प्यार से बड़ी कोई चीज नहीं
घृणा तो है सूखी बंजर ज़मीं
प्यार कि बरसती बूंदों से
आओ हम सब मिलजुल कर
भिगो दें उस प्यासी धरती को
पोषित-पल्लवित होंगे प्रेम-पुष्प
प्यार की रिम-झिम में धुलने दो
सारी कडवाहट ,भरने दो धरा की
सुखी दरारों में प्रेम के गीले मोती
चमचमाने दो मित्रता के हीरे -मानिक
विद्वेष ,घृणा , कडवाहट के
धुलने प़र लहलहाएगी
सद्भावना की खेती
जीवन को फलने-फूलने दो
स्वम को दूसरों की
स्तिथि में तोलने दो
जो सोचा दूसरों के विषय में
वही चिंतन होता है अपने बारे में
इंसान के जीवन में सबसे
ज्यादा ज़रूरी है प्रेम
प्रेम के इन्द्रधनुषी रंगों में
स्वम को भिगोने दो
फटने दो बादल कटुता का
बरसने दो प्रेम की रिम-झिम बरसात
बुझा दो प्यास धरती की
दे दो बस प्रेम की सौगात।
शालिनीअगम
Friday, April 30, 2010
Tuesday, April 27, 2010
TIP OF THE DAY
HELLO INDIA,
Kill the stress before it kills you.
Reach the goal before it kicks you.
Help everyone before someone helps you.
Live life before life leaves you। हमें थोड़ी सी भी ख़ुशी तब मिलती है ,जब हम किसी को आगे बढने के लिएउत्साहित करतें हैं और कुछ ख़ुशी हमें तब मिलती है , जब हम
Kill the stress before it kills you.
Reach the goal before it kicks you.
Help everyone before someone helps you.
Live life before life leaves you। हमें थोड़ी सी भी ख़ुशी तब मिलती है ,जब हम किसी को आगे बढने के लिएउत्साहित करतें हैं और कुछ ख़ुशी हमें तब मिलती है , जब हम
किसी दूसरे के लिए कोई त्याग करतें हैं । किसी दुखी व्यक्ति के दुःख का भार जब हम कुछ कम कर देतें हैं , तबमन में बड़ा आनंद आता है। प्रसन्नता एक इसी अमूल्य देन है जो हमारे अच्छे विचारों ,दूसरों की भलाई के लिएकिये गए कामों और नि:स्वार्थ सेवा करने से प्राप्त होता है . अब्राहम लिंकन ने कहा है कि "लोग अपने मन में जितनी प्रसन्नता पाने का निश्चय करतें हैं उतनी ही प्रसन्नता उन्हें मिलती है .सुख और ख़ुशी कहीं बाहर से नहीं मिलती वो तो हमारे हृदय में ही है ।हर दिल में भगवन बसतें है तो फिर देर किस बात कि इंडिया ........प्यार बांटते चलो । प्यार लो-प्यार दो........
डॉ.शालिनीअगम
2010
Saturday, April 24, 2010
कुछ शब्द मेरे अपने (Tip of the day)
Namaste India
1-जिस तरह हम अच्छी किताब को केवल अपने लाभ के लिए चुनते हैं उसी तरह से साथी या समाज भी ऐसा
चुनें जिससे कि हमें कुछ लाभ हो ।
२-सबसे अच्छा मित्र वही है कि जिससे अपना किसी तरह से सुधार हो और आनंद की वृद्धि हो ।
३-कडुवी ,हानिकारक, दुष्ट भावों को भड़काने वाली, भ्रम पूर्ण बाते ना कहें
४- मधुर,नम्र,विनय- युक्त ,उचित और सद्भावना युक्त बातें करें ,जिससे दूसरों प़र अच्छा प्रभाव पड़े ,उन्हें प्रोत्साहन
मिले ,ज्ञान वृद्धि हो,शांति मिले तथा सन्मार्ग प़र चलने कि प्रेरणा हो।
५-ज्यादा बक-बक करने कि कोशिश ना करें अनावश्यक,अप्रासंगिक,अरुचिकर बातें करना,अपने आगे किसी
की सुनना ही नहीं ,हर घडी चबड़-चबड़ जीभ चलाते रहना, अपनी योग्यता से बाहेर कि बातें करना ,शेखी बघारना, वाणी के दुर्गुण हैं याद रखना ....एसे लोगों से लोग दूर भागने लागतें हैं ।
५-हम जैसा व्यवहार दूसरों से चाहतें हैं ,वैसा व्यवहार हम भी खुद दूसरों के साथ करें ।
६- आपसी सहयोग कि भावना को समझें ,याद रहे एक- दूसरे के सहयोग में ही हम सबकी उन्नति है ।
Wednesday, April 21, 2010
Monday, April 19, 2010
निरंतर .........
तिल-तिल कर कसकती ,
इस जिंदगी का
खात्मा कर दूं अभी,
इन खोखले आदर्शों
की माला को ,
तोड़ दूं अभी,
इन गलती-सडती साँसों का
आवागमन रोक दूं अभी ,
इस भरी-पूरी दुनियां में
क्यों हूँ मैं अकेली ?
मेरे अपने मुझे स्वीकारते क्यों नहीं?
तो क्यों?...............................
इन संस्कारों की दुहाई देकर,
इस आशाहीन ध्येय रहित
जीवन को, जिए जा रहीं हूँ मैं ................................
निरंतर .............
2010
प्रथम मिलन कि उस बेला प़र
प्रथम मिलन कि उस बेला प़र
अश्रु-विगलित नेत्रों से जब,
देखा उन्होंने पहली बार,
मन मैं कुछ हुआ था तब,
आशाएं थीं जागी हजार,
समर्पण कि इच्छा उठी,
न्योछावर की चाह नयी ,
जीवन-साथी बना लें मुझको,
वारू तन-मन क्षण-क्षण,
वारू तन-मन क्षण-क्षण,
मन के तारों की लय से,
उर तरंगित होने लगे,
मूक दृष्टि से में और वो,
प्रेम-गीत भी गाने लगे।
त्याग-जल के सिंचन से ,
प्रेम-बेल विकसित होगी,
एक-दूसरे के बनकर ही,
जीवन-समर में जय होगी।
जीवन-समर में जय होगी।
डॉ। शालिनीअगम
1989
TIP OF THE DAY
ये ज़िन्दगी बेहद खूबसूरत है,
अगर हम चाहें तो और भी ख़ूबसूरत हो सकती है ,
क्योंकि हमारी ख्वाहिश ये सृष्टि मानती है और उसे उसे पूरा करती है.
ये अलौकिक शक्तियां मेरे लियें अलादीन का चिराग़ हैं जो मांगती हूँ मिलता है.......
.......पैसा, प्यार, शौहरत , स्वास्थ्य .
हर पल जो चाहतो हो मांगो सृष्टि से ,
विश्वास करो कि जो माँगा है ,बस पा ही लिया है,
महसूस करो कि जो माँगा, उसे पाने के बाद कितनी ख़ुशी मिल रही है,
में जो चाहती हूँ ,उस पर विचार करती हूँ, कागज पर लिखती हूँ,
फिर अटूट विश्वास करती हूँ,आशावादी सोच रखती हूँ ,
फिर मैं उसे पा लेती हूँ .
हम सबको अपने और सृष्टि के बीच ताल-मेल बिठाना आना चाहिए
जब भी हालत बदलने हों ,पहले विचार बदलो .
क्योंकि मैं प्रकृति का , सृष्टि का, धन्यवाद करती हूँ , ज्यादा पाना चाहती हूँ तो शुक्रिया करती हूँ
इच्छा -शक्ति से क्या नहीं हो सकता ,आप अपनी इच्छा-शक्ति और यकीन से आप क्या नहीं पा सकते.
अपनी उम्मीद से बड़ी कोई तस्वीर , कोई इच्छा देखो,सोचो, आँखे बंद करके महसूस करें कि वह मजिल मैंने पा ली है .
डॉ.शालिनीअगम
2010
अगर हम चाहें तो और भी ख़ूबसूरत हो सकती है ,
क्योंकि हमारी ख्वाहिश ये सृष्टि मानती है और उसे उसे पूरा करती है.
ये अलौकिक शक्तियां मेरे लियें अलादीन का चिराग़ हैं जो मांगती हूँ मिलता है.......
.......पैसा, प्यार, शौहरत , स्वास्थ्य .
हर पल जो चाहतो हो मांगो सृष्टि से ,
विश्वास करो कि जो माँगा है ,बस पा ही लिया है,
महसूस करो कि जो माँगा, उसे पाने के बाद कितनी ख़ुशी मिल रही है,
में जो चाहती हूँ ,उस पर विचार करती हूँ, कागज पर लिखती हूँ,
फिर अटूट विश्वास करती हूँ,आशावादी सोच रखती हूँ ,
फिर मैं उसे पा लेती हूँ .
हम सबको अपने और सृष्टि के बीच ताल-मेल बिठाना आना चाहिए
जब भी हालत बदलने हों ,पहले विचार बदलो .
क्योंकि मैं प्रकृति का , सृष्टि का, धन्यवाद करती हूँ , ज्यादा पाना चाहती हूँ तो शुक्रिया करती हूँ
इच्छा -शक्ति से क्या नहीं हो सकता ,आप अपनी इच्छा-शक्ति और यकीन से आप क्या नहीं पा सकते.
अपनी उम्मीद से बड़ी कोई तस्वीर , कोई इच्छा देखो,सोचो, आँखे बंद करके महसूस करें कि वह मजिल मैंने पा ली है .
डॉ.शालिनीअगम
2010
Sunday, April 18, 2010
सौंदर्य का सार
सौंदर्य का सार
सौंदर्य ........................................
भला लगता है नेत्रों को,
सुखद लगता है स्पर्श से,
सम्पूर्ण विश्व एक अथाह सागर ,
जिसमें भरा है सौंदर्य अपार ,
हर चर-अचर हर प्राणी ,
सौंदर्य को पूजता है बारम्बार !
सौंदर्य का कोष है पृथ्वी-लोक ,
सौंदर्य का भण्डार है देव- लोक,
प्रत्येक पूजित-अपूजित व्यक्ति,
कल्पना करता है तो केवल ,
सौंदर्य को पाने की ,
परन्तु......................
ऐसे कितने मिलते हैं यंहा ,
जो रूपता-कुरूपता को,
समान पलड़े प़र तोलते हैं ,
जो चाहतें हैं मानव-मात्र को
मानते हैं दोनों को समान?शायद कुछ एक- ही ,
कहीं ये एक समझौता तो नहीं ,
अपने को सर्वश्रेष्ठ दिखाने का,
औरों से भिन्न कहलाने का,
कोई प्रयत्न तो नहीं ?
नहीं!.......................
ये कठोर सत्य है.
वे वस्तुत: प्रेमी हैं ,
मन कि सुन्दरता के,
शारीरिक सौंदर्य जिन्हें ,
भटकता नहीं है,
वास्तविक जिंदगी से दूर,
उन्हें ले जाता नहीं है;
डॉ.शालिनीअगम
1989
सौंदर्य ........................................
भला लगता है नेत्रों को,
सुखद लगता है स्पर्श से,
सम्पूर्ण विश्व एक अथाह सागर ,
जिसमें भरा है सौंदर्य अपार ,
हर चर-अचर हर प्राणी ,
सौंदर्य को पूजता है बारम्बार !
सौंदर्य का कोष है पृथ्वी-लोक ,
सौंदर्य का भण्डार है देव- लोक,
प्रत्येक पूजित-अपूजित व्यक्ति,
कल्पना करता है तो केवल ,
सौंदर्य को पाने की ,
परन्तु......................
ऐसे कितने मिलते हैं यंहा ,
जो रूपता-कुरूपता को,
समान पलड़े प़र तोलते हैं ,
जो चाहतें हैं मानव-मात्र को
मानते हैं दोनों को समान?शायद कुछ एक- ही ,
कहीं ये एक समझौता तो नहीं ,
अपने को सर्वश्रेष्ठ दिखाने का,
औरों से भिन्न कहलाने का,
कोई प्रयत्न तो नहीं ?
नहीं!.......................
ये कठोर सत्य है.
वे वस्तुत: प्रेमी हैं ,
मन कि सुन्दरता के,
शारीरिक सौंदर्य जिन्हें ,
भटकता नहीं है,
वास्तविक जिंदगी से दूर,
उन्हें ले जाता नहीं है;
डॉ.शालिनीअगम
1989
कुछ शब्द मेरे अपने]
पिता के लिए
गुप्तजी ने लिखा था कि..........
राम तुम इश्वर नहीं मानव हो क्या,
प़र मैं कहती हूँ पिताश्री,
राम! तुम मानव नहीं इश्वर हो क्या?
सदैव सहज मुस्कान,निस्पृहता,
मौन ,उदात्त ,निस्संगता से,
अपने भीतर लबालब स्नेह से भरे,
इस धरती प़र, संबंधों प़र,
स्नेह- निर्झर से बहते ,
मैं जानती हूँ ............
आपका मौन अभिमान नहीं,
मनन होता है ,
निरावेगी रूप के पीछे ,
प्रेम का आवेग होता है,
सहज , सरल , व्यक्तित्व ,
बेहद निर्मल , विनयशील है,
पिता! आप ही नम्र आत्मीय ,
मर्मज्ञ प्रबुद्ध हैं ,
दिखावटी संभ्रांत नहीं ,
एकान्तिक भोले-भंडारी हैं ,
जो अपनी उपस्तिथि से ,
अपना परिवेश अनजाने में ही,
सुवासित करते रहतें हैं,
..................................
अगर दो में से एक भी संतान को,
आपके कुछ गुण उधार लेकर (हकपूर्वक)
उनमें डाल सकूं ,
अगर जीवन-समर में ,
कहीं भीं कभी भी
स्वम जीत कर आपका ,
मान रख सकूं ,
तो हे राम ! राम -सुता होने ,
का दायित्व निभा सकूं,
................................
पिता के जन्म-दिन प़र,
५ सितम्बर १९९५
डॉ.शालिनीअगम
गुप्तजी ने लिखा था कि..........
राम तुम इश्वर नहीं मानव हो क्या,
प़र मैं कहती हूँ पिताश्री,
राम! तुम मानव नहीं इश्वर हो क्या?
सदैव सहज मुस्कान,निस्पृहता,
मौन ,उदात्त ,निस्संगता से,
अपने भीतर लबालब स्नेह से भरे,
इस धरती प़र, संबंधों प़र,
स्नेह- निर्झर से बहते ,
मैं जानती हूँ ............
आपका मौन अभिमान नहीं,
मनन होता है ,
निरावेगी रूप के पीछे ,
प्रेम का आवेग होता है,
सहज , सरल , व्यक्तित्व ,
बेहद निर्मल , विनयशील है,
पिता! आप ही नम्र आत्मीय ,
मर्मज्ञ प्रबुद्ध हैं ,
दिखावटी संभ्रांत नहीं ,
एकान्तिक भोले-भंडारी हैं ,
जो अपनी उपस्तिथि से ,
अपना परिवेश अनजाने में ही,
सुवासित करते रहतें हैं,
..................................
अगर दो में से एक भी संतान को,
आपके कुछ गुण उधार लेकर (हकपूर्वक)
उनमें डाल सकूं ,
अगर जीवन-समर में ,
कहीं भीं कभी भी
स्वम जीत कर आपका ,
मान रख सकूं ,
तो हे राम ! राम -सुता होने ,
का दायित्व निभा सकूं,
................................
पिता के जन्म-दिन प़र,
५ सितम्बर १९९५
डॉ.शालिनीअगम
Saturday, April 17, 2010
भरोसा
हाथों का स्पर्श हटा लेने से ,
मन का विश्वास कम नहीं हो जाता,
अपनों से दृष्टि घुमा लेने से,
रिश्तों का भान कम नहीं हो जाता,
रवि के बादलों में छिप जाने से ,
दिन का उजाला , कम नहीं हो जाता,
पूर्णमासी का चाँद निकलने प़र भी,
रात्रि का अन्धकार समाप्त नहीं हो जाता,
बांध को बांधने प़र भी ,
मचलती धारा का वेग कम नहीं हो जाता;
अपनों के लाख तिरस्कार के बाद भी ,
उनकी घोर घृणा के बाद भी,
उन प़र भरोसा कम नहीं हो जाता!
शालिनिअगम
१९९
मन का विश्वास कम नहीं हो जाता,
अपनों से दृष्टि घुमा लेने से,
रिश्तों का भान कम नहीं हो जाता,
रवि के बादलों में छिप जाने से ,
दिन का उजाला , कम नहीं हो जाता,
पूर्णमासी का चाँद निकलने प़र भी,
रात्रि का अन्धकार समाप्त नहीं हो जाता,
बांध को बांधने प़र भी ,
मचलती धारा का वेग कम नहीं हो जाता;
अपनों के लाख तिरस्कार के बाद भी ,
उनकी घोर घृणा के बाद भी,
उन प़र भरोसा कम नहीं हो जाता!
शालिनिअगम
१९९
Tip of the day
रिश्तों को खराब करने वाले कारण
* तनाव
* आपसी बातचीत का आभाव
* खीज
* तुच्छ विचारों का होना
* आपसी मेल-भाव का ना होना
* प्रशंसा का आभाव
* आत्मप्रशंसा का आभाव
* आपसी संदेह / शक
* आलस
* अपने-आप में ही रम जाना
* धैर्य हीनता
* आत्महीनता का बोध
* ख़राब स्वास्थ्य
* अविश्वास
* क्रोध
* आपसी सम्मान का आभाव
* नैतिकता का पतन
* एक दूसरे की सहायता ना करना
* आपसी मतभेद
* उबाऊ वातावरण
* अप्रसन्नता
डॉ.शालिनीअगम
2010
* तनाव
* आपसी बातचीत का आभाव
* खीज
* तुच्छ विचारों का होना
* आपसी मेल-भाव का ना होना
* प्रशंसा का आभाव
* आत्मप्रशंसा का आभाव
* आपसी संदेह / शक
* आलस
* अपने-आप में ही रम जाना
* धैर्य हीनता
* आत्महीनता का बोध
* ख़राब स्वास्थ्य
* अविश्वास
* क्रोध
* आपसी सम्मान का आभाव
* नैतिकता का पतन
* एक दूसरे की सहायता ना करना
* आपसी मतभेद
* उबाऊ वातावरण
* अप्रसन्नता
डॉ.शालिनीअगम
2010
Friday, April 16, 2010
Tip of the day
सफलता को दूर रखने वाली कुछ रुकावटें
1. घमंड
2. हार का डर/ सफलता प़र यकीन ना होना
3. आत्मध्येय का आभाव
4. दृढ़ निश्चयी न होना
5. पारिवारिक जिम्मेदारियां
6. धन-सम्बन्धी समस्याएं
7. एकाग्रता का आभाव
8. अपनी बात पर अडिग न रहना
9. व्यापार अथवा व्यवहार में भरोसा ना दिखाना
10. आत्मप्रशंसा ना करना.
डॉ.शालिनीअगम
2010
1. घमंड
2. हार का डर/ सफलता प़र यकीन ना होना
3. आत्मध्येय का आभाव
4. दृढ़ निश्चयी न होना
5. पारिवारिक जिम्मेदारियां
6. धन-सम्बन्धी समस्याएं
7. एकाग्रता का आभाव
8. अपनी बात पर अडिग न रहना
9. व्यापार अथवा व्यवहार में भरोसा ना दिखाना
10. आत्मप्रशंसा ना करना.
डॉ.शालिनीअगम
2010
Tuesday, April 13, 2010
kuch shabd mere apne
उसकी छवि के आकर्षण में ,
मै मुग्ध हुई सुधि भूल गयी,
ह्रदय से प्रणय- गान आये होठों तक,
मन में हिलोरे जगाकर रह गए,
आवेश में लिया प्रियतम ने जब अपने;
मन पिघला प्रेम-रस बहने लगा ,
खिंच कर मधु भरे आलिंगन में,
तन झूमा, स्व दहकने लगा ;
डॉ.शालिनीअगम
1990
मै मुग्ध हुई सुधि भूल गयी,
ह्रदय से प्रणय- गान आये होठों तक,
मन में हिलोरे जगाकर रह गए,
आवेश में लिया प्रियतम ने जब अपने;
मन पिघला प्रेम-रस बहने लगा ,
खिंच कर मधु भरे आलिंगन में,
तन झूमा, स्व दहकने लगा ;
डॉ.शालिनीअगम
1990
Monday, April 12, 2010
kuchshabdmereapne
मैं तड़प रही मीन संमान,
जल से बाहर फेंक दी गयी,
सब कहें अंह,सूरज-चाँद -सितारे,
फूल- फल सब तेरे पास,
फिर कहे तू हो गयी उदास,
जीवन के अनगिनत रूप यंहा,
जल के भीतर ये सम्पदा कंहा,
भौतिक जगत के आनंद सभी ,
पर .........
तू घुटकर मरने को तैयार अभी,
न रस, न सुगंध,न रूप,से सरोकार,
मुझे तो बस जाना है जल के उस पार,
मैं जल क़ी रानी , जल मेरा प्रियतम,
जल मैं ही रानी मेरा निवास,
वो है अब समीप मेरे,
बाकी न बची अब कोई आस:
शालिनिअगम
1989
जल से बाहर फेंक दी गयी,
सब कहें अंह,सूरज-चाँद -सितारे,
फूल- फल सब तेरे पास,
फिर कहे तू हो गयी उदास,
जीवन के अनगिनत रूप यंहा,
जल के भीतर ये सम्पदा कंहा,
भौतिक जगत के आनंद सभी ,
पर .........
तू घुटकर मरने को तैयार अभी,
न रस, न सुगंध,न रूप,से सरोकार,
मुझे तो बस जाना है जल के उस पार,
मैं जल क़ी रानी , जल मेरा प्रियतम,
जल मैं ही रानी मेरा निवास,
वो है अब समीप मेरे,
बाकी न बची अब कोई आस:
शालिनिअगम
1989
freedom
उड़ जाऊँ नील गगन में
पंख फैला कर अपने,
बतीयाऊँ बादलों से ,
खेलूँ खुले गगन में,
छेड़ू पंछियौ को,
फिर. चुपके से..
उतरू सजना के अंगना,
बनूँ मन मोहनी,
बोलूं मीठी बोली,
जब हाथ बढें प्रीतम का,
फिर फुर्र से उड़ जाऊँ मैं.
shaliniagam
पंख फैला कर अपने,
बतीयाऊँ बादलों से ,
खेलूँ खुले गगन में,
छेड़ू पंछियौ को,
फिर. चुपके से..
उतरू सजना के अंगना,
बनूँ मन मोहनी,
बोलूं मीठी बोली,
जब हाथ बढें प्रीतम का,
फिर फुर्र से उड़ जाऊँ मैं.
shaliniagam
Friday, April 9, 2010
Reiki
REIKI and PRANIC HEALING are both energy healing modalities.
THIS ARTICLE EXPLAINS THE SIMILARITIES & DIFFERENCES
REIKI is a very good healing modality that has helped many people, primarily through teaching those with little or no healing experience to access healing energies to help themselves and their loved ones. According to the REIKI Masters who have attended PRANIC HEALING classes (over 500 REIKI Masters have attended PRANIC HEALING classes since 1990 in the United States alone), as well as our own observations as a teachers and healers, here are some of the major differences between PRANIC HEALING and REIKI :
1. PRANIC HEALING is a complete non touch system of healing. REIKI practitioners touch the body most of the time, but they also employ some non-touch techniques.
2. PRANIC HEALING teaches its students to "scan," or actually feel the aura, to assess areas of energetic depletion and congestion, or stagnation, which helps identify problem areas that need healing. REIKI doesn't use any energy assessment technique but relies on the intuition of the practitioner.
3. PRANIC HEALING employs a manual cleansing technique called "sweeping" to remove blockages and stagnant energies before giving fresh energy to the patient; REIKI has no comparable technique. PRANIC HEALING believes cleansing is critical to the healing process because dis¬eased energies and negative emotions have to be first removed before energizing the body to or they may manifest physically - and sometimes dramatically - through vomiting, loose bowel movement, a rash, a flu or other symptoms. Such expelling is often labeled as a "detoxification," however, it is quite uncomfortable and can be prevented with proper cleansing. In fact, cleansing alone often allows the body to quickly heal itself by permitting fresh energy to penetrate deeper into the body to be utilized as hea¬ing fuel.
4. PRANIC HEALING employs a "cook¬book" approach to healing. According to thousands of case reports gathered by the founder of PRANIC HEALING, Grandmas¬ter Choa Kok Sui, every ailment produces a unique set of energy patterns that can be identified in the energy body's 11 major chakras and numerous meridians. REIKI has essentially one energy technique - facilitat¬ing the flow of REIKI energy into whatever area needs healing - to address all health problems. PRANIC HEALING, by contrast, uses specific energetic routines of cleans¬ing and energizing that are matched to the specific patterns of energetic deficiencies caused by a particular illness. PRANIC HEALING, thus, offers a quicker, more targeted and more effective system of healing.
5. PRANIC HEALING teaches its practitioners to draw energy directly from the sun, air, ground and other spiritual sources and then project this prana into their subjects' auras. REIKI practitioners have to be "initi¬ated" by a REIKI Master and given "sym¬bols" to access the healing energies. It's simi¬lar to having to obtain a "password." PRANIC HEALING employs simple breathing and visualization exercises that allow anyone to heal immediately with mini¬mal instruction.
6. PRANIC HEALING includes a practice called "energetic hygiene" that is rarely found in any healing modality, including REIKI. Energetic hygiene is a set of practices breathing, dietary recommendations and other cleansing routines - that are designed to keep your personal energy tank clean and full. REIKI Masters attending PRANIC HEALING classes agree that en¬ergetic hygiene is one of the greatest ben¬efits of the class, particularly the techniques that enable them to cleanse themselves of contaminating energy they pick up from cli¬ents and how to prevent subjects or nega¬tive people from draining their life force. This is particularly important for not only REIKI practitioners but also other healthcare providers because these people frequently experience the pain or the ailment of their subjects become drained and tired after heal¬ing someone.
7. PRANIC HEALING employs the use of color energies that dramatically accelerate the body's innate healing abilities. In fact, many REIKI Masters often say that if they have a subject who wants immediate relief or rapid healings they use PRANIC HEALING particularly, the colored pranic techniques. But, if they have a subject who simply wants a relaxing and soothing session, they use REIKI.
In summary, both PRANIC HEALING and REIKI are excellent healing modalities and help alleviate pain and suffering. However, PRANIC HEALING gives you the tools to produce faster and more immediate results while "immunizing" you against contamination from the people you are healing. PRANIC HEALING complements any and all healing modalities.
We always tell everyone, whatever your healing technique - shamanism, Native American techniques, Chinese chi kung, REIKI, massage therapy, chiropractic, Christian laying on of hands and even traditional orthodox medicine - PRANIC HEALING will complement and enhance it. We are here together to help create health and happiness for all.
THIS ARTICLE EXPLAINS THE SIMILARITIES & DIFFERENCES
REIKI is a very good healing modality that has helped many people, primarily through teaching those with little or no healing experience to access healing energies to help themselves and their loved ones. According to the REIKI Masters who have attended PRANIC HEALING classes (over 500 REIKI Masters have attended PRANIC HEALING classes since 1990 in the United States alone), as well as our own observations as a teachers and healers, here are some of the major differences between PRANIC HEALING and REIKI :
1. PRANIC HEALING is a complete non touch system of healing. REIKI practitioners touch the body most of the time, but they also employ some non-touch techniques.
2. PRANIC HEALING teaches its students to "scan," or actually feel the aura, to assess areas of energetic depletion and congestion, or stagnation, which helps identify problem areas that need healing. REIKI doesn't use any energy assessment technique but relies on the intuition of the practitioner.
3. PRANIC HEALING employs a manual cleansing technique called "sweeping" to remove blockages and stagnant energies before giving fresh energy to the patient; REIKI has no comparable technique. PRANIC HEALING believes cleansing is critical to the healing process because dis¬eased energies and negative emotions have to be first removed before energizing the body to or they may manifest physically - and sometimes dramatically - through vomiting, loose bowel movement, a rash, a flu or other symptoms. Such expelling is often labeled as a "detoxification," however, it is quite uncomfortable and can be prevented with proper cleansing. In fact, cleansing alone often allows the body to quickly heal itself by permitting fresh energy to penetrate deeper into the body to be utilized as hea¬ing fuel.
4. PRANIC HEALING employs a "cook¬book" approach to healing. According to thousands of case reports gathered by the founder of PRANIC HEALING, Grandmas¬ter Choa Kok Sui, every ailment produces a unique set of energy patterns that can be identified in the energy body's 11 major chakras and numerous meridians. REIKI has essentially one energy technique - facilitat¬ing the flow of REIKI energy into whatever area needs healing - to address all health problems. PRANIC HEALING, by contrast, uses specific energetic routines of cleans¬ing and energizing that are matched to the specific patterns of energetic deficiencies caused by a particular illness. PRANIC HEALING, thus, offers a quicker, more targeted and more effective system of healing.
5. PRANIC HEALING teaches its practitioners to draw energy directly from the sun, air, ground and other spiritual sources and then project this prana into their subjects' auras. REIKI practitioners have to be "initi¬ated" by a REIKI Master and given "sym¬bols" to access the healing energies. It's simi¬lar to having to obtain a "password." PRANIC HEALING employs simple breathing and visualization exercises that allow anyone to heal immediately with mini¬mal instruction.
6. PRANIC HEALING includes a practice called "energetic hygiene" that is rarely found in any healing modality, including REIKI. Energetic hygiene is a set of practices breathing, dietary recommendations and other cleansing routines - that are designed to keep your personal energy tank clean and full. REIKI Masters attending PRANIC HEALING classes agree that en¬ergetic hygiene is one of the greatest ben¬efits of the class, particularly the techniques that enable them to cleanse themselves of contaminating energy they pick up from cli¬ents and how to prevent subjects or nega¬tive people from draining their life force. This is particularly important for not only REIKI practitioners but also other healthcare providers because these people frequently experience the pain or the ailment of their subjects become drained and tired after heal¬ing someone.
7. PRANIC HEALING employs the use of color energies that dramatically accelerate the body's innate healing abilities. In fact, many REIKI Masters often say that if they have a subject who wants immediate relief or rapid healings they use PRANIC HEALING particularly, the colored pranic techniques. But, if they have a subject who simply wants a relaxing and soothing session, they use REIKI.
In summary, both PRANIC HEALING and REIKI are excellent healing modalities and help alleviate pain and suffering. However, PRANIC HEALING gives you the tools to produce faster and more immediate results while "immunizing" you against contamination from the people you are healing. PRANIC HEALING complements any and all healing modalities.
We always tell everyone, whatever your healing technique - shamanism, Native American techniques, Chinese chi kung, REIKI, massage therapy, chiropractic, Christian laying on of hands and even traditional orthodox medicine - PRANIC HEALING will complement and enhance it. We are here together to help create health and happiness for all.
About Reiki
I am a Reiki Master as well as a Certified Healing Touch Practitioner. I explain to clients that Reiki is channeling the universal life energy to stimulate the integration of mind/body/spirit to enhance the natural healing mechanism. Healing Touch is a curriculum which provides training in a variety of techniques to clear, align & restore balance to the human energy system through touch, it influences the body, emotions, mind & spirit. Healing Touch is a method of altering the body's energy system to influence self-healing.
The similarity between Healing Touch and Reiki is that they are both energy medicine. The difference between Healing Touch and Reiki is that in Healing Touch we have more techniques available to us for specific conditions, such as back problems. There have been a great many research studies done on Healing Touch and it's efficacy. Healing Touch is used in hospitals. As a member of Healing Touch International we have standards of practice and a code of ethics. Our certification procedures are stringent and our work is documented. When someone does a Healing Touch treatment and documents the work, another practitioner can look at the documentation and know exactly what techniques were done and how they were done. So, the difference is Healing Touch has uniform standards in training and certification; consistency in technique and documentation; more techniques available for treatment of conditions
Dr.Shalini Aggarwal
Aarogyam
The spiritual reiki healing & training center
www.aarogyamreiki.com
shalini8989@gmail.com
9212704757
.
The similarity between Healing Touch and Reiki is that they are both energy medicine. The difference between Healing Touch and Reiki is that in Healing Touch we have more techniques available to us for specific conditions, such as back problems. There have been a great many research studies done on Healing Touch and it's efficacy. Healing Touch is used in hospitals. As a member of Healing Touch International we have standards of practice and a code of ethics. Our certification procedures are stringent and our work is documented. When someone does a Healing Touch treatment and documents the work, another practitioner can look at the documentation and know exactly what techniques were done and how they were done. So, the difference is Healing Touch has uniform standards in training and certification; consistency in technique and documentation; more techniques available for treatment of conditions
Dr.Shalini Aggarwal
Aarogyam
The spiritual reiki healing & training center
www.aarogyamreiki.com
shalini8989@gmail.com
9212704757
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i want to tell about Pranic Healing
Commonly these are some of the benefits experienced by people having recieved Pranic Healing
• Increased energy levels.
• You become stronger and healthier.
• Your recovery and good health returns quickly.
• Some people leave empowered to heal themselves.
• Often easily remove aches and pains.
• Learn how you can heal your energy body and improve your wellbeing.
• Learn techniques to increase and maximize your energy every day.
• Enhance your energy and your life through the removal of old, used up energy or prana..
• Increase your own spiritual connection.
Feel better than you’ve felt in a long time.
• Increased energy levels.
• You become stronger and healthier.
• Your recovery and good health returns quickly.
• Some people leave empowered to heal themselves.
• Often easily remove aches and pains.
• Learn how you can heal your energy body and improve your wellbeing.
• Learn techniques to increase and maximize your energy every day.
• Enhance your energy and your life through the removal of old, used up energy or prana..
• Increase your own spiritual connection.
Feel better than you’ve felt in a long time.
saath-sath
साथ-साथ
जीवन की शाम होने से पहले,
उसमे कुछ सुनहेरी यादें जोड़ने दो!
रिश्ते की रात को गहराने से पहले,
शाम को मादक बन जाने दो!
उम्र के आखिरी पडाव पर आने से पहले,,
मेरे यौवन को भी महकने दो!
अरमानो के फूलों को मुरझाने से पहले,
उनकी स्मित सुगंध मुझे लेने दो!
लोगो की भीड़ में गुमने से पहले,
अकेले में............. सिर्फ मैं और तुम;;;
हम दोनों में एक के बिछड़ने से पहेले,
साथ-साथ थोडा-सा जीवन,
जी लेने दो! अपना लो प्रियतम!
..............२००९
............................................शालिनीअगम.
जीवन की शाम होने से पहले,
उसमे कुछ सुनहेरी यादें जोड़ने दो!
रिश्ते की रात को गहराने से पहले,
शाम को मादक बन जाने दो!
उम्र के आखिरी पडाव पर आने से पहले,,
मेरे यौवन को भी महकने दो!
अरमानो के फूलों को मुरझाने से पहले,
उनकी स्मित सुगंध मुझे लेने दो!
लोगो की भीड़ में गुमने से पहले,
अकेले में............. सिर्फ मैं और तुम;;;
हम दोनों में एक के बिछड़ने से पहेले,
साथ-साथ थोडा-सा जीवन,
जी लेने दो! अपना लो प्रियतम!
..............२००९
............................................शालिनीअगम.
sachchai jeewan ki
सच्चाई जीवन की ;
मोती की माला टूटने परर हम झुक-झुक कर उसे समेटते है,बार-बार गिनते है की कोई मोती कम तो नहीं, पर अपने किसी का ह्रदय कितनी बार टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर गया, इसकी किसी को परवाह नहीं. दूसरे के आंसू पोंछने को तत्पर कभी कोई नहीं सोचता की मेरे घर में मुझे सबसे अधिक प्यार करने वाला/वाली की आँखों में मेरे कारण नमी तो नहीं? क्या मेरे अपने के स्वतंत्र जीवन का मई हर पल बंधक तो नहीं?????????????????
..........................shaliniagam
मोती की माला टूटने परर हम झुक-झुक कर उसे समेटते है,बार-बार गिनते है की कोई मोती कम तो नहीं, पर अपने किसी का ह्रदय कितनी बार टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर गया, इसकी किसी को परवाह नहीं. दूसरे के आंसू पोंछने को तत्पर कभी कोई नहीं सोचता की मेरे घर में मुझे सबसे अधिक प्यार करने वाला/वाली की आँखों में मेरे कारण नमी तो नहीं? क्या मेरे अपने के स्वतंत्र जीवन का मई हर पल बंधक तो नहीं?????????????????
..........................shaliniagam
kavita
कविता की मिट्टी की सुगंध को,
सूंघा तो अनेको बार है मैने:
पर उसमे बीज बन कर डलना
और पल्लवित होना बहुत कठिन है:
कविता के सागर की लहरों का घुमडना,
उमडना देखा तो है अक्सर:
पर उसमें डूब कर उतरने
का साहस बहुत कठिन है:
कैसी होती है कविता?
क्यों होती है कविता?
कब बन जाती है कविता?
कवि के ह्रदये की गहनतम गुफा
में प्रकाश बन पहुँचना
बहुत कठिन है.
रास्ते पर नंगे पाँवों जाती
उस विरहन को देखा तो बहुत है
पर उसके मन की असीम पीड़ा,
को समझ पाना बहुत कठिन है:
कविता के नभ के विस्तार,
को पलकें उठाकर देखा तो है हमने,
पर उस तक पहुँचती सीढ़ीयों पर,
चढ़ पाना कितना कठिन है:
कविता के झरझराते निर्झर
झरने का जल पिया तो बहुत है,
पर उसमे तिनका बन बह कर,
सरिता में मिल जाना कितना कठिन है
dr. Shaliniagam
सूंघा तो अनेको बार है मैने:
पर उसमे बीज बन कर डलना
और पल्लवित होना बहुत कठिन है:
कविता के सागर की लहरों का घुमडना,
उमडना देखा तो है अक्सर:
पर उसमें डूब कर उतरने
का साहस बहुत कठिन है:
कैसी होती है कविता?
क्यों होती है कविता?
कब बन जाती है कविता?
कवि के ह्रदये की गहनतम गुफा
में प्रकाश बन पहुँचना
बहुत कठिन है.
रास्ते पर नंगे पाँवों जाती
उस विरहन को देखा तो बहुत है
पर उसके मन की असीम पीड़ा,
को समझ पाना बहुत कठिन है:
कविता के नभ के विस्तार,
को पलकें उठाकर देखा तो है हमने,
पर उस तक पहुँचती सीढ़ीयों पर,
चढ़ पाना कितना कठिन है:
कविता के झरझराते निर्झर
झरने का जल पिया तो बहुत है,
पर उसमे तिनका बन बह कर,
सरिता में मिल जाना कितना कठिन है
dr. Shaliniagam
Pita ke liye
पिता के लिए,
गुप्त जी ने लिखा था कि,
राम तुम इश्वर नहीं मानव हो क्या?
पर मैं कहती हूँ पिताश्री
राम!
तुम न्मनव नहीं इश्वर हो क्या,
सदैव सहज,मुस्कान निस्प्रहिता,
मौन,उदात्त निस्संगता से,
अपने भीतर भरे लबालब स्नेह से भरे,
इस धरती पर,संबंधो पर,
स्नेह निर्झर से बहते.
मैं जानती हूँ, आपका मौन .
गुप्त जी ने लिखा था कि,
राम तुम इश्वर नहीं मानव हो क्या?
पर मैं कहती हूँ पिताश्री
राम!
तुम न्मनव नहीं इश्वर हो क्या,
सदैव सहज,मुस्कान निस्प्रहिता,
मौन,उदात्त निस्संगता से,
अपने भीतर भरे लबालब स्नेह से भरे,
इस धरती पर,संबंधो पर,
स्नेह निर्झर से बहते.
मैं जानती हूँ, आपका मौन .
Mere Apne
''मेरे अपने,
'कुछ गुमसुम से,
कुछ चुप-चुप से,
निर्निमेष शून्य में
तकते है!
अपने इसी व्यक्तित्व से
क्षण भर में ही
मोह लेते है''
१९८९
..................शालिनीअगम
'कुछ गुमसुम से,
कुछ चुप-चुप से,
निर्निमेष शून्य में
तकते है!
अपने इसी व्यक्तित्व से
क्षण भर में ही
मोह लेते है''
१९८९
..................शालिनीअगम
mera dgar
मेरा घर,
सुबह की धूप में गुनगुनाता,
कड़कती ठण्ड में ठिठुरता मेरा घर,
सायं की लाली में सुर्मता
दोपहर की गर्मी में तपता मेरा घर!
रिमझिम फूहारो में भीगता
चाँद की चांदनी में चमचमाता मेरा घर,
ओस की बूंदों में नहाता,
इन्द्रधनुषी रंगों में रंगता मेरा घर!
सावन की बौछारों में मचलता
शीतल बयार में इतराता मेरा घर!
क्या जानू मैं स्वाग क्या है,
इन्द्र लोक का वैभव क्या है,
समस्त लोक का नैसर्गिक सुख,
देता लुटाता मेरा घर
.......................सदैव
......................shaliniiagam
सुबह की धूप में गुनगुनाता,
कड़कती ठण्ड में ठिठुरता मेरा घर,
सायं की लाली में सुर्मता
दोपहर की गर्मी में तपता मेरा घर!
रिमझिम फूहारो में भीगता
चाँद की चांदनी में चमचमाता मेरा घर,
ओस की बूंदों में नहाता,
इन्द्रधनुषी रंगों में रंगता मेरा घर!
सावन की बौछारों में मचलता
शीतल बयार में इतराता मेरा घर!
क्या जानू मैं स्वाग क्या है,
इन्द्र लोक का वैभव क्या है,
समस्त लोक का नैसर्गिक सुख,
देता लुटाता मेरा घर
.......................सदैव
......................shaliniiagam
Thursday, April 1, 2010
saath-saath
साथ-साथ
जीवन की शाम होने से पहले,
उसमे कुछ सुनहेरी यादें जोड़ने दो!
रिश्ते की रात को गहराने से पहले,
शाम को मादक बन जाने दो!
उम्र के आखिरी पडाव पर आने से पहले,,
मेरे यौवन को भी महकने दो!
अरमानो के फूलों को मुरझाने से पहले,
उनकी स्मित सुगंध मुझे लेने दो!
लोगो की भीड़ में गुमने से पहले,
अकेले में............. सिर्फ मैं और तुम;;;
हम दोनों में एक के बिछड़ने से पहेले,
साथ-साथ थोडा-सा जीवन,
जी लेने दो! अपना लो प्रियतम!
..............२००९
............................................शालिनीअगम.
जीवन की शाम होने से पहले,
उसमे कुछ सुनहेरी यादें जोड़ने दो!
रिश्ते की रात को गहराने से पहले,
शाम को मादक बन जाने दो!
उम्र के आखिरी पडाव पर आने से पहले,,
मेरे यौवन को भी महकने दो!
अरमानो के फूलों को मुरझाने से पहले,
उनकी स्मित सुगंध मुझे लेने दो!
लोगो की भीड़ में गुमने से पहले,
अकेले में............. सिर्फ मैं और तुम;;;
हम दोनों में एक के बिछड़ने से पहेले,
साथ-साथ थोडा-सा जीवन,
जी लेने दो! अपना लो प्रियतम!
..............२००९
............................................शालिनीअगम.
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