सम्मान का मोह भी है
अपमान का भय भी
प्रसिद्धि की चाह भी है
घर की ज़िम्मेदारी भी
प्रसिद्धि को चाहिए
समय और थोडा पैसा भी
कुछ दोस्त भी
और कम्पुटर भी
कुछ समय
जो घर ग्रहस्थी से चुरा लूँ
या
उधर ही मांग लूँ
उनसे
जो मेरे अपने हैं
आँखों के सपने हैं
पल दो पल अपने लिए
जो इस चार-दिवारी के भीतर ही
मुझे मुझ से मिला दें
मेरे होने का एहसास करा दें
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