प्रसन्नता ही हमारी संजीवनी है .........
मेरी एक अन्तरंग सहेली जो अत्यंत दुखी ,निराश, अनिंद्रा और अपच का शिकार थी उसने निश्चय किया की वह अब मेरी तरह ही हँसेगी,हर हाल में खुश रहेगी . दिन में हर -पल बस वही बातें सोचेगी जिससे हसीं आये.
भले ही उसके पास हँसने का कोई उपयुक्त कारण हो न हो .
अपने आस-पास का माहौल खुशनुमा बनाये रखेगी. उसने मुझसे पूछा ,"डॉ.शालिनी अगर मैं मन से दुखी हूँ ,तो कोशिश करने प़र भी मुझे हंसी नहीं आती ,मैं क्या करूँ .." तब मैंने उसे निम्न बातें समझायीं ...........और परिणाम -स्वरुप वह धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगी ,उसके परिवारजन उसमे आये बदलाव के कारण आश्चर्य में पड़ गए. पहले-पहल तो उन्हें कुछ समझ नहीं आया पर धीरे -धीरे घर का माहौल बदलने लगा और सभी दिल खोलकर हँसने लगे .............. हर - पल दुखी दिखने वाला परिवार आज सबसे ज्यादा खुश दिखाई देता है .
अब आप पूछोगे की मैंने उसको क्या बताया........??????
१- हँसें .....रोग से मुक्ति मिलती है और रुग्ण व्यक्ति के शरीर में नई शक्ति का संचार होता है .
२- प्रसंन्न-चित्त व्यक्ति हमेशा तरोताजा रहता है.,हँसने से आयु बढती है. ,उत्साह में वृद्धि होती है ,कार्य-शक्ति बढती है .
३-प्रसन्नचित्त व्यक्ति को सभी लोग पसंद करतें है,क्योंकि उनके दिल में कपट,द्वेष, ईर्ष्या , और बैर-भाव समाप्त हो जाता है .क्योंकि जिसने अपने ह्रदय में बैर-भाव को स्थान दिया होता है, वह व्यक्ति ,खुलकर नहीं हँस सकता
४- मानसिक स्वास्थ्य के लिए किसी तार्किक प्रक्रिया की अपेक्षा खूब जोर से हँसना अधिक हितकारी होगा.
५-अत्यधिक शारीरिक श्रम,ठण्ड में रहना और पानी में भीगना,आलसी स्वाभाव और नशा यह सब मनुष्य के घोर शत्रु हैं किन्तु इससे भी बड़ा शत्रु है चिडचिडा स्वाभाव .वह व्यक्ति जिसे जरा -जरा सी बातों प़र क्रोध आया करता है, उसका जीवन दूभर हो जाता है वह अपने साथ अपने आस-पास वालों के लिए भी मुसीबत बन जाता है. वह न तो खुद सुख से रह पता है न किसी को रख पाता है.
६-रोते कुढ़ते व्यक्ति को कोई भी पसंद नहीं करता,हर नज़र को मुस्कराहट अच्छी लगती है.
७- हमेशा याद रखे की उन्मुक्त हँसीं हमारे और हमारे परिवार-जनों के लिए बेहद लाभ-कारी औषधि है.
८-प्रसन्नता संजीवनी है,हँसना परमात्मा प्रदत्त औषधि है,हँसने से दिल की धड़कन बढती है, फेफड़ों में स्वच्छ वायु जाती है,खूब जोर-जोर से हँसने से चेहरे और मस्तिष्क में रक्त-प्रवाह तेजी से होता है तथा चेहरे प़र लालिमा व् निखार आता है,बुद्धि तीव्र होती है .
९-उस दिन को बेकार समझो जिस दिन तुम खुलकर हँसें नहीं...........
शरीर-विज्ञानं का निष्कर्ष है की सभी संवेदन-शील नाड़ीयां आपस में जुडी रहतीं हैं और जब उनमें से कोई एक नाड़ी समूह मस्तिष्क की ओर कोई बुरा समाचार ले जाता है तो उससे आम नाड़ीयाँ भी प्रभावित होतीं है,विशेष कर उदर की ओर जाने वाला नाड़ी-समूह तो अत्यधिक प्रभावित होता है,परिणाम- स्वरुप इससे अपच हो जाता है. इसका प्रभाव मनुष्य के चेहरे प़र भी पड़ता है जिससे चेहरा निस्तेज हो जाता है,उत्साह मंद पद जाता है,और कुछ भी करने की इच्छा नहीं होती.
१०-परफेक्ट लाइफ किसी की नहीं होती ,हर किसी के पास दुखी रहने की वज़ह हैं ....प़र उनसे निकलना ही बहादुरी है........
धन कमाने की हवास,दूसरों से होड़ करने की सोच , "हमेशा अपना काम और दूसरों का ज्यादा "देखने की प्रवत्ति ,दूसरों की उन्नति से जलना -कुढ़ना ,व्यर्थ की चिंताएं ,काल्पनिक दुर्घटनाओं से भयभीत रहना ,हमेशा अपने अंदर ही कमी निकलते रहना .........ये ऐसे विचार हैं जिससे मनुष्य हँसना -मुस्कुराना ही भूल गया है.
११- प्यारे मित्रों ! हँसीं जीवन का मुख्य अवयव है. जिसके जीवन में हँसीं नहीं ,वह मृत्यु-तुल्य है . हँसना जीवन का एक ऐसा संगीत है जिसके बिना जीवन एकदम नीरस है ,हँसना एक आनंद-दायी एहसास है .
मेरी एक अन्तरंग सहेली जो अत्यंत दुखी ,निराश, अनिंद्रा और अपच का शिकार थी उसने निश्चय किया की वह अब मेरी तरह ही हँसेगी,हर हाल में खुश रहेगी . दिन में हर -पल बस वही बातें सोचेगी जिससे हसीं आये.
भले ही उसके पास हँसने का कोई उपयुक्त कारण हो न हो .
अपने आस-पास का माहौल खुशनुमा बनाये रखेगी. उसने मुझसे पूछा ,"डॉ.शालिनी अगर मैं मन से दुखी हूँ ,तो कोशिश करने प़र भी मुझे हंसी नहीं आती ,मैं क्या करूँ .." तब मैंने उसे निम्न बातें समझायीं ...........और परिणाम -स्वरुप वह धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगी ,उसके परिवारजन उसमे आये बदलाव के कारण आश्चर्य में पड़ गए. पहले-पहल तो उन्हें कुछ समझ नहीं आया पर धीरे -धीरे घर का माहौल बदलने लगा और सभी दिल खोलकर हँसने लगे .............. हर - पल दुखी दिखने वाला परिवार आज सबसे ज्यादा खुश दिखाई देता है .
अब आप पूछोगे की मैंने उसको क्या बताया........??????
१- हँसें .....रोग से मुक्ति मिलती है और रुग्ण व्यक्ति के शरीर में नई शक्ति का संचार होता है .
२- प्रसंन्न-चित्त व्यक्ति हमेशा तरोताजा रहता है.,हँसने से आयु बढती है. ,उत्साह में वृद्धि होती है ,कार्य-शक्ति बढती है .
३-प्रसन्नचित्त व्यक्ति को सभी लोग पसंद करतें है,क्योंकि उनके दिल में कपट,द्वेष, ईर्ष्या , और बैर-भाव समाप्त हो जाता है .क्योंकि जिसने अपने ह्रदय में बैर-भाव को स्थान दिया होता है, वह व्यक्ति ,खुलकर नहीं हँस सकता
४- मानसिक स्वास्थ्य के लिए किसी तार्किक प्रक्रिया की अपेक्षा खूब जोर से हँसना अधिक हितकारी होगा.
५-अत्यधिक शारीरिक श्रम,ठण्ड में रहना और पानी में भीगना,आलसी स्वाभाव और नशा यह सब मनुष्य के घोर शत्रु हैं किन्तु इससे भी बड़ा शत्रु है चिडचिडा स्वाभाव .वह व्यक्ति जिसे जरा -जरा सी बातों प़र क्रोध आया करता है, उसका जीवन दूभर हो जाता है वह अपने साथ अपने आस-पास वालों के लिए भी मुसीबत बन जाता है. वह न तो खुद सुख से रह पता है न किसी को रख पाता है.
६-रोते कुढ़ते व्यक्ति को कोई भी पसंद नहीं करता,हर नज़र को मुस्कराहट अच्छी लगती है.
७- हमेशा याद रखे की उन्मुक्त हँसीं हमारे और हमारे परिवार-जनों के लिए बेहद लाभ-कारी औषधि है.
८-प्रसन्नता संजीवनी है,हँसना परमात्मा प्रदत्त औषधि है,हँसने से दिल की धड़कन बढती है, फेफड़ों में स्वच्छ वायु जाती है,खूब जोर-जोर से हँसने से चेहरे और मस्तिष्क में रक्त-प्रवाह तेजी से होता है तथा चेहरे प़र लालिमा व् निखार आता है,बुद्धि तीव्र होती है .
९-उस दिन को बेकार समझो जिस दिन तुम खुलकर हँसें नहीं...........
शरीर-विज्ञानं का निष्कर्ष है की सभी संवेदन-शील नाड़ीयां आपस में जुडी रहतीं हैं और जब उनमें से कोई एक नाड़ी समूह मस्तिष्क की ओर कोई बुरा समाचार ले जाता है तो उससे आम नाड़ीयाँ भी प्रभावित होतीं है,विशेष कर उदर की ओर जाने वाला नाड़ी-समूह तो अत्यधिक प्रभावित होता है,परिणाम- स्वरुप इससे अपच हो जाता है. इसका प्रभाव मनुष्य के चेहरे प़र भी पड़ता है जिससे चेहरा निस्तेज हो जाता है,उत्साह मंद पद जाता है,और कुछ भी करने की इच्छा नहीं होती.
१०-परफेक्ट लाइफ किसी की नहीं होती ,हर किसी के पास दुखी रहने की वज़ह हैं ....प़र उनसे निकलना ही बहादुरी है........
धन कमाने की हवास,दूसरों से होड़ करने की सोच , "हमेशा अपना काम और दूसरों का ज्यादा "देखने की प्रवत्ति ,दूसरों की उन्नति से जलना -कुढ़ना ,व्यर्थ की चिंताएं ,काल्पनिक दुर्घटनाओं से भयभीत रहना ,हमेशा अपने अंदर ही कमी निकलते रहना .........ये ऐसे विचार हैं जिससे मनुष्य हँसना -मुस्कुराना ही भूल गया है.
११- प्यारे मित्रों ! हँसीं जीवन का मुख्य अवयव है. जिसके जीवन में हँसीं नहीं ,वह मृत्यु-तुल्य है . हँसना जीवन का एक ऐसा संगीत है जिसके बिना जीवन एकदम नीरस है ,हँसना एक आनंद-दायी एहसास है .
6 comments:
i can't write something like u, but i enjoy in reading, so plz send me whenever you write something
hi, thanks jagran junction ko maine favorite mein add kar liaya hai
because i like you
dr.shalini for you....................
'Good friends are like stars...
You don't always see them, But you know they are always there
:)00)
"If you wish the world to become loving and compassionate, become loving and compassionate yourself. If you wish to diminish fear in the world, diminish your own. These are the gifts that you can give.
WELL DONE..............DR.SHALINI
BAHUT SUNDER
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