Tuesday, January 6, 2015
'डॉ शालिनी अगम '
समकालीन परिदृश्य को उकेरती ,समसामयिक समस्याओं से झूझती और फिर स्वम् को संयत कर एक काल्पनिक खुशीयों भरे संसार को रचती 'डॉ शालिनी अगम ' की एक हृदय को झकझोरती {कला}कृति
कैनवस
चलो आज मन को कैनवास कर लूँ
झोली अपने जहाँ की खुशियों से भर लूँ
बिखेर दूँ ढेर सारे अपनी खुशियों के रंग
खेलूं पूरी होती अपनी आशाओं के संग
जहाँ चाँद चमकेगा मेरे गगन में
फूल भी खिलंेगे मन के उपवन में
खिंचूंगी न एक रेखा भी कालिमा की
दुःख की ,बेबसी की ,लाचारी और बीमारी की
हर रंग बस खिलखिलाती हंसी का भर लूँ
चलो आज मन को कैनवास कर लूँ
सतरंगी स्वप्न झिल मिलाएंगे जहाँ
शहनाइयाँ गठ-बंधनों की सजती यहाँ
बाँसुरिया प्रेम की बजते रहे वहां
थाप ढोलकी की उम्मीद की जहाँ
सातों सुरों में आनंद स्वर भर दूँ
चलो आज मन को कैनवास कर लूँ
उकेर लूँ एक जहाँ प्रेम और मिलन का
उत्सव मनाते लोग हों बस जहाँ
रक्तिम वर्ण हो उन्नति के सूर्य का
सुहाग का ,सौभाग्य का और त्योहारों का
रंग लाल न हो जिसमे ज़ालिम लहू का
कैनवास हो भरा पूरा बच्चों की किलकारियों से
उदासी न हो जहाँ रोदन और अश्रूं कीवजह से
लीप दूँ सारे समाज के दुश्मनों को
मिटा दूँ तस्वीर में भी उन राक्षसों को
ढेर रंग फेंक तबाह कर दूँ मैं वो कलाकृति
धूमिल कर उनको सजा लूँ पूजा की आरती
जिसमे हों आतंकी और हिंसा के पुजारी
जीतेगी किस्मत मेरी दुशमन की किस्मत हारी
हर रंग शांति और अमन का भर लूँ
चलो आज मन को कैनवास कर लूँ
डॉ शालिनी अगम
एम. ए. हिंदी पी एच डी
स्पिरिचुअल हीलर
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