तुम्हारी आँखें उन आँखों का ज़िक्र करतीं हैं,
फकीर हो गए जिनकी तलब में शहजादे !
आज फिर कुछ इसी तरह फिर से कोई,
बोला मुझसे..........
क्या बात कहूं उन आँखों की,
जिन आँखों प़र मै मरता हूँ,
वो आँखें झील सी आँखें है,
जिनमे डूब के रोज उभरता हूँ,
कोई आंसूं न आये इन नैनों से,
बस इतनी दुआ मै करता हूँ.
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पल पंख लगा कर उड़ गए ,
एक जन्म में दो-दो बार मिला,
प्यार से भी ज्यादा प्यार,
फिर भी कितना ख़ाली-ख़ाली सा,
लगता है ये मोरा जिया.
डॉ.शालिनिअगम
१० जून २०१०
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1 comment:
bahut sunder magar udaas ?
dr.shalini nice poem
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