Friday, March 8, 2013

Dr.Shalini Agam Reiki Sparsh Tarang


साथ -साथ

 जीवन की शाम होने से पहले

 उसमे कुछ सुनहरी यादें जोड़ने दो

 रिश्ते की रात को गहराने से पहले

 शाम को मादक बनाने दो 

उम्र के आखिरी पड़ाव पर आने से पहले मेरे यौवन को भी महकने दो

अरमानो के फूलों को मुरझाने से पहले
उनकी स्मित सुगंध मुझे लेने दो
लोगो की भीड़ में  गुमने से पहले
अकेले में  सिर्फ मैं और तुम ...........
हम् में से एक के बिछड़ने  से पहले
साथ-साथ थोडा सा जीवन
जी लेने दो !

अपना लो प्रियतम!


काश!

काश तुम यादें होते ....तो भुला  देती
काश तुम लिखावट होते
तो मिटा डालती
काश तुम सुगंध होते
तो कब के बिखर  जाते
काश के तुम तकदीर होते
तो बदल भी जाते
सागर होते तो नदिया बन
तुम्ही में  समां जाती
बदल होते तो हवा बन
 उड़ा  ले जाती
पर तुम तो प्रणय-चिन्ह बन
समाये हो मन-प्राण में  कितने
मैं नहीं मेरा अस्तित्व नही
पर तुम हो कि
समाये हो कण-कण  में 

प्रथम -मिलन की इस बेला पर 
अश्रु -विगलित नेत्रों से जब
देखा उन्होंने पहली बार
मन में कुछ हुआ था तब
आशायें थी जागी  हज़ार
समर्पण की चाह  उठी
न्योछावर की इच्छा जगी
जीवन-साथी बना लो मुझको
वरुण तन-मन क्षण-क्षण
मन के तारों की लय  से
उर तरंगित होने लगे
मूक -दृष्टि से मैं और वो

 प्रेम -गीत भी गाने लगे
त्याग-जल के सिंचन से
प्रेम -बेल विकसित होगी
एक -दुसरे के बनकर ही
जीवन -समर में जय होगी 

Dr.Shalini Agam Reiki Sparsh Tarang



पर हृदय में  एकांत कितना 

अभी तक जी रही थी 
सिर्फ एक एकांत 
घर में  बहुत भीड़ है 
पर मन में है एकांत 
इस एकांत को तोड़ने 
अभी तक न कोई आया था 
खलबली तो मचा  गए सभी
 अपने .........???????
कभी तानो की 
कभी अपमान की 
कभी तिरस्कार की 
कभी प्रताड़ना  की 
कभी मेरे कर्तव्यों की 
ये करो, ये न करो 
ऐसे  करो ,वैसे करो 
मुह मत खोलो 
किसी से मत बोलो 
अधिकारों की बात ही मत करो 
बस कर्तव्य  ही निभाते जाओ 
चारों  ओर  शोर इतना 
पर हृदय में  एकांत कितना 
................................
पर ऐसे  में आपका आना 
आप में देखा 
एक सरल भाव 
एक अपनापन 
आपने बताया तो जाना 
हाय ......................
मैं भी एक इन्सान हूँ 
इच्छाएं मेरी भी हैं ....
हाँ ...........
ये सलोनी खिलखिलाहट 
ये आशा-उमंग मेरे मन में  भी हैं 
रे पागल मन 
तू भी गाता  है…. 

पैर तेरे भी हैं 
जो थिरकना चाहते हैं 
तन तेरा भी चाहता है झूमना 
शायद किसी के आलिंगन में 
या शायद किसी के मद भरे  गीतों में ....
बिखरे  हुए मोतियों की 
माला को गूंथने का एक साहस 
एक हौंसला ,एक सहारा 
एक एहसास ,एक साथी 
एक सरल व्यक्तित्व 
आश्चर्य-जनक ,प्रतिभाशाली 
स्वंत्र-विचारों का सहायक 
कोई  अपनों से अधिक  अपना ........
............पर पराया .....


बस कुछ पल मेरे लिए भी
सम्मान का मोह भी है
 अपमान का भय भी
प्रसिद्धि की चाह भी है
घर की ज़िम्मेदारी भी
प्रसिद्धि को चाहिए
समय और थोडा  पैसा भी
 कुछ दोस्त भी
और कम्पुटर भी
 कुछ समय
 जो घर ग्रहस्थी  से चुरा लूँ
या
उधर ही मांग लूँ
उनसे
जो मेरे अपने हैं
आँखों के सपने हैं
पल दो पल अपने लिए
जो इस चार-दिवारी के भीतर ही
मुझे मुझ से मिला दें
 मेरे होने का एहसास करा दें 

Dr.Shalini Agam Reiki sparsh tarang



तिल -तिल कर कसकती
इस ज़िन्दगी का
खत्म कर दूं अभी
इन खोखले आदर्शों
की माला को
तोड़ दूं अभी
 इस सडती-गलती सांसों का
आवागमन रोक दूं अभी
इस भरी पूरी दुनिया में
क्यों हूँ मैं अकेली ............
मेरे अपने ?????
मुझे स्वीकारते नहीं
तो क्यों इन संस्कारों की दुहाई देकर

 इस आशा हीन -ध्येय-रहित जीवन को
 जिए जा रही हूँ मैं ????

Dr.Shalini Agam Reiki sparsh tarang

आजकल हम सभी पूरी तरह  पाश्चात्य  संस्कृति के रंग मे  रँगे  हुए हैं .........और ऊपर से ये इन्टरनेट की लुभावनी दुनिय………। जो हमारे सपनों को नयी उड़न देती है ......जहाँ विवाहित होते हुए भी एक से अधिक विवाह या  प्रेमी -साथी होना कोई बड़ी बात नहीं टकराहट होती है भारतीय संस्कृति की पश्चिम की संस्कृति से ..........जहाँ पर पुरुष दोगली मानसिकता को लेकर जी रहें हैं ...समस्या तब उठ खड़ी होती है जब वो स्वम् तो एक से अधिक अफेयर करना ठीक समझता पर पर पत्नी  को केवल सती -सावित्री के रूप में  देखना चाहता है ...............और सबसे बड़ी मुश्किल तब पैदा होती है जब पत्नी अपने पति को प्राण-पण से चाहती है ..........और किसी दूसरी के साथ उसे बाँट नहीं पाती .....तिल -तिल कर घुटती है .पति,बच्चे,सास-ससुर ,घर,बाहर ,रिश्तेदार,यहाँ तक कि पति का प्यारा कुत्ता तक संभालती है ........पूरी निष्ठां व् ईमानदारी के साथ सिर्फ दो रोटियों के लिये……….???????

?कभी-कभी निराश होकर ..या धोखा खायी किसी क्रोधित काली -समान वो बदले की आग में तो  जलती ही है चाहती  है कि खुद भी भ्रष्ट हो जाये और पति के  बनाये रास्ते  पर चल निकले ..............और कभी-कभार एसा हो भी जाता है .शायद एक प्रतिशत स्त्रियाँ टूट भी जाती हैं .............पर उसका क्या जिसे अपने पति के  अलावा कोई भाता ही नही है ……………… वो पति को न केवल परमेश्वेर मानती है अपितु उसके बिना जीने की एक पल के लिए भी कल्पना नहीं कर पाती .......पति को देख कर ही जिसकी साँस में साँस आती है .........................ये प्यार भी  कितना प्यारा होता है न…...मालूम है की धोखा और अपमान के सिवा अब कुछ नहीं मिलना ......फिर भी ………. हर बस उसकी की चाह ...........उसी का धयान,..कभी गलती से छू  भर भी ले तो मन -मयूर नाचने लगता है………. ये जानते हुए भी कि अब तू उनकी ज़िन्दगी में कहीं नहीं ...............कभी भी नहीं ……………… 

हाथों का स्पर्श हटा लेने से 

मन का  विश्वास कम नहीं हो जाता

 अपनों के दृष्टि घुमा लेने से भी

 रिश्तों का भान  कम नहीं हो जाता

 रवि के बादलों में छिप  जाने से

 दिन का उजाला मिट नहीं जाता

 पूर्णमासी का चाँद निकलने पर भी

 रात्रि का अंधकार कम नहीं हो जाता

 बांध को बाँधने पर भी

 मचलती धरा का वेग कम नहीं हो जाता

 पति के लाख तिरस्कार के बाद भी

 पत्नी की साधना व् प्यार कम नहीं हो जाता

 प्रियतम की घोर घृणा के बाद भी

 प्रिया  का प्रिय पर भरोसा कम नहीं हो जाता 

डॉ स्वीट एंजिल 

Dr.Shalini Agam Reiki sparsh tarang



ऋतु पावस बन जाओ
छा  जाओ जीवन में  मेरे प्रिय
मादक-मधुर पराग सी बनकर
घूँट-घूँट पी जाओ प्रिय मेरे
मेघ आड़ में चन्द्र-घटा सी
अर्ध-छिपा अल्हड मुखड़ा ज्यूँ
अपलक,अविचल निहारूँ  तुमको
जीवन रस का पान हो जैसे
बरसा दो सुधारस मुझपर
अवगुंठन की आड़ लिए प्रिय
ऋतु पावस बन  आ जाओ
छा जाओ जीवन में मेरे प्रिय 

Reiki Sparsh Tarang Dr.Shalini Agam

1-मेरे देव,
मैंने कभी भी ख़ुशी से ,
ख़ुशी की ओर  नहीं देखा ,
अनचाहे से दुःख से ही खुद  को ,
बस दुखी ही होते देखा ,
मुझे मालूम है कि
तुम्हारा इंतज़ार
करना ही है
इसलिए कभी भी
बदलते मौसमों
की ओर नहीं देखा
2-
पति के जन्म-दिवस पर
मेरे ....
अगम ही
 परमात्मा का
सर्वोच्च मंदिर हैं,
इसलिए
साक्षात् देवता
की पूजा करना
 मुझे सदैव ही
 भला लगता है
.................तुम्हारी 


 विवाह की २ ३ वीं वर्षगांठ पर…।
टप -टप आँखों के मोतियों को गिरने से पहले
कभी अपनी हथेलियों में समेटा होता ..
बरसती-भीगती रातों में
छत पर भीगते हुए
अपनी छतरी में मुझे
खींचकर बुलाया होता
ठण्ड से ठिठुरती रातों में
कंप-कपाते मेरे अस्तित्व को
प्रेम की रजाई से ढांपा  होता
ज्वर की तपन में कराहती  हुई मैं
कभी बेबस सी करवट बदलती
आकर मेरा हाल तो पुछा होता
परेशान मुश्किल घड़ियों में
कभी भावात्मक सहारा दिया होता
बड़ी-बड़ी विषम परिस्थितियों में
कभी मेरा हमसाया बना होता
झूठ-मूठ का दोषारोपण करते रहे
कभी नफरत का कारण  बताया होता
अपनी इस गृह -लक्ष्मी को कभी
 अपने मन-मंदिर में बिठाया होता
तिरस्कार भरी दृष्टि से देखते रहे
कभी अपनत्व से सहलाया होता
तेजी से आगे भीड़ में गुमने से पहले
थोडा पीछे आकार अपना साथ दिया होता
चाव से भोजन करते रहे
कभी प्रंशसा से मेरा हौसला बढाया होता
घर की हर वस्तु  को ध्यान से देखने वाले
कभी इस चलती-फिरती काया पर भी
ध्यान दिया होता .....................
निरन्तर………………
 

Dr.Shalini Agam

मैं आज बहुत खुश हूँ सचमुच बहुत गौरवान्वित 

हूँ .प्रसन्न हूँ फेसबुक पर आकर सभी दोस्तों के उद्गार 

नारी दिवस पर पढ़कर गदगद हो उठी हूँ महिला मित्रों 

से अधिक बधाई पुरुष मित्रों की और से आई है कितनी 

आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी है कि एक नहीं लगभग सभी 

पुरुष मित्रों ने दिल से कितना अधिक सम्मान व्यक्त 

किया है नारी के लिए किसी ने पत्नी के गुण गायें हैं 

,तो किसी ने माँ के ,तो किसी ने बहन व् बेटी के 

........हर रूप में उन्होंने स्त्री को सराहा है ये सम्मान 

की भावना ,ये आदर का भान ,ये स्त्री की मर्यादा का 

ख्याल केवल भारत-सपूत ही कर सकता है 

..............मेरा ननम है आप सभी पुरुष -मित्रों को 

..........मैं धन्य हो गयी गद-गद हूँ आपकी सोच पर 

............साभार

Dr.Shalini Agam

 जी ,पुरूषों की नज़र में उनके घर की स्त्रियाँ अधिक 

सुखी हैं .....जिन्हें न घर चलाने की चिंता 

है……………. न कोई ज़द्दो-ज़हद ,उनकी नज़र में 

उनकी माँ व् बीवी बस आराम फरमाती हैं 

..............या पत्नी फेसबुक पर रहती है…………. 

और बेटी पढाई के साथ बस सहेलियों में मस्त रहती है 

सारा भार बेचारे पुरुष ही सम्भाल्तें हैं ...बूढ़े माँ-बाप को 

हॉस्पिटल ले जाना हो ,या बीवी को शौपिंग करानी हो 

,या बेटी को पॉकेट मनी देना हो सारे बिल वो भरतें हैं 

,सारी चिंताएं वो झेलतें ...और बीवी बस मज़े से या तो 

सोती है .या टी .वी .देखती है ................अब बताइए 

सुखी कौन ??????????????????

"नारी-दिवस " REIKI SPARSH TARANG



"नारी-दिवस "


नारी !..........ईश्वर की सबसे अनमोल व् खूबसूरत रचना 

मासूमियत से भरी चंचलता दिखाती है एक बच्ची के रूप में 


देखभाल करती व् सहारा बनती है एक बहन एक रूप में 

हर सुख-दुःख में दिशा-निर्देशन करती है एक मित्र के रूप में 

खुशियों की आनंद वर्षा करती है है एक प्रेमिका के रूप में 

जी-जान लुटाती , सेवा-समर्पण करती है एक पत्नी के रूप में 

परमेश्वर के रूप में ,हमारी जन्म-दात्री है एक माँ के रूप में —

Reiki Sparsh Tarang



"

ये सिलसिला प्रेम का
अब थमने वाला नहीं प्रिय
तुमसे प्यार न करूँ

ये मेरे बस में नहीं

हाँ ये बात और है
कि उस प्यार को
छुपाना अब आदत बना ली है 
"