Friday, April 9, 2010

Pita ke liye

पिता के लिए,
गुप्त जी ने लिखा था कि,
राम तुम इश्वर नहीं मानव हो क्या?
पर मैं कहती हूँ पिताश्री
राम!
तुम न्मनव नहीं इश्वर हो क्या,
सदैव सहज,मुस्कान निस्प्रहिता,
मौन,उदात्त निस्संगता से,
अपने भीतर भरे लबालब स्नेह से भरे,
इस धरती पर,संबंधो पर,
स्नेह निर्झर से बहते.
मैं जानती हूँ, आपका मौन .

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