वृद्धावस्था में क्यों पड़ जातें हैं घर के वृद्ध अलग -थलग ?
सम्भ्रांत शब्द सुनते ही मन में एक छवि उभरती है जीवन की सांध्य से गुजरता व्यक्तित्व
सुबह व् दोपहर के बाद शाम में विचरता एक शख्स . .........जीवन की संध्या या सम्भ्रांत शब्द जीवन की विश्रांति बेला जो सुन्दर भी है और सुनहरी है जहाँ अनुभव की धूप की तपिश का तेज है चेहरे पर और बीते जीवन की कर्तव्यों को निभाने के पश्चात दिखाई देती हुई सफेद चांदनी है सिर पर
पर क्यों ? किसी किसी वृद्ध के चेहरे की तपिश तेज न बन जल कर उदासी व् अकेलेपन की कालिमा ओढ़ लेती है और बालों की सफेदी चांदनी न होकर मायूसी का समंदर बन जाती है ? क्यों वो सम्भ्रांत वृद्ध उम्र को जीता नहीं ढोता है हर दिन सुबह की शुरुआत होती है तो निराशा से ,हताशा से , या तो कुछ भी करने की ख्वाहिश ख़त्म हो गयी है … या बच्चे हर बार या तो ये कह कर रोक देते हैं की बजट नहीं खर्चे बहुत हैं अपने बच्चे पालें या आपके नखरे उठायें या फिर चुपचाप भजन पूजा में मन लगाओ अब आपकी उम्र नहीं ये सब करने की
उम्र ?? अनेको सवाल सैंकड़ों प्रश्न कौंध जाते हैं एक ही पल में उस थके हुए बूढ़े मन में
हाँ उम्र तो सारी बीत गयी तुम्हे बड़ा करने में और तुम्हारा करियर बनाने ,शादी ब्याह ,ज़मीन जायदाद देने में । अपने बुढ़ापे के लिए कुछ बचाया होता तो आज ये दिन न देखना पड़ता
हम भी तुम्हारी तरह स्वार्थी हो गए होते तो तुम लोग आज इस लायक न होते ....... जो आज अपने ही माँ-बाप को चार बातें सुना रहे हो
"बुढ़ापा " ,बुड्ढा खूँसट ,सठिया गया … जिससे बेचरापन ,बेबसी ,नि :सहाय , लाचार जैसी स्तिथि का ही आभास क्यों होता है … क्या वास्तव में स्तिथि ऐसी ही है जैसी दिखाई देती है । साठ के ऊपर की शख्सियत ,भरेपूरे घर का मालिक सब कुछ अपने हाथ से पैदा किया और आज असहाय
घर के एक बाहर वाले कमरे में अलग- थलग से पड़े रहना ही अब उसकी किस्मत है जैसे ,
रिटायर जो हो चुके हैं …………………
न कोई काम न कोई हस्तक्षेप घर में
एक पुराने फर्नीचर की तरह पड़े रहो बस
क्यों ?
ऐसा क्यों?
अभी हाथ -पैर पूरी तरह सही सलामत हैं । घंटों दोस्तों से बतिया सकते हैं
बागवानी कर सकते हैं
पूरी किताब एक रात में ख़त्म करने की एनर्जी है
घंटों टी वी देख सकते हो
ताश खेल सकते हो
मंदिर -मस्जिद पर घंटों घूम सकते हो
तो बताइये भला ……… बुड्ढे कहाँ से मान लिया अपने आप को आपने
क्यों न साबित कर दें अपने बच्चों को की आज भी तुमसे ज्यादा दम है इन बूढी हड्डियों में ....
पोता बिगड़ रहा है या पोती बहुत खर्च करती है कपडे या मेक-उप में
बहु की सहेलिया बहुत आती हैं घर में
बेटे का हाथ बहुत खुला है … अरे तो उससे आपको क्या मतलब है ?
क्यों बोलते हो सारा दिन जो बच्चों को पसंद नहीं । क्यों वही लाइफ स्टाइल देना चाहते हो जो आपने खुद जिया है
अगर आप सुबह ५-६ बजे सोकर उठे हो सदा और बच्चे ८ बजे से पहले बिस्तर नहीं छोड़ते तो ………… बुजुर्ग महाशय ये भी तो गौर फरमाइए न कि आप सो भी तो जाते थे ९ बजे से ही और आज की जेनेरेशन १२ बजे से पहले बिस्तर नहीं पकड़ती कारन चाहे देर रात की पार्टीस हों या बेटे का घर देर से आना या उसके प्रोफेशन की डिमांड या बहु के टी वी सीरियल और पिक्चरें
तो आप को क्या परेशानी हैं जब मर्ज़ी उठेंगे जब मर्ज़ी सोयेंगे आप ही रोज बोल बोल कर बुराइयां मोल लेते हो
बहु थाली में चार चीजें नहीं परोसती तो भूल जाओ न
इतनी महंगाई ऊपर से काम न करने की आदत संभव हो तो आप ही कुछ बना लो न किचन में जाकर .......... खुद भी खाओ और बच्चों को भी खिलाओ देखो कितना सुख मिलेगा …
अब आप यही बोलोगी कि " वाह्ह सारी ज़िन्दगी यही किया है । फिर इस उम्र में भी चूल्हा चौका करवा लो हमसे। . नहीं आंटी जी आप मुझे गलत न समझे मेरा कहने का मतलब है कि आप अभी कुकिंग कर सकती हैं और माशाल्लाह आपका बनाया खाना बहुत स्वादिष्ट भी होता है वो भी कितने काम बजट में .... जी चाहता है आपके हाथ चूम लें .... आपका बेटा कितना खुश होगा आपके हाथ से बना खाना खाकर … बहु भी दिन भर की थकी हारी आई है … अपनी माँ की याद भी नहीं आएगी अब उसे
और अगर बच्चे पिज़्ज़ा आर्डर कर रहें हैं या चाइनीज तो खाने दो उन्हें ……… आप भी चख लो थोड़ा सा पर अगर बच्चों को रोकोगे या टोकोगे तो वो सुनने वाले नहीं और अगर सुन भी लिया तो दोनों का ही मूड ख़राब आपका भी और उनका भी … यहाँ आपकी सहन शीलता की परीक्षा है ऐसे में कितनी बुद्धिमत्ता से शांति ला सकतें हैं मन में ये मुश्किल तो होगा पर नामुमकिन नहीं
फिर क्यों अलग थलग होकर बैठ जाती हो सारे घर से ………………… कितना अच्छा हो कि आप पोते-पोती की दादी नहीं सहेली ही बन जाओ उन्हें लेक्चर देने बजाय उन्हें समझो और उनका सुख-दुःख ऐसे बांटों … जैसे आप उन्ही की उम्र से गुजर रही हों याद करो अपने लडक-पन के दिन … क्या आपकी पोती बिलकुल वैसे ही नहीं लगती जैसे आप थीं इस उम्र में ,उसकी शरारतें उसका चुलबुलापन आप पर ही तो गया है न देखो फिर आपकी सोच उससे कितनी मिलेगी फिर वो आपसे दूर नहीं भागेगी वरन अपना हर सुख-दुःख आपसे शेयर करेगी
आजकल पढाई का प्रेशर भी तो कितना बढ़ गया है बच्चों पर ,फिर भविष्य की चिंता इस सबसे परेशान हो यदि वो कुछ ऐसा कर भी रहें हैं जो आपको पसंद नहीं तो गुस्सा न होकर उनके स्थान पर खुद को रख देख लिया जाये तो क्या हर्ज़ है अंकल जी
और अगर आपके हर संभव प्रयास के बाद भी बच्चे चाहते ही नहीं कि आप लोग एक घर शेयर करें तो ऐसी औलाद का तो फिर भगवान ही मालिक है । सब कुछ बच्चों पर न लुटाया हो तो उन्हें हर चल-अचल संपत्ति का मालिक कभी न बनायें अपने जीते-जी एक संस्मरण आपसे साझा करना यहाँ उचित होगा …
एक बार एक वृद्ध सज्जन स्वामी अखंडानंद सरस्वती महाराज के पास आये। वे कुछ दिन पूर्व किसी सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हुए थे। सालों पुराना रूटीन छूटा तो उन्हें लगने लगा कि घर पर रहता हूँ रोब -रुआब कुछ कम हो गया है बच्चे पहले जैसा धयान नहीं रखते हैं न ही डरते हैं उनसे। ....... वो स्वम् को उपेक्षित महसूस करने लगे । उन्हें लगता कि जैसे उनकी महत्ता ख़त्म हो गयी ,कोई उनको पूछता नहीं है उन्होंने स्वामी को जाकर अपनी परेशानी बताते हुए कहा कि 'स्वामी जी मुझे कोई ऐसा उपाय बताइये कि में अपने परिवार में ही बच्चों के बीच रहते हुए ,प्रभु -भक्ति में लगा हुआ सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकूँ। उनकी बात सुनकर स्वामीजी ने उन्हें कुछ बातें अमल करने को कहा पहली बात तो आप या आप जैसा कोई भी वयो-वृद्ध स्वम् को रिटायर माने ही नहीं , कभी खाली न बैठे , अपितु अपनी क्षमता अनुसार कोई भी काम-काज कर व्यस्त रहे (इस सदी के महानायक श्री अमिताभ बच्चन को ही देखें , आज भी कुछ कर गुजरने की अदम्य शक्ति रखते हैं )
कोई काम समझ न आये तो क्षमतानुसार समाज-सेवा में सलंग्न हो जाएँ।
सबसे बड़ी भूल होती है जब कोई सीनियर सिटिज़न खुद को नाकारा समझ घर में बैठकर बच्चों में कमिया निकालते हैं या स्वम् को बेबस मान लेतें हैं
दूसरा उपाय ये है कि इस उम्र में बोलें कम से कम …। और हस्तक्षेप तो बिलकुल ना करें अपने बच्चों के बीच में ....... कोई भी सलाह तब तक न दें . जब तक कि चार-बार खुद आकर बच्चे आपसे ना मांगें
अपनी बुद्धि व् शक्ति यूँ क्षीण न करें अपितु जो समय बच्चों को देखने ,रोकने- टोकने में खर्च किया वो अमूल्य समय अपने सेहत बनाने ,समाजोपयोगी कार्य में और अपनी मित्र-मंडली के साथ सैर करने और हंसने -हँसाने में बिताएं
सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपाय सहनशक्ति .......... वृद्ध व्यक्ति को बहुत अधिक सहन शील होना पड़ता है और उसी में उनकी मानसिक शांति छुपी है
स्वामी जी की ये सभी बातें उन वृद्ध सज्जन ने गांठ बांध लीं और आगे का जीवन अधिक शांति व् प्रेम से निर्वाह किया
कुछ एक पर्सेंट … बहुत ही पत्थर दिल संतान की अगर बात छोड़ दें तो ऊपर की गयीं बातों पर अगर हमारे बड़े बस थोड़ा सा ध्यान दें तो क्यों घर में अलग -थलग पड़े रहेंगे .... हमारे बड़े तो वो घने विशाल बरगद के वृक्ष हैं जिनकी छाँव पूरे परिवार को मिलती रहनी चाहिए हमारे बड़ों का आशीर्वाद सदा यूँ ही मिलता रहे इसी साथ …।
डॉ शालिनी अगम
एम ए पी एच डी हिंदी साहित्य
बी-१८२। . रामप्रस्थ कॉलोनी ग़ज़िआबाद २०१०११
संपर्क। . ९९९००१८९८९
@sweetangel twiter
स्पिरिचुअल हीलर ,रेकी ग्रैंड मास्टर ,
सकारात्मक सोच से कैसे लाएं जीवन मैं परिवर्तन खुशहाली व् सफलता इस विषय पर ४ किताबें … "अपना भाग्य निर्माता स्वॅम" पर आधारित मोटिवेशनल आर्टिकल प्रकाशित ,
नारी लेखन पर " सम्मान से लगातार वर्षों से सम्मानित ।
श्रृंगार पर आधारत दो किताबें ,
दो रेकी पर ,व्
एक पारिवारिक पृष्ठ भूमि पर केंद्रित दीर्घ कथा संग्रह
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हार्दिक बधाई ---जीवन में सकारात्मक परिवर्तन --के लिए प्रशासनीय .सराहनीय योगदान के लिए --दैवीय प्रेरणा -वरदान हैं आप ---सस्नेह धन्यवाद ---------------सीनियर सिटीजन -----स्वास्थ्य ,अर्थ ,अरु मानसिक विपदा भारी तीन --ईश कृपा जो बच रहे यही बुढ़ापा दीन ----मजबूरी उनकी यही हैं असमर्थ सुजान --पर शीतल छाया सुखद उनको लीजे मान ---सुख शांति घर में रहो मात -पिता के संग ---कभी अलग मत कीजिये नहीं कीजिये बंद ---लायिबिलटी वे हैं नहीं बृद्ध असेट्स है भाय --सीचोगे तरुवर यथा मिले सुखद फल खाय ---उन्हें उपेक्षित ना करें बच्चे लखते भाय --सीखेगे वे क्या भला देगें सब लौटाय --इसी दशा से आप भी गुजरेगे श्रीमान --सन्तति से जो चाहते करिए वही सुजान ---कहते जो खुद भी करो बना नए प्रतिमान --पीढ़ी मानेगी तभी उपदेशों का ज्ञान --बूढों को क्या चाहिए नहीं चाहिए ऐश --उन्हें उपेक्षित मत करो नहीं चाहिए तैश --बूढों को घर दीजिये सुखद नेह परिवेश --आशिष की पूंजी मिले सुंदर करो निवेश ---घर समाज कानून विधि सत्ता का कर्तव्य ---घर ,बाहर रक्खें सुखी ,स्वस्थ नवल हों नित्य .------हार्दिक शुभकामनायें .
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