, ,तेरी भोली सी मासूम मुस्कराहट पे
दुनिया लुटाने को जी चाहता है,
फूल की पंखुरिया खिल -खिल जाती हैं
ओस की बूंदों सी इस मुस्कराहट पे
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बेकरारी का राज खुला भरी महफ़िल में ,
सिमट गयी मैं शर्मो -हया के दामन में,
क्या छुपाऊँ अब राजे-दिल अपना ,
कम्बक्त ने धोखा दिया भरी महफ़िल में
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जानता है ज़माना तो जानने दो
अब किसी कि परवाह नहीं
तेरे गीतों में गर बसतीं हूँ मैं
इसमें मेरी कोई खता नहीं
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तुम्हे छू कर आ रही है पवन .........
मुझे गुदगुदा रही है पवन
कि जैसे तुम यहीं हो ..........
मेरे पास ही कहीं हो ......
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