
कभी सम्मानित कभी अपमानित होती हूँ मैं
घर की लक्षमी बन मान पाती हूँ
छोटो के अपनत्व से भीगते हुए
बडो से आदर मान पाती हूँ मै
घर को सजाती-खुशिओं को बरसाती
पाती की बांहों में सिमट जाती हूँ मैं
बच्चो की किलकती हँसी में हूँ मै
सास-ससुर के आशीर्वादों मे हूँ मैं
पर अचानक एक दिन उस तीसरी
के जुड़ने पर सिलसिला शुरू हुआ ,
अपमानों का दिल का चैन बोझ बन गई,
सम्मानित-अपमानित होती रही॥
मखमली स्पर्श? कांटे लगने लगा ,
कुछ तो कमी थी जो दूसरी के पास गया
मेरा बेटा तो बस निभा रहा था किसी तरह
माँ मे ही कमी थी पापा तो बहुत अच्छे है............
टूटती- बिखरती -समेटती रही
चुप-चुप आंसू बहाती रही, क्योकि
सम्मानित-अपमानित होती हूँ मै
फिर एक दिन बाहर वाली ने दे दिया धोखा
मन की नही,तन की नही, पैसे की निकली पुजारिन
बेहोशी टूटी याद आई बीबी
पछतावा दो दिलो को फिर से जोड़ गया
सारे रिश्ते अचानक बदल गए
हमसफ़र के अपनाते ही
सम्मानित होने लगी हूँ
क्योकि..........................
सम्मनित -अपमानित होती हूँ मैं ।
......................dr.shaliniagam
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