Sunday, March 17, 2013

Dr.Shalini Agam


कुछ चीजें कभी नहीं बदलती
कुछ बातें सदा हैं चलती
केवल कुछ वचनों के बदले
 सम्पूर्ण जीवन बिता देते हैं
केवल कुछ भांवरों के बदले
तन-मन लुटा देते हैं
 क्यों अपना क्यों छोड़ दिया ?
हवन-कुंद की वेदी पर
अर्धांगिनी मान कर भी न माना
 पण्डितों के श्लोकों की गुंजन में
मेरे कोरे पवित्र मन को
 सिदूर की लाली से रंगने वाले
 छूकर भी मुझको कभी न छुआ
मैं हतप्रभ,
आश्चर्य से भरी हुई
ये क्या हुआ?
ये क्यों हुआ ?
हाथ देकर भी कभी हाथ न थामा
 साथी होकर भी कभी साथ न पाया
जो मेरा होकर भी मेरा कभी न हुआ
न चूड़ियों की खनक रोक पाई उन्हें
 न पायल की रुन -झुन खिंच पाई उन्हें
 न जिस्म की महक पास लायी उन्हें
न सांसों की गर्माहट पिघला पाई उन्हें
आँखें दूर तलक पीछा करती रहीं उनका
मौन -मन साथ पाने को तरसता रहा
 अपना सर्वस्व न्योछावर करके भी
किंचित!
अपना न बना पाई उन्हें 



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