Saturday, December 28, 2013
Wednesday, December 18, 2013
my
Esteemed n respected friends.........from
my literary world ..........that i am
blessed by "Nari ek Shakti .......face of
the year .....................award'.............cover
design made by famous n prestigious
"creation plus "...my special thnx to both ....
Thursday, November 21, 2013
प्रिय दोस्तों, आज आप सबको बताते हुए मुझे हर्ष की
अनुभूति हो रही है की अभी हाल ही में 17.11.2013
को आगमन क्लब द्वारा आयोजित काव्य गोष्ठी एवं
प्रथम मीटिंग जिसमें मैंने भी भाग लिया था से स
म्बंधित कार्यकर्म का प्रकाशन कई समाचार पत्रों में
हुआ है|अम्बाला (हरियाणा) से प्रकाशित होने वाले
प्रशिद्ध समाचार पत्र दिन-प्रतिदिन ने तो इसे अपने
प्रथम पृष्ठ पर स्थान देते हुए इस पर एक लेख लिखा
है|मैं वो सुंदर लेख आप सबसे बाँट रहा हूँ और आशा
करता हूँ कि आप सबको पसंद आएगा मेरी तरफ़ से
सभी उपस्थित कवियों और विशेषकर प्रशिद्ध फ़िल्मी
गीतकार एवं साहित्यकार डॉ धनजय सिंह तथा पवन
जैन जी को हार्दिक बधाई|आपका अपना मित्र-----
Wednesday, November 20, 2013
किसी भी पार्टी को वोट नहीं
पार्टी कोई भी जीते मासूम जनता का हाल तो सुधरने वाला नहीं
सिवाय सारे दल एक -दुसरे पर आरोप -प्रत्यारोप करते नजर आयेंगे
और अपने महल ही खड़े करेंगे ,बैंक -बैलेन्स बढ़ाएंगे , हमें क्या मिलना है "बाबाजी का ठुल्लु "??
क्या ये सब समस्याएं समाप्त हो सकेंगी ?
कुछ नहीं बदलना
स्तिथि वही रहेगी क्या ये सब बदलेगा ??
किसानो की दयनीय स्तिथि , अन्न-दाताओं की आत्महत्या
देश पर मर-मिटने वाले जवानो व् पुलिस के प्रति ध्यान
स्त्री शोषण, -यौन -उत्पीरण, स्त्री-सुरक्षा
महंगी -शिक्षा
केवल नेताओं व् घूस खोरों की जेब -गर्म
टूटी सड़कें ,महंगा खाना ,रिश्वत ,गंदगी ,अस्पतालों की कमी ,बिजली -पानी ,बुनियादी ज़रूरतें
अमीर और अमीर ,गरीब और गरीब
भरनी तो नेताओं कि जेबें ही हैं।
…फ़िर क्यों अपना कीमती समय बर्बाद करें मतदाताओं की लाइन में ,खड़े होकर ,वो समय अपने परिवार को दें
Dr.ShALINI Agam's famous article about extra marital affairs .....
स्त्री -पुरुष सम्बंध ………… आज के परिपेक्ष्य में
अनेको बार मन में प्रश्न उठते हैं कि प्रेम के आखिर कितने रूप हो सकतें हैं। कभी प्रेम स्पर्श है ,कभी सेक्स ,कभी जज्बात ,कभी शिकायत ,कभी उलाहना ,कभी तड़पना और तडपाना ,कभी बेरुखी ,कभी चिपटना ,कभी छिटकना ,कभी लड़ना ,कभी झगड़ना ,कभी उन्माद में सारी सीमायें तोड़ के आगे बहुत आगे निकल कर सारी सीमायें लाँघ जाना , ................ कभी समाज की दुहाई देकर मन के सारे आवेगों को रोक कर ,भावनाओं में बहते शरीर के सुख को पीछे धकेल बस तड़पते रह जाना। … कहीं कोई देख न ले। ………………। कहीं कोई जान न जाये …………………… बदनामी न हो जाये , ....... नहीं बस और नहीं , …………इससे आगे न छूना , ............. बस चुम्बन ही लेना , ……… बाकी अंग-प्रत्यंग , ................ कमसिन बदन न छूना। ........... सीमा न लांघना …… महीनों वर्षों किसी के लिए तड़पते रहना …………। तो कभी समाज के सामने पूर्ण रूप से स्वीकार्य ,सामाजिक सहमति प्राप्त , शादी शुदा होते हुए भी ,आपस में कई बार एक दुसरे को छूते हुए भी कोई फिलिंग नहीं, मानो मीलों की दूरी ,न साँसें तेज चलती हैं। …………. न मन अंगड़ाई लेता है ,न जिस्म आंहे भरता है ,न कुछ -कुछ होता है। …………. प्रेम के रूप भी कितने अनूप अपनी सेक्सी -हॉट बीवी को देखकर भी गुप्ता जी को कुछ नहीं होता वो बीवी …जिस पर मोहल्ले के सारे पुरुष जान देतें हैं या यूँ कहिये की हर पुरुष अपनी बीवी को उस जैसी देखनी चाहता है। … और वही श्रीमान गुप्ता साहब अपनी काम वाली के साथ रोज हमबिस्तर होतें हैं बीवी के ऑफिस जाने के बाद। यहाँ गुप्ता जी गलत नहीं। क्योंकि वो एक तो कोई ज़बरदस्ती नहीं कर रहे कामवाली के साथ ……दोनो की मर्ज़ी एक है ,,,,,,,,,,,दूसरे उन्हें प्रेम करने की इच्छा होती है तो अपने घर की देखभाल करने वाली ,पगार लेने वाली उस औरत से जो उनका ख़याल रखती है। …।और ये ख़याल रखते -रखते कब वो उनके मन से होती हुई तन पर भी राज करने लगी .दोनो को ही पता नहीं चला ………………………… तो क्या प्रेम समर्पण हैं ……………। या केवल आकर्षण मात्र। …ज़िसके प्रति आकर्षण हुआ। …वो लाख कमियों के बावजूद मन को भाता है। सुंदर न होते हुए भी सुंदर लगता है क़ुछ भी विशेष गुण न होने पर भी विशेष लगता है ………………. या कि बस त्याग है। ………………………. सेवा है ……………… हाँ शायद त्याग और सेवा ही है। …भारतीय विवाह (या हमारे देश जैसे बहुत सारे देशों के दंपत्ति) इसकी मिसाल हैं जहाँ प्रेम नहीं आकर्षण नहीं फिर भी जीवन भर निभा जातें हैं एक दूसरे के साथ …………. भोग अपने साथी को रहे होतें हैं पर मन में उसी क्षण कोई और चल रहा होता है कोई ऐसा जो बहुत आकर्षित करता है बड़ा लुभाता है ………………… जिसे या तो पाया नहीं जा सकता ……………… या कोई मजबूरी है …………। या फिर कि एक ही छत के नीचे रहतें हैं सारा जीवन पर अजनबियों कि तरह .......... न कोई शारीरिक सम्बंध न कोई भावात्मक लगाव ................ पर दंपत्ति हैं कि निभाए जा रहें हैं। .......... कभी सामने वाले का त्याग सोच कर या विवाह को कर्तव्य समझ कर ………………. हाँ तो फिर प्रेम कर्तव्य ही है मात्र ………………प्रेम कर्तव्य ही है ………………क्योंकि हमारे यहाँ शादी के बाद जीवन साथी से प्रेम हो न हो किसी और किसी से प्रेम हो ही नहीं सकता ………………. इज़ाज़त ही नहीं है ना ..........
.............................. .............................. ................
तुम्हारे गालों के ये डिंपल जान ले लेंगे किसी दिन मेरी
धत्त्त्त नंदिनी ने बनावटी गुस्से से देखा रूद्र की तरफ
हाय तुम्हारी ये मुस्कराहट मार डालेगी मुझे
मैं मुस्कुरा कहाँ रहीं हूँ थोडा संभल गयी वो
अच्छा ?????
इतना हैंडसम लड़का तुम्हे प्रोपोस कर रहा है तो थोडा मुस्कुरा ही दो
च्च्च्च कितने फ़िल्मी हो तुम
कहाँ थीं इतने दिनों से ??
कहाँ चली गयीं थीं ?
उसकी आँखों में प्रश्न तैर गया
तबियत ठीक नहीं थी मेरी
तो ??
तो क्या ..................
बता भी नहीं सकतीं थीं .............
हर दिन कितना इंतज़ार करता हूँ तुम्हारा
बस एक झलक के लिए बार-बार बाहर झांकता हूँ कि शायद कि तुम दिख जाओ बस एक बार .......
न जाने दिन में कितनी बार वॉट्स एप् पर तुम्हरी पिक को प्यार करता हूँ
घंटों तुम्हारी तस्वीर से बातें करता हूँ
पर तुम हो कि देखती भी नहीं मेरी ओर ऐसी भी क्या बेरुखी यार ?
अच्छा बताओ कैसी तबियत है अब ? मेरी जान निकल जाती है जब तुम गायब हो जाती हो और कोई रिप्लाई नहीं देती हो यार आशिक़ न सही दोस्त ही मान लो आई प्रोमिस कभी तुम्हारी मर्जी के खिलाफ नहीं जाऊंगा जब तक तुम एक कदम मेरी ओर नहीं बढ़ाओगी आई स्वेअर मैं भी खुद को रोक कर रखूँगा एक बार मुझे और मेरे प्यार को आज़मा कर तो देखो नंदू जान दे दूंगा तुम्हारे लिए
इतने दिनों से तुम्हारा दीवाना बना घूम रहा हूँ कुछ तो तरस खाओ
इतने बड़े मैनेजिंग डायरेक्टर की सड़क छाप मजनुओं जैसी हालत कर दी है तुमने यार कई बार लगता है कि इस दिल को ही निकाल फेंकूं सीने से जो सिर्फ तुम्हारे लिए ही धड़कता है
नंदू ने एक नज़र रूद्र के भोले मुखड़े पर डाली ………। और आगे बढ़ गयी मन मार कर
नंदू को उसकी बातें अच्छी तो लगतीं थी पर वो कोई रिएक्शन नहीं देती थी
ऐसा नहीं कि उसे प्रेम करने में आपत्ति थी या रूद्र की पर्सनालिटी उसे इम्प्रेस नहीं करती थी
पर वो मजबूर थी क्योंकि वो शादी -शुदा थी ............. कमिटिड थी ............. ऐसी शादी में जहाँ उसका हस्बैंड सिवाय उसके हर लड़की को प्यार करने के लिए रेडी था अपने पति की हर गर्ल-फ्रेंड को वो जानती थी आये दिन कोई न कोई चीज़ ,कोई न कोई सबूत पति के खिलाफ मिल ही जाता था ................... पर वो चुप थी ............. घर व् बच्चों की खातिर ……………
रूद्र का प्रणय -निवेदन वो कैसे स्वीकार कर ले .......??
क्या गारंटी थी कि रूद्र दो बच्चों की माँ को बस इस्तेमाल करके नहीं छोड़ देगा .... उसके साथ दगा नहीं करेगा ............. अगर वो पति को छोड़ती है तो उसे अपना लेगा ??
शादी -शुदा है वो भी .......... सो उसे अपनाने का तो सवाल ही नहीं उठता फिर क्यों रोज-रोज प्यार -व्यार का इज़हार करता रहता है …। इश्क फरमाता रहता है ??
उसका दिमाग खराब करने के लिए ……
और दूसरी ओर महत्पूर्ण बात ये है कि नंदिनी आत्म -निर्भर नहीं है चलों कुछ पलों के सुकून के लिए वो रूद्र की बात मान भी ले तो एक तो अपने ही पति से दगा होगा ( चाहे पति जी खुद कितने करम करके बैठे हों )
दूसरे अगर पतिदेव ने इसी बिना पर रिश्ता ख़तम कर दिया तो जो एक घर मिला है रहने के लिए वो भी छिन जायेगा बदनामी होगी सो अलग ………। बच्चे भी उसी को दोष देंगे ………… उसकी स्तिथि तो ऐसी हो जायेगी न घर की ............. न घाट की ।
नंदिनी ने एक फैसला लिया पहले रूद्र को अपने फ़ोन में ब्लाक किया और फिर चैन कि सांस ली मेरा नसीब …………… जो प्यार पति से मिलना चाहिए था .......... वो किसी और से मिल तो रहा है पर इस कीमत पर नहीं …य़े दुनिया शायद मर्दों की ही है .... पचास औरतों को छूकर मेरा पति घर आता है फिर भी मैंने उसे अपना रखा है ……… उनमे से कुछ मेरे जैसी भी हैं शादीशुदा ............. अच्छे से जानती हूँ …… उनकी हिम्मत है ,निडर हैं इसलिए कुछ पल जी लेती हैं ,यकीन कर लेती हैं कि उन्हें भी कोई पसंद करता है ,परित्यक्ता होते हुए भी अकेली नहीं हैं हम ……………… पर मेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं ............. मन को दृढ़ करती हुई घर का रास्ता पकड़ा …… रात भर बस एक विचार ही मन में चलता रहा … कि स्त्री -पुरुष सम्बन्धों कि ये कैसी विडम्बना है कि दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे भी है .......... एक दूसरे के पूरक भी है ……पर ये पूर्णता पूरी करने के लिए समाज के दायरों में बंधना भी कितना ज़रूरी है और शर्म व् सीमा के परदे भी कितने ज़रूरी हैं … क्या हमेशा से यही होता रहा है समाज में .... या आजकल की ही हवा ऐसी बह चली है जहाँ पर -स्त्री या पर -पुरुष सम्बन्धों कि ज़रुरत आन पड़ी है । क्या ये सही है ??? मर्यादित है ??
अगर ये सही नहीं तो फिर क्यों आये दिन ऐसे रिश्ते देखने सुनने में आने लगे हैं ………। क्या साथी …………… या यूँ कहें कि मन का मीत पाने की ज़िद ही ऐसे काम को अंजाम देती है जहाँ अभी खुलकर न सही पर दबे -छिपे कोई न कोई दिल हथेली पर लेकर बैठा है ……………बस सहमति मिलनी चाहिए …… और अधिकतर विवाहित स्त्री -पुरुष ??
अविवाहित स्त्री-पुरुषों के लिए सब कुछ मान्य है …। जीवन साथी का चुनाव भी …। प्रेम भी दोस्ती भी ....... पर विवाहित ……। अगर एक का भी मन नहीं है अपने साथी में ................... तो दोनों कि ही ज़िन्दगी ख़राब ... तब ऐसी शादी को न निगलते बनता है और न उगलते और तब सिलसिला चलता है एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर्स का जिसे सामाजिक मान्यता नहीं जिसकी कोई पहचान नहीं जिसका कोई भविष्य भी नहीं श्रुति जो बरसों से अपने ही घर में ,अपने ही पति के साथ ,अजनबियों की तरह दिन काट रही थी उसके मन की पीड़ा को कोई न समझ सका पति को वो अनचाही व् बोझ लगा करती थी ,रिश्तों में न मधुरता थी न प्रेम एकतरफा प्रेम की कितनी मिटटी पलीत होती है इस दर्द को केवल वो ही समझ सकता है जिसने इसको भीगा हो ऐसे में श्रुति एक बार बहुत बीमार पड़ी और इलाज के दौरान अपने ही डाक्टर के करीब आ गयी पतिदेव को ये बात बर्दाश्त नहीं हुई और फिर शुरू हुआ एक अंतहीन क्लेश का सिलसिला श्रुति ने पूछा अपने पति से कि जब तुम्हे मेरी ज़रुरत ही नहीं तो आज़ाद कर दो न मुझे चुचाप पड़ी रह घर में बाहर निकली तो टाँगें तोड़ दूँगा शर्म नहीं आती बेहया बेशरम को घर की इज्जत नीलाम कर रही है घुट-घुट कर जी रही है श्रुति और मर-मर कर जी रहा है उसका पति न तलाक लेने की हिम्मत है दोनों में न अलग होने की वजह चाहे कुछ भी हो पर बिना प्यार के जीवन -साथी सिवाय बोझ के और कुछ नहीं
डॉ स्वीट एंजेल की बहुत प्रसिद्ध ,सुंदर व् सार्थक प्रणय व् अनुराग को दर्शाती कुछ रचनाएँ जिन्हें अनेको पत्र -पत्रिकाओं ने सम्मानित व् प्रकाशित किया है …. दिल को छूती रचना बधाई बहुत बहुत
बस … यूँ ही ख्यालों में
बीत जातें हैं लम्हे कई
तू ……… तो नहीं पास मेरे
पर तेरी रेशमी यादें सुरमई
गुदगुदा जाती है वो छुअन तेरी
कसमसा जाती है धड़कन मेरी
तू भी तो याद करता होगा
मेरी सांसों की महक कहीं
डॉ स्वीट एंजेल की बहुत प्रसिद्ध ,सुंदर व् सार्थक प्रणय व् अनुराग को दर्शाती कुछ रचनाएँ जिन्हें अनेको पत्र -पत्रिकाओं ने सम्मानित व् प्रकाशित किया है …. दिल को छूती रचना बधाई बहुत बहुत
जहाँ एक ओर प्रकृति साक्षी है हर भाव अनुभाव की तो दूसरी ओर सोशल नेटवर्किंग साईट को प्रेम प्रदर्शन का एक सशक्त माध्यम माना है। …
काश ……………
काश ……………
मेरी याद-दाश्त खो जाये
काश
मैं भूल जाऊँ कि तू कौन है
काश
मैं फिर से खुद को अकेला समझ
सपने कुछ बुनूँ अपने प्यार के
काश
मैं सुन ही न पाऊँ अपने दर्द की कहानी
काश
जान ही न पाऊँ कि ये आँखें अचानक क्यों भर आयीं
काश
आसक्ति से विरक्ति की ओर कभी जा ही न पाऊँ
काश
तू मुझे मिले और मुझे पहचान ही न पाए
कि फिर से हम प्रेम भरे गीत गायें
काश
तू नए रूप -रंग में आकर
फिर से रंग दे अपने ही रंग में
काश
फिर जन्म ले कर तुझे फिर से पा जाऊँ
काश
कि तुझे पाने की मेरी जिद ही
हमारे पुनर्मिलन का कारण बन जाये
Tuesday, November 19, 2013
a very touching creation by poetess Dr.Shalini Agam ...
सिर्फ तुम
और तुम्हारा वो अगणित प्रेम
जानकार भी क्यों न जान पाया कभी
आकाश में खिंचा हुआ
वह दो पलकों का इंद्रधनुष
चीखकर जब भी रोया
तुम्हारी दो अलकों के बीच
रजत-चन्द्र सा वो मुखड़ा
तड़पकर जब भी तड़पा
समझ ही न पाया
उस एक मनुहार को
जो
अमृत के रस सा था
जो पूज्य था
पावन और पवित्र था
वाणी में दर्द तुम्हारा
रह -रह कर
कांपता सा था
तुम्हारे सपनों का
वो इंद्र -धनुष
मुझ आकाश की ओर
कितनी बेताबी से ताकता था
पर एक अज्ञात झिझक
मेरे अहम की
रोक देती थी मुझको
तुम्हारे अस्तित्व को
समेट लेने से
तुम्हारी अनलिखी वो पाती
न पढ़ सका कभी
तुम्हारे नयनों में
कभी भी
न गढ़ सका
प्रणय -पलों को
तुम्हारे प्रेमसिक्त अधरों में
न घोल सका
प्रीत अपने अधरों की
ओ-दिव्य-रूपिणी
न मद-मस्त हो सका
उस पुष्प-गंध में
जिसका स्पर्श मेरी आत्मा में
उतरने को व्यथित था
न जान सका कभी
कि देह की भाषा
देह द्वारा ही पढ़ी जा सकती है
स्पर्श ही है वो संजीवनी
जो प्रेम -जीवन में
प्राण फूंकता है
काश के सिर्फ तुम
और तुम ही
मुझे जिला पातीं
अपने मधुर स्पर्श से
अपनी देह से मेरी देह को
स्वाँसों का अमृत पिला पातीं
या मैं ही समझ पाता
देह से तिक्त
इस एकाकी मन की
तुम्ही हो वो अमृत धारा
तुम्ही तो हो वो
चैन वो सहारा
तुम्ही तो हो
सिर्फ तुम तुम्ही तो हो
a very famous writes up of Dr.Shalini Agam ...in many leading news papers .........
सत्यागृह का अमोघ अस्त्र
चुप्पी
सौ बातों का एक ही उत्तर
चुप्पी
दीर्घ ,अविचलित चुप्पी
विचलित कर देती है मुझको
उद्वेलित कर जाती दिल को
जब तक बोलती रहीं
ध्यान ही नहीं गया
तुम पर कभी
मैं बेखबर ,बेसबर
हर शब्द को करता रहा अनसुना
तुम्हारे शब्द कानो से टकरा कर
गिरते रहे ,खोते रहे
पर आज
तुम्हारी ये चुप
दिल में सीधे उतरती जा रही है
बैचैनी में तुमने जो भी कहा
सुना ही नहीं कभी मैंने
फिर आज तुम्हारे मौन से इतना
बेचैन क्यों हूँ ????
Thursday, October 17, 2013
स्वीट एंजिल को मिला प्रशंसकों का ढेर सा प्यार व्
आदर। …
२०१३ की बहुचर्चित ब्लोगर डॉ स्वीट एंजिल
…………।
- प्रिय डॉ स्वीट ,स्वत:स्फूर्त शब्द तुम्हारी लेखनी से ऐसे झरते हैं जैसे कोई झरना हिमालय से चला आ रहा हो ,कही कोई व्यवधान नहीं ,………………… एक प्रशंसक
, स्वीट बेटा सदा ऊंचाईयों को छूओ ,तुम योग्य पात्र हो …………………डॉ धीरेद्र सहाय
Teri khubsurti ko meray alfaaz chu
nahin
saktay...,Hujoom-E-Husn mein tum
so mpls hv faith in u and almighty and ur Guru Maa and family
aagaman ki brand ambassdor ho
aapka gol chehra hai jaise puranmasi ka chand
बहुत सुन्दर
डॉ स्वीट एंजिल
सदा खुश रहो, मेरी दुआ सदा तुम्हारे साथ है!"
Chasmebadoor lagti ho..!!!
tumne sabit kar diya ki tum sachmuch kitini talented
ho
kyon tumhara naam sweet angel hai....by mr. Jain
sweet
mujhe tumhari talent pe pura pura yakeen hai............
aagaman ki brand ambassdor ho
aapka gol chehra hai jaise puranmasi ka chand
बहुत सुन्दर
डॉ स्वीट एंजिल
सदा खुश रहो, मेरी दुआ सदा तुम्हारे साथ है!"
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