मचल जाते हैं मेरे हाथ कुछ लिखने को तुम पर
पिघलते जा रहे जज़्बात कुछ लिखने को तुम परलिखूँ काग़ज़ पे या शीशे के इस दिल में उतारूँ
बड़ी बेताब है ये रात कुछ लिखने को तुम पर
अब आये हैं महफ़िल तेरी कुछ
तो सुना कर जायेंगे
बेचैन दिल आवाज़ से अपना
बना कर जायेंगे
इक ज़ुल्फ़ भीगी सी महकती सी
बदन की ये नमी
अहसास अपनी तिश्नगी का हम
करा कर जायेंगे
ख़्वाबों मे आना और आकर यूँ
सताना रात-दिन
सपना नहीं इन ओज आँखों में
बुला कर जायेंगे
वो ओट में पलकों की छिप जाना
वो नजरों की हया
चिलमन सजा का आज हम दर से
हटा कर जायेंगे
वो मखमली बातें वो ख़्वाबों की
मुलाक़ातें अगम
है इश्क़ क्या ये रूबरू तुमको
दिखा कर जायेंगे
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