Monday, September 30, 2013

many prizes winner this poem has been selected for a leading magazine .......name "women empowerment "

पर हृदय में एकांत कितना

अभी तक जी रही थी
सिर्फ एक एकांत
घर में बहुत भीड़ है
पर मन में है एकांत
इस एकांत को तोड़ने
अभी तक न कोई आया था
खलबली तो मचा गए सभी
अपने .........???????
कभी तानो की
कभी अपमान की
कभी तिरस्कार की
कभी प्रताड़ना की
कभी मेरे कर्तव्यों की
ये करो, ये न करो
ऐसे करो ,वैसे करो
मुह मत खोलो
किसी से मत बोलो
अधिकारों की बात ही मत करो
बस कर्तव्य ही निभाते जाओ
चारों ओर शोर इतना
पर हृदय में एकांत कितना
................................
पर ऐसे में आपका आना
आप में देखा
एक सरल भाव
एक अपनापन
आपने बताया तो जाना
हाय ......................
मैं भी एक इन्सान हूँ
इच्छाएं मेरी भी हैं ....
हाँ ...........
ये सलोनी खिलखिलाहट
ये आशा-उमंग मेरे मन में भी हैं
रे पागल मन
तू भी गाता है….

पैर तेरे भी हैं
जो थिरकना चाहते हैं
तन तेरा भी चाहता है झूमना
शायद किसी के आलिंगन में
या शायद किसी के मद भरे गीतों में ....
बिखरे हुए मोतियों की
माला को गूंथने का एक साहस
एक हौंसला ,एक सहारा
एक एहसास ,एक साथी
एक सरल व्यक्तित्व
आश्चर्य-जनक ,प्रतिभाशाली
स्वंत्र-विचारों का सहायक
कोई अपनों से अधिक अपना ........
............पर पराया ...

2 comments:

Shukla Prabhat said...

Dr.Sweet .......really a most loving heart and a achiever and hardworking...

Anonymous said...

कल्पनातीत ,
अपूर्व-सुंदर ,
मन-मोहक,
दैवीय -संपदा,
इश्वरीय - आशीर्वाद
स्वरुप आपके शब्द ........

ऋतुपर्ण दवे बहुत - बहुत आभार, निःशब्द हूं इतने बड़े सम्मान के लिए.