Friday, April 9, 2010

Mere Apne

''मेरे अपने,
'कुछ गुमसुम से,
कुछ चुप-चुप से,
निर्निमेष शून्य में
तकते है!
अपने इसी व्यक्तित्व से
क्षण भर में ही
मोह लेते है''
१९८९
..................शालिनीअगम

2 comments:

anonymous said...

OOOOOOOOOOO
CHHHHHH
YYYYYYUUUUUUUUPPPPPPP
EXILLENT YAAR

एक प्रशंसक said...

हे सुन्दरी,
तुम श्रधेय हो ,
अति सुंदर कविता ,
अभिनन्दन..........