आजकल हम सभी पूरी तरह पाश्चात्य संस्कृति के रंग मे रँगे हुए हैं .........और ऊपर से ये इन्टरनेट की लुभावनी दुनिय………। जो हमारे सपनों को नयी उड़न देती है ......जहाँ विवाहित होते हुए भी एक से अधिक विवाह या प्रेमी -साथी होना कोई बड़ी बात नहीं टकराहट होती है भारतीय संस्कृति की पश्चिम की संस्कृति से ..........जहाँ पर पुरुष दोगली मानसिकता को लेकर जी रहें हैं ...समस्या तब उठ खड़ी होती है जब वो स्वम् तो एक से अधिक अफेयर करना ठीक समझता पर पर पत्नी को केवल सती -सावित्री के रूप में देखना चाहता है ...............और सबसे बड़ी मुश्किल तब पैदा होती है जब पत्नी अपने पति को प्राण-पण से चाहती है ..........और किसी दूसरी के साथ उसे बाँट नहीं पाती .....तिल -तिल कर घुटती है .पति,बच्चे,सास-ससुर ,घर,बाहर ,रिश्तेदार,यहाँ तक कि पति का प्यारा कुत्ता तक संभालती है ........पूरी निष्ठां व् ईमानदारी के साथ सिर्फ दो रोटियों के लिये……….???????
?कभी-कभी निराश होकर ..या धोखा खायी किसी क्रोधित काली -समान वो बदले की आग में तो जलती ही है चाहती है कि खुद भी भ्रष्ट हो जाये और पति के बनाये रास्ते पर चल निकले ..............और कभी-कभार एसा हो भी जाता है .शायद एक प्रतिशत स्त्रियाँ टूट भी जाती हैं .............पर उसका क्या जिसे अपने पति के अलावा कोई भाता ही नही है ……………… वो पति को न केवल परमेश्वेर मानती है अपितु उसके बिना जीने की एक पल के लिए भी कल्पना नहीं कर पाती .......पति को देख कर ही जिसकी साँस में साँस आती है .........................ये प्यार भी कितना प्यारा होता है न…...मालूम है की धोखा और अपमान के सिवा अब कुछ नहीं मिलना ......फिर भी ………. हर बस उसकी की चाह ...........उसी का धयान,..कभी गलती से छू भर भी ले तो मन -मयूर नाचने लगता है………. ये जानते हुए भी कि अब तू उनकी ज़िन्दगी में कहीं नहीं ...............कभी भी नहीं ………………
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