Sunday, April 18, 2010

सौंदर्य का सार

सौंदर्य का सार
सौंदर्य ........................................
भला लगता है नेत्रों को,
सुखद लगता है स्पर्श से,
सम्पूर्ण विश्व एक अथाह सागर ,
जिसमें भरा है सौंदर्य अपार ,

हर चर-अचर हर प्राणी ,
सौंदर्य को पूजता है बारम्बार !
सौंदर्य का कोष है पृथ्वी-लोक ,
सौंदर्य का भण्डार है देव- लोक,
प्रत्येक पूजित-अपूजित व्यक्ति,
कल्पना करता है तो केवल ,
सौंदर्य को पाने की ,
परन्तु......................
ऐसे कितने मिलते हैं यंहा ,
जो रूपता-कुरूपता को,
समान पलड़े प़र तोलते हैं ,
जो चाहतें हैं मानव-मात्र को
मानते हैं दोनों को समान?शायद कुछ एक- ही ,
कहीं ये एक समझौता तो नहीं ,
अपने को सर्वश्रेष्ठ दिखाने का,
औरों से भिन्न कहलाने का,
कोई प्रयत्न तो नहीं ?
नहीं!.......................
ये कठोर सत्य है.
वे वस्तुत: प्रेमी हैं ,
मन कि सुन्दरता के,
शारीरिक सौंदर्य जिन्हें ,
भटकता नहीं है,
वास्तविक जिंदगी से दूर,
उन्हें ले जाता नहीं है;

डॉ.शालिनीअगम
1989

4 comments:

???????????? said...

सौन्दर्यमयी सुश्री शालिनी ,
अहो भाग्य ! जो आपकी सुंदर रचना पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ .
भविष्य में भी इसी प्रकार क्रियाशील रहिएगा.
आपका प्रशंसक

A SWEET FAN said...

SWEET SI SHALINI KO SWEET SA PYAR
SWEET KAWITA KE LIYE

dr.husain said...

शालिनीजी,
ब्लॉग कि इस दुनिया का गौरव हो तुम,
ब्लॉग के असमान का सितारा हो तुम,
ब्लॉग के तख्तो-ताज की मल्लिका हो तुम,
डॉ. हुसैन

dr said...

शालिनीजी,
ब्लॉग कि इस दुनिया का गौरव हो तुम,
ब्लॉग के असमान का सितारा हो तुम,
ब्लॉग के तख्तो-ताज की मल्लिका हो तुम,
डॉ. हुसैन