Sunday, June 27, 2010

DR.SHALINIAGAM (शुभ आरोग्यं )काश उत्सव आ जाए


काश! उत्सव आ जाए ,
दीये ही दीये जल जाएँ ,
फूल ही फूल खिल जाएँ,
जो मैने जाना, मैंने जिया ,
मैंने पहचाना .........
कुछ न मिला...................
काश!
भीतर मेरी आत्मा का स्नान हो जाये ,
भीतर में स्वच्छ हो जाऊं ,
भीतर में आनंदमग्न हो जाऊं........
डॉ.शालिनिअगम
www.aarogyamreiki.com

2 comments:

Dr.Dhananjay Mishra said...

dr sahiba ... u r gem of a person beauty with brain.. so rare to find....

Pankaj Vadhara said...

आह! कितनी दिलकश अभिव्यक्ति दी है आपने
pholon ki smit sugandh ....