Monday, March 18, 2013

,तेरी भोली सी मासूम मुस्कराहट पे


 , ,तेरी भोली सी मासूम मुस्कराहट पे
दुनिया लुटाने को जी चाहता है,
फूल की पंखुरिया खिल -खिल जाती हैं
ओस की बूंदों सी इस मुस्कराहट पे


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बेकरारी का राज खुला भरी महफ़िल में ,
सिमट गयी मैं शर्मो -हया के दामन में,
क्या छुपाऊँ अब राजे-दिल अपना ,
कम्बक्त ने  धोखा दिया भरी महफ़िल में

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जानता है ज़माना  तो जानने दो
अब किसी कि परवाह नहीं
तेरे गीतों में  गर  बसतीं हूँ मैं
इसमें मेरी कोई खता नहीं

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तुम्हे छू   कर  आ रही है  पवन .........


मुझे  गुदगुदा रही है पवन

कि जैसे तुम यहीं हो ..........

मेरे पास ही कहीं हो ......

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