदाद देने में   । अपने बुढ़ापे के लिए कुछ बचाया होता तो आज  ये दिन न देखना पड़ता  
हम भी तुम्हारी तरह स्वार्थी हो गए होते तो तुम लोग आज इस लायक न होते  .......  जो आज अपने ही माँ-बाप को चार बातें सुना रहे हो 
"बुढ़ापा " ,बुड्ढा  खूँसट ,सठिया गया  … जिससे बेचरापन ,बेबसी ,नि :सहाय , लाचार जैसी स्तिथि का ही आभास क्यों होता है  … क्या वास्तव में स्तिथि ऐसी ही है जैसी दिखाई देती है  । साठ के ऊपर की शख्सियत ,भरेपूरे घर का मालिक सब कुछ अपने हाथ से पैदा किया और आज असहाय 
घर के एक बाहर वाले कमरे में अलग- थलग से पड़े रहना ही अब उसकी किस्मत है जैसे ,
रिटायर जो हो चुके हैं  ………………… 
 न कोई  काम न कोई हस्तक्षेप घर में 
एक पुराने फर्नीचर की तरह पड़े रहो बस 
क्यों ?
ऐसा क्यों?
अभी हाथ -पैर पूरी तरह सही सलामत हैं  । घंटों दोस्तों से बतिया सकते हैं 
बागवानी कर सकते हैं 
पूरी किताब एक रात में ख़त्म करने की एनर्जी है 
घंटों टी वी  देख सकते हो 
ताश खेल सकते हो 
मंदिर -मस्जिद  पर  घंटों घूम  सकते हो 
 तो  बताइये भला  ……… बुड्ढे कहाँ से मान लिया अपने आप को आपने 
क्यों न साबित कर दें अपने बच्चों को की आज भी तुमसे ज्यादा दम है इन बूढी हड्डियों में  ....  
पोता बिगड़ रहा है  या पोती बहुत खर्च करती है कपडे या मेक-उप में 
बहु की सहेलिया बहुत आती हैं घर में 
बेटे का हाथ बहुत खुला है  … अरे तो उससे आपको क्या मतलब है ?
क्यों बोलते हो  सारा दिन जो बच्चों को पसंद नहीं  । क्यों वही लाइफ स्टाइल देना चाहते हो जो आपने खुद जिया है 
अगर आप सुबह ५-६ बजे सोकर उठे हो सदा और बच्चे ८ बजे से पहले बिस्तर  नहीं छोड़ते  तो  …………  बुजुर्ग महाशय ये भी तो गौर फरमाइए न कि आप सो भी तो  जाते थे ९ बजे से ही और आज की जेनेरेशन १२ बजे से पहले बिस्तर नहीं पकड़ती  कारन चाहे देर रात की पार्टीस हों या बेटे का घर देर से आना   या उसके प्रोफेशन की डिमांड  या बहु के टी  वी सीरियल और पिक्चरें 
तो आप को क्या परेशानी हैं  जब मर्ज़ी उठेंगे जब मर्ज़ी सोयेंगे आप ही रोज बोल बोल कर बुराइयां मोल लेते हो 
बहु थाली में चार चीजें नहीं परोसती तो भूल जाओ न  
इतनी महंगाई ऊपर से काम न करने की आदत  संभव हो तो आप ही कुछ बना लो न किचन में जाकर  ..........  खुद भी खाओ और बच्चों को भी खिलाओ देखो कितना सुख मिलेगा  …
अब आप यही बोलोगी कि " वाह्ह सारी  ज़िन्दगी यही किया है  । फिर इस उम्र में भी चूल्हा चौका करवा  लो हमसे। . नहीं आंटी  जी आप मुझे गलत न समझे  मेरा कहने  का मतलब है कि  आप अभी कुकिंग कर सकती हैं और माशाल्लाह आपका बनाया खाना बहुत स्वादिष्ट भी होता है  वो भी कितने काम बजट में   .... जी चाहता है आपके हाथ चूम लें   .... आपका बेटा  कितना खुश होगा  आपके हाथ से   बना खाना खाकर   …   बहु भी दिन भर की थकी हारी आई है    … अपनी माँ की याद भी नहीं आएगी अब उसे 
और अगर बच्चे पिज़्ज़ा आर्डर कर रहें हैं या चाइनीज तो खाने दो उन्हें   ………  आप भी चख लो थोड़ा सा पर अगर बच्चों को रोकोगे या टोकोगे तो वो  सुनने वाले  नहीं और अगर सुन भी लिया तो दोनों का ही मूड ख़राब   आपका भी और उनका भी  … यहाँ आपकी सहन शीलता की परीक्षा है  ऐसे में कितनी बुद्धिमत्ता  से शांति ला सकतें हैं मन में ये मुश्किल तो होगा पर नामुमकिन नहीं  
फिर क्यों अलग थलग  होकर बैठ जाती हो सारे  घर से  ………………… कितना अच्छा हो कि  आप पोते-पोती की दादी नहीं सहेली ही बन जाओ उन्हें लेक्चर देने बजाय उन्हें समझो और उनका सुख-दुःख ऐसे बांटों   …  जैसे आप उन्ही की उम्र से गुजर रही हों याद करो अपने लडक-पन  के दिन   … क्या आपकी पोती बिलकुल वैसे ही नहीं लगती  जैसे आप थीं इस उम्र में ,उसकी शरारतें उसका चुलबुलापन आप पर ही तो  गया है न  देखो फिर आपकी सोच उससे कितनी मिलेगी फिर वो आपसे दूर नहीं भागेगी वरन अपना  हर सुख-दुःख आपसे शेयर करेगी 
आजकल पढाई का प्रेशर भी तो कितना बढ़ गया है  बच्चों पर ,फिर भविष्य की चिंता इस सबसे परेशान हो यदि वो कुछ ऐसा कर भी रहें हैं जो आपको पसंद नहीं तो गुस्सा न होकर उनके स्थान पर खुद को रख देख लिया जाये तो क्या हर्ज़ है अंकल जी 
और अगर आपके हर संभव प्रयास के बाद भी बच्चे चाहते ही नहीं कि आप  लोग एक घर  शेयर करें तो ऐसी औलाद का तो फिर भगवान ही मालिक है  ।  सब कुछ बच्चों पर न लुटाया हो तो उन्हें हर चल-अचल संपत्ति का मालिक  कभी न  बनायें  अपने जीते-जी    एक संस्मरण आपसे साझा करना यहाँ उचित होगा    … 
एक बार एक वृद्ध सज्जन स्वामी अखंडानंद सरस्वती महाराज के पास आये।  वे कुछ दिन पूर्व किसी सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हुए थे। सालों  पुराना रूटीन छूटा तो उन्हें लगने लगा कि घर पर  रहता हूँ  रोब -रुआब कुछ कम  हो गया  है बच्चे  पहले जैसा धयान नहीं  रखते हैं न ही डरते हैं उनसे। .......  वो स्वम् को उपेक्षित महसूस करने लगे  । उन्हें लगता कि जैसे उनकी महत्ता ख़त्म हो गयी ,कोई उनको पूछता नहीं है उन्होंने स्वामी को जाकर अपनी परेशानी बताते हुए कहा कि 'स्वामी जी मुझे कोई ऐसा उपाय बताइये कि में अपने परिवार में ही बच्चों के बीच रहते हुए ,प्रभु -भक्ति में लगा हुआ सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकूँ।  उनकी बात सुनकर स्वामीजी ने उन्हें कुछ बातें अमल करने को कहा  पहली बात तो आप या आप जैसा कोई भी वयो-वृद्ध स्वम् को रिटायर माने ही नहीं , कभी खाली न बैठे  , अपितु अपनी क्षमता अनुसार कोई भी काम-काज कर व्यस्त रहे (इस सदी  के महानायक श्री अमिताभ बच्चन को ही  देखें , आज भी कुछ कर गुजरने की अदम्य शक्ति रखते हैं )
कोई काम समझ  न आये तो क्षमतानुसार समाज-सेवा में सलंग्न हो जाएँ। 
सबसे बड़ी भूल होती है जब कोई सीनियर सिटिज़न खुद को नाकारा समझ घर में बैठकर  बच्चों में कमिया निकालते  हैं या स्वम् को बेबस मान लेतें हैं  
दूसरा उपाय ये है कि इस उम्र में बोलें कम  से कम   …। और हस्तक्षेप तो बिलकुल  ना करें अपने बच्चों  के बीच में  ....... कोई भी सलाह तब तक  न दें  . जब तक कि चार-बार  खुद आकर बच्चे  आपसे  ना मांगें 
अपनी बुद्धि व् शक्ति यूँ क्षीण न करें अपितु जो समय बच्चों को देखने ,रोकने- टोकने  में खर्च किया वो  अमूल्य समय अपने सेहत बनाने ,समाजोपयोगी कार्य में और अपनी मित्र-मंडली  के साथ सैर करने और हंसने -हँसाने में बिताएं 
सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपाय सहनशक्ति  ..........  वृद्ध व्यक्ति को बहुत अधिक सहन शील होना पड़ता है और उसी में उनकी मानसिक शांति छुपी है 
स्वामी जी की ये सभी बातें उन वृद्ध सज्जन ने गांठ बांध लीं और आगे का जीवन अधिक शांति व् प्रेम  से निर्वाह किया 
कुछ एक पर्सेंट  … बहुत ही पत्थर दिल संतान की अगर बात छोड़ दें तो ऊपर की गयीं बातों पर अगर हमारे बड़े बस थोड़ा सा ध्यान दें तो क्यों  घर में अलग -थलग पड़े रहेंगे  .... हमारे बड़े तो वो घने विशाल बरगद के वृक्ष हैं जिनकी छाँव पूरे परिवार को मिलती रहनी चाहिए  हमारे बड़ों का आशीर्वाद  सदा यूँ ही  मिलता रहे इसी साथ  …। 

डॉ शालिनी अगम 

एम ए पी एच डी हिंदी साहित्य 
 बी-१८२। . रामप्रस्थ कॉलोनी ग़ज़िआबाद २०१०११ 
संपर्क। . ९९९००१८९८९ 
@sweetangel twiter 
स्पिरिचुअल हीलर ,रेकी ग्रैंड मास्टर , 
सकारात्मक सोच से कैसे लाएं जीवन मैं परिवर्तन  खुशहाली व् सफलता इस विषय पर ४ किताबें  …  "अपना भाग्य निर्माता स्वॅम" पर आधारित मोटिवेशनल आर्टिकल  प्रकाशित ,
 नारी लेखन पर " सम्मान से लगातार  वर्षों से सम्मानित  ।
 श्रृंगार पर आधारत दो किताबें ,
दो रेकी पर ,व् 
एक पारिवारिक पृष्ठ भूमि पर केंद्रित दीर्घ कथा संग्रह  

सीनियर सिटीज़न्स by Dr.Shalini Agam

Subject: सीनियर सिटीज़न्स ………… बोझ क्यों ???????????

नमस्ते भारतवर्ष and my all foreigner friends ....... 
एक अपील ,एक प्रार्थना ,एक सुझाव अपने सभी ४० वर्षीय (या उसके आस-पास की आयु वाली मित्र -मंडली से ) क्योंकि हम न बच्चे हैं न बूढ़े , न युवा न वृद्ध जो मिडिल एज में हैं। … the cutest age of the life .... u can say naughtiest age of the life ........ ... ,full of energy ........... well efficient .......agree .......?? anyways ....... 
सर्वसमर्थ ,हृष्ट -पुष्ट ,सुंदर ,सुशील ,स्मार्ट ………. हमें दो काम करने हैं …… एक -खुद का भविष्य सुरक्षित करना है
दो-अपने बुजुर्गों का आज संवारना है।
एक बात बताइए। ……कृपया ध्यान से पढियेगा कि क्या एक वृद्ध इंसान जिसने बचपन से आज तक ६० -७० वर्ष ये उससे अधिक या कम जीवन पर्यन्त कठिन परिश्रम किया स्वम् को कष्ट पहुंचा कर आज की पीढ़ी को जवान किया …और जा चुकी पीढ़ी की सेवा व् सम्मान किया। उनका सहारा बने। किसी हद तक अपनी खुशियों का गला घोंट कर भी ………… अपनी इस हालत के ज़िम्मेदार वो खुद नहीं हैं ??????????
?कैसे ???क्योंकि वो अपने लिए थोड़ा सा स्वार्थी नहीं हुए …….
मुझे औरों का नहीं पता ……………।
न ही किसी और की सोच से मैं इक्तेफाक रखती हूँ ……। लेकिन आप सभी लोग बताइए ज़रा ………क़ि …………… जीवन भर मेहनत की उन्होंने ………। पहले स्वम् को काबिल बनाया . मत-पिता को सहारा दिया …। उनकी गृहस्थी संभाली … साथ ही साथ अपने परिवार का भरण-पोषण किया .उन्हे हर सर्दी -गर्मी से बचाया … एक मजबूत संबल प्रदान किया .भवत्मक रूप से भी औए शारीरिक व् आर्थिक रूप से भी ……… और आज …………… वो बूढा होकर दूसरों का आसरा देख रहें है …… क्यों ????????????????
क्योंकि आज की युवा पीढ़ी के ऊपर वो मोहताज हो गया है …।
मोहताजगी ……………. .उन्ह्ह ……… कितना कष्टकारी होता है न सुनना ये शब्द ………ऽऔर झेलना उससे भी दुष्कर …………
विचारणीय ……… 
क्यों वो आज की युवा पीढ़ी पर इतना निर्भर हो गए ……।क्यों ?? वो दिन भर आते -जाते अपने बच्चों व् बच्चों के बच्चों ……… नाती पोतों का मुह ताका करते हैं ??? क्यों नहीं उन्होंने अपनी जवानी में ही … जब वो पूरी तरह से समर्थ व् स्वस्थ थे …। अपने लिए कोई ऐसा इंतजाम कर लिया कि आखिरी श्वांस तक वो राज करें . और युवा पीढ़ी ……………(विशेषकर नालायक व् अपनी ज़िम्मेदारी न समझने वाली ……… क्योंकि हर संतान पत्थर -दिल नहीं होती हैं ) …………… उनके समक्ष घुटने टेक दे ……………… या भयभीत रहे कि अगर हमने अपने बुजुर्गों का अपमान किया . या इतना मजबूर ……. कि उन्हें घर छोड़कर वृद्धाश्रम का मुह ताकना पड़े . या खुद घर से बेघर होना पड़े। …………………………. तो सोच कर भी उसे पसीना आ जाये। . 
अब बात आती है वृद्धों पर . आज के वृद्ध -बुजुर्गों की दयनीय हालत देखकर …… क्यों तो हम वृद्ध -दिवस के चक्कर में पड़ गए . ज़ुबान हिला दी . या बैठकर सोशल - नेटवर्किंग साईट पर टाइप करने लग गए ………. उफ़्फ़ …………। 
उठो यार 
कुछ करते हैं …… आप और हम 
हाँ भाई मैं आप सभी सर्व-समर्थ ……………… भाई -बहन व् मित्रों से कह रही हूँ ……………. 
अभी से आइये हम सभी योजना -अनुसार चलतें हैं कि २० -२५ वर्ष बाद हम अपने बच्चों से नहीं अपितु बच्चे हमसे डरें ………।
पढ़कर केवल खुश मत हो जाइये 
न ही खाली इंश्योरेंस की प्रीमियम भरकर बेफिक्र 
या ज़मीन -जायदाद बनाकर संतुष्ट हो जाइये ………. 
अपने इस दिमाग को दौडाइए …. कि एक नयी क्रांति ,एक नयी सोच ,एक नयी आग , एक नयी योजना ……………………. जो हमारा बुढ़ापा संवार दे …………… सोचो -सोचो …………………… और आइये फिर उसे आपस में बाँटकर कार्यान्वित करें …………. 
पहला --आज के वृद्ध-वर्ग को ( सबकी हालत दयनीय नहीं … . पर जिनकी है ) … उनके लिए सख्त व् कठोर कदम उठाकर ………… उनकी हर श्वाँस ,हर पल को खुशनुमा बनाना है …….
दूसरा-- स्वम् के भविष्य के लिए ठोस कदम उठाने हैं …… अरे ! मेहनत करें हम। …. 
कमायें हम …………
अपने दिन-रात लुटाएं हम ………
और मज़े लें नालायक …।
जो भूल हमारे बड़ों ने कर दी …… उस भूल को न हमने दोहराना है ………… न ही आगे चलकर पछताना है
खाली वृद्ध -दिवस मनाने से कुछ न होगा मेरे साथियों। ………
कोई विचार मन में हो तो अवशय सबको बताएं ……… सबका भला होगा
आपकी अपनी डॉ स्वीट एंजिल .....................................................................मैं भोपाल में एक senior citizen home से जुड़ा हुआ हूँ। वहाँ जाकर जो महसूस किया है आपने जैसे मेरी भावनाओं को शब्द दे दिये हैं। आज अधिकांश वृद्ध financially secured हो सकते हैं, या हैं भी ! समस्या है emotional scarcity की। जब उन्हें सबसे ज्यादा जरूरत होती है अपनों की, अपनेपन की तब वो एकाकीपन का दंश झेलते हैं। एक उम्मीद की किरण हैं grand children...... अनेकों जगह वो सेतु बन गये हैं दो पीढ़ियों के मध्य । अब ऐसी परिस्थिति में secured last spawn के लिये क्या करें ? अपने आप को mentally prepare करलें, अपनी संतान से सहारे की आस ही नहीं रखें। अभी से अपने उस वक्त का खाका तैयार रखें कि कैसे गुजारेंगे वो आखिरी पड़ाव !!
तब अगर अपनों ने रिश्तों में गर्माहट बरकरार रखी तो ये एक उपहार होगा.... रिश्तों की कुल जमापूँजी पर ब्याज होगा जिसका अपना अलग ही आनन्द होगा...... कोई कमी.... कोई पश्चाताप नहीं रह जायेगा................. !!.... precious views byMukesh Dubeyji
 
 
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