Friday, April 30, 2010

कुछ शब्द मेरे अपने ( प्यार )

प्यार से बड़ी कोई चीज नहीं
घृणा तो है सूखी बंजर ज़मीं
प्यार कि बरसती बूंदों से
आओ हम सब मिलजुल कर
भिगो दें उस प्यासी धरती को
पोषित-पल्लवित होंगे प्रेम-पुष्प
प्यार की रिम-झिम में धुलने दो
सारी कडवाहट ,भरने दो धरा की
सुखी दरारों में प्रेम के गीले मोती

चमचमाने दो मित्रता के हीरे -मानिक
विद्वेष ,घृणा , कडवाहट के
धुलने प़र लहलहाएगी
सद्भावना की खेती
जीवन को फलने-फूलने दो
स्वम को दूसरों की
स्तिथि में तोलने दो
जो सोचा दूसरों के विषय में
वही चिंतन होता है अपने बारे में
इंसान के जीवन में सबसे
ज्यादा ज़रूरी है प्रेम
प्रेम के इन्द्रधनुषी रंगों में
स्वम को भिगोने दो
फटने दो बादल कटुता का
बरसने दो प्रेम की रिम-झिम बरसात
बुझा दो प्यास धरती की
दे दो बस प्रेम की सौगात।
शालिनीअगम