पाण्डे जी ,
मेरी तुलना कामायनी की श्रृद्धा से कर आपने मेरा मान बहुत अधिक बढ़ा दिया है ......... जब भी श्रृद्धा को पढ़ा उनके अतुलनीय सौन्दर्य व् मधुर -मदिर हाव-भाव मेरे मन में ,मेरी कल्पना में ऐसे विचरते थे कि मानो वो एक विलक्षण व् अद्भुत सौन्दर्य -शालिनी चरित्र हैं आज स्वम् को उनके समान सुनकर पांव धरती पर नहीं पड़ रहे अद्भुत सा बड़ा ही रोमांचक क्षण है मेरे लिए स्वप्निल सा उपमेय व् उपमान की पराकाष्ठ पर श्रद्धेय व् श्रृद्धा से पूरित ........प्रसाद जी की मैं बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ .और मैंने भी "कामायनी " को अनेको बार पढ़ा हैं .......पर मैं उस ऊंचाई पर नहीं जहाँ वो है .................ये तो आपका बड़प्पन है ...........
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