नमस्ते भारतवर्ष ,
कभी-कभी हम सब थोडा सोचने बैठें ,तो हमें महसूस होगा कि हमारी अनेक असफलताओं का कारण हमारा भय रहा है.डर के कारण ही हम अनेक कार्यो को अंजाम देना तो दूर उस प़र विचार भी नहीं कर पातें.भयभीत होते ही व्यक्ति का उत्साह और प्रसन्नता दूर भाग जाते है,जहाँ डर होता है वहां मस्ती और प्रसन्नता एक पल के लिए भी नहीं टिक पाती ,घबराया हुआ इंसान क्या खाक जियेगा वो तो डर-डर कर ही मरे समान हो जाता है।
डर ,भय, संशय सब किसी न किसी सीमा तक कार्य-शक्ति में रूकावट पैदा करतें है.न व्यक्ति खुल कर जी पाता है,न अपने विचार व्यक्त कर पाता है यहाँ तक कि अपनी योग्यता भी अनेक बार डर के कारण सिद्ध नहीं कर पता, परिणाम स्वरुप सफलता के द्वार स्वं ही बंद कर लेता है।
अपने उपर विश्वास न होने से हम अपनी योग्यताओं को स्वं ही दबा देतें है.भय से आत्म-शक्ति तो कम होती ही है,सफलता -प्राप्ति में सहायक तत्व भी प्राय: नष्ट हो जातें हैं ।
शेक्सपियर ने भी लिखा था कि "हमारे संशय ही हमें सबसे अधिक धोखा देतें हैं । इन्हीं के कारण हमारे अधिकार से वे वस्तुएं निकल जातीं हैं जिन्हें हम सफलता पूर्वक प्राप्त कर सकते थे , परन्तु संशय और डर की वृत्ति के कारण सफलता में संदेह से हम उन वस्तुओं को प्राप्त करने का प्रयत्न नहीं करते।
अत्यधिक भयभीत लोगों के शरीर और कार्य-क्षमता प़र भी विपरीत प्रभाव पड़ता है । वैज्ञानिकों का मानना है कि
भय के कारण रक्त -कोशिकाएं धीरे-धीरे निर्जीव पड़ने लगतीं हैं,और पाचन -क्रिया पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है।
कभी गौर करें तो हम पाएंगे कि बचपन से ही हम अपने बच्चों में भय के बीज बोते रहतें है,धीरे-धीरे उन्हें कायर बना देते है,आज न जाने कितने युवक-युवतियां जरा-जरा सी बात प़र काँप जातें हैं ।
साहस,हिम्मत,आत्मनिर्भरता,आत्मनियंत्रण और सहन-शक्ति ,निर्भयता सफलता के प्रधान गुण है, लेकिन केवल भय के कारण ये सब कुंद पद जातें है ।
डॉ.फेरियानी ने कहा था"जीवन में साहस का आधार बाल्यकाल में दी गयी भावात्मक प्रेरणाएं ही होतीं है।"
हमें बच्चों को सिखाना है कि जो कुछ प्रकाश में है,वही अंधकार में भी है,तो बच्चों का भय सहज ही दूर किया जा सकता है.विपरीत परिस्थतियों में सबसे अधिक नुकसान पहुँचाने वाली स्तिथि वह है जब मनुष्य के मन में भय की भावना पैदा होती है।
तो अब मेरे प्यारे भारतवर्ष ...............भयभीत कभी न हों
हताशा और निराशा भरी बातें करने वालों से दूर रहें
मार्गों के अवरोधों के लिए पहले से ही तैयार रहें
हमसे है जमाना ,ज़माने से हम नहीं
डर के कारण उद्देश्य हीनता की स्तिथि पैदा न होने दें ।
dr..shaaliniagam
directer & founder
Shubh Aarogyam
tthe spiritual reiki healing & training center
E- 4/30 Krishna Nagar Delhi-51
www.aarogyamreiki.com
9212704757
कभी-कभी हम सब थोडा सोचने बैठें ,तो हमें महसूस होगा कि हमारी अनेक असफलताओं का कारण हमारा भय रहा है.डर के कारण ही हम अनेक कार्यो को अंजाम देना तो दूर उस प़र विचार भी नहीं कर पातें.भयभीत होते ही व्यक्ति का उत्साह और प्रसन्नता दूर भाग जाते है,जहाँ डर होता है वहां मस्ती और प्रसन्नता एक पल के लिए भी नहीं टिक पाती ,घबराया हुआ इंसान क्या खाक जियेगा वो तो डर-डर कर ही मरे समान हो जाता है।
डर ,भय, संशय सब किसी न किसी सीमा तक कार्य-शक्ति में रूकावट पैदा करतें है.न व्यक्ति खुल कर जी पाता है,न अपने विचार व्यक्त कर पाता है यहाँ तक कि अपनी योग्यता भी अनेक बार डर के कारण सिद्ध नहीं कर पता, परिणाम स्वरुप सफलता के द्वार स्वं ही बंद कर लेता है।
अपने उपर विश्वास न होने से हम अपनी योग्यताओं को स्वं ही दबा देतें है.भय से आत्म-शक्ति तो कम होती ही है,सफलता -प्राप्ति में सहायक तत्व भी प्राय: नष्ट हो जातें हैं ।
शेक्सपियर ने भी लिखा था कि "हमारे संशय ही हमें सबसे अधिक धोखा देतें हैं । इन्हीं के कारण हमारे अधिकार से वे वस्तुएं निकल जातीं हैं जिन्हें हम सफलता पूर्वक प्राप्त कर सकते थे , परन्तु संशय और डर की वृत्ति के कारण सफलता में संदेह से हम उन वस्तुओं को प्राप्त करने का प्रयत्न नहीं करते।
अत्यधिक भयभीत लोगों के शरीर और कार्य-क्षमता प़र भी विपरीत प्रभाव पड़ता है । वैज्ञानिकों का मानना है कि
भय के कारण रक्त -कोशिकाएं धीरे-धीरे निर्जीव पड़ने लगतीं हैं,और पाचन -क्रिया पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है।
कभी गौर करें तो हम पाएंगे कि बचपन से ही हम अपने बच्चों में भय के बीज बोते रहतें है,धीरे-धीरे उन्हें कायर बना देते है,आज न जाने कितने युवक-युवतियां जरा-जरा सी बात प़र काँप जातें हैं ।
साहस,हिम्मत,आत्मनिर्भरता,आत्मनियंत्रण और सहन-शक्ति ,निर्भयता सफलता के प्रधान गुण है, लेकिन केवल भय के कारण ये सब कुंद पद जातें है ।
डॉ.फेरियानी ने कहा था"जीवन में साहस का आधार बाल्यकाल में दी गयी भावात्मक प्रेरणाएं ही होतीं है।"
हमें बच्चों को सिखाना है कि जो कुछ प्रकाश में है,वही अंधकार में भी है,तो बच्चों का भय सहज ही दूर किया जा सकता है.विपरीत परिस्थतियों में सबसे अधिक नुकसान पहुँचाने वाली स्तिथि वह है जब मनुष्य के मन में भय की भावना पैदा होती है।
तो अब मेरे प्यारे भारतवर्ष ...............भयभीत कभी न हों
हताशा और निराशा भरी बातें करने वालों से दूर रहें
मार्गों के अवरोधों के लिए पहले से ही तैयार रहें
हमसे है जमाना ,ज़माने से हम नहीं
डर के कारण उद्देश्य हीनता की स्तिथि पैदा न होने दें ।
dr..shaaliniagam
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