प्राकृतिक आपदाएँ प्रकृति दोहन का दुष्परिणाम
नामुराद औलाद पर क्रोध भरपूर है
न सुधरेगा ये कुपूत अगर अभी भी
सहनशक्ति उसकी चुकने पर मजबूर है
संसाधनों का दोहन क्यों करता जा रहा है
आभूषण माँ के क्यों बेच खा रहा है
अन्न-जल खाकर जिसका हुआ तू इतना बलि
उसी माँ की कोख तू क्यों जला रहा है
दुर्गा से काली बनी है आज ये भूमि माता
क्यों सब्र और ममता तू आजमा रहा है
शोषण किया है तूने सब तेल-ओ-खनिज का
बर्बाद कर दिया क्यों जल वसुंधरा का
पेड़-फूल-पत्तर सबका किया है दोहन
भूगर्भ सम्पदा भी करते हैं अब ये रोदन
विष पान कर रहें सारे प्राकृतिक संसाधन
रो रही है ये धरा और रो रहा है ये गगन
मत कर अवरुद्ध मार्ग तू उस कुदरत का
न छेड़ -छाड़ कर उस खुदा की नेमतों से
न रोक रास्ता उस बहती चंचल नदी का
न खोद बेदर्दी से सीना उस पाषाण का
क्यों काट रहा बेपरवाह हरे भरे जंगल
न फैला जहर तू अपने घर की हवा में
मान जा तू मान जा ओ रे पापी बेटा
न हो गर माँ बन जाये आज यूँ कुमाता
डॉ .शालिनी अगम
पी एच डी हिंदी साहित्य
1 comment:
देती है संदेशा मौन प्रकृति हमेशा से ही समझ न पाए यदि दोष कहो किसका --सोंच के विधाता ने रचा है सौर -चक्र खूब हम ही नशाये इसे नाश कहो किसका --तुलित धरा को हम बुद्धि का खिलौना मान खेल खेल खेलें यदि खेल कहो किसका --थोड़े से विवेक से क्या प्रलय रोक लेगें कहो हाथ में रहेगा कहाँ काल कहो किसका .--
Post a Comment