Friday, December 26, 2014

dr.shalini agam .. welcome 2015 .happy new year



नूतन वर्षाभिनंदन
नव कल्पना ,नव सर्जना ,सुख-शांति ,नव हो भाग्य -विधान
भाईचारा ,बंधुत्व ,प्रेम  ,उन्नति , सहयोग  मेरा भारत महान
आनंदित  करे आपको दे असीमित हर्ष,
मंगलकारी   , प्रफुल्लित  हो मित्र नवल वर्ष !........
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं आप सबको सपरिवार कुछ नया सोचें, कुछ नया
करें बस चलो किसी का घर भर दें खुशियों का बना समंदर कोई उसके जीवन को तर
कर दें।
चलो आज सांता बन जाएँ
एक पोटली खुशियों की ले
किसी की मुस्कराहट बन जाएँ
निकल पड़ें चलो उन रास्तों पे
जहाँ किसी के काम आ जाएँ
भर ली है मैंने तो आज ये झोली
शाल,कम्बल,ऊनी स्वेटर से
ठिठुरते बदनों को चलों ढांप आयें
केक -कैंडी बाँट स्वाद उनका चखाएं हम
पॉकेट मनी से किसी घर का राशन भर आएं हम
प्रेम,प्यार सद्भाव बस यही अस्त्र अब मेरे
चलो नफरत,ईर्ष्या ,द्वेष मिटा आएं हम
सुख-दुःख अपना बाँट लेंगे आधा-आधा
घर तक ही सीमित नहीं बाहर आंसूं पोंछ आएं
चलो आज सांता बन जाएँ
डॉ शालिनी अगम {डॉ स्वीट एंजेल }
पी  .  एच  . डी  हिंदी साहित्य
स्पिरिचुअल हीलर ,रेकी ट्रेनर

Monday, December 8, 2014

nari hona abhishap hai kya? ... by dr shalini agam

..... "women express".1st daily newspaper in the world based on women empowerment .........
..'क्या नारी होना एक अभिशाप है ? '
'४५ वर्षीय बिहारी दलित स्त्री  ' लालपरी देवी ' जिसे समस्त समाज के  समक्ष एक पेड़ बाँध कर ,सिर मुंडवा कर कंकर  पत्थरों से मारा गया।
भारत में हर वर्ष सैंकड़ों महिलाओं को कुलटा व् डायन होने का ख़िताब दे दिया जाता है  . उन्हें पीड़ित किया जाता है , शारीरिक व् मानसिक यातनाएं दी जाती हैं ,  उन्हें इतना सताया जाता है कि वो विवश हो स्वॅम को समाज की भक्षक कहने लगें और सबके बीच खुद को 'डायन ' मान लें  ह्रदय विदारक उत्पीड़न झेलतीं हैं  निर्दोष तत्कथिक 'डायन' 
'डायन शब्द सुनकर अजीब नहीं लगता हम सबको     
कौन होतीं हैं  ये  स्त्रियां ? 
 सचमुच नरपिशाचीनी  राक्षसनी  जैसी ? 
 जैसी दन्त कथाओं व् पौराणिक कथाओं में उल्लिखित हैं।  
झारखण्ड ,ओड़िसा ,हरियाणा ,दक्षिणी भारत के अनेक राज्यों ,आन्ध्र -प्रदेश इत्यादि प्रदोषों में  इस तरह की घटनाएँ आमतौर पर सामने आतीं हैं 
सूत्रों  के अनुसार सबसे अधिक पीड़ा पहुँचायी जाती है धनी विधवा को , निशाना बनाया जाता है उस स्त्री को जो अकेली रह रही हो ,सम्पत्ति हड़पने  चक्कर में ,उसकी चल -अचल संपत्ति को गलत ढंग से छीना जाता है ,षड्यंत्र रच कर बहुत ही वीभत्स तरीके से इन्हे मजबूर किया जाता है। इन्हे बेरहम यातनाएँ दी जातीं हैं,मल -मूत्र खाने पर  विवश किया जाता है ,निर्वस्त्र कर सारे  गाँव में घुमाया जाता
 है , किसी वृक्ष से बाँध कर ,सर मुंडवा कर ईंट -पत्थरों से लहू -लुहान कर दिया जाता है  
उनके साथ बलपूर्वक  जायदाद के पेपर पर हस्ताक्षर ले या अंगूठा लगवा कर , अनेको बार उनका सतीत्व हरने के पश्चात जान से मार दिया जाता है ,
अब सवाल ये उठता है कि  , 'ये हम किस समाज में रह रहें हैं ?
क्या इस अमानवीय व्यवहार की कोई सज़ा है ? इस तरह की घटनाओं से तो यही प्रतीत होता है  कि कुछ (सब पुरुष अत्याचारी नहीं होते ) विकृत मानसिकता वाला पुरुष -प्रधान समाज ही इसका उत्तरदायी है  , या राजनैतिक चालें  ? 
या फ़िर  स्त्री-वर्ग को दोयम -दर्ज़े का प्राणी मान लेने की घुटन व् पीड़ा  ? 
प्रेम ,त्याग,अवमानना ,तिरस्कार   न जानें कितनी सुखद -दुखद  क्रियाओं-प्रक्रियायों से गुज़रती है
एक स्त्री  . 
शक्ति व् अबला से आबद्ध स्त्री की अंतहीन दुर्दान्त यात्रा का वर्णन एक लेखक अपनी क़लम से कर सकता है या फिर एक पाठक प्रतिकिर्या स्वरुप अपने सम्पर्क में आयी सभी स्त्रियों को उचित मान-सम्मान  दे सकता है।  पर उस पशु -बुद्धि का क्या करें  जो सब कुछ जान कर भी अपने स्वार्थ के लिए जान कर भी अनजान बने रहते हैं और ढाते रहते हैं ज़ुल्म अबलाओं पर 
इसे हम संस्कारों की कमज़ोर पकड़ कहें या दुष्ट प्रवृत्ति जहाँ नारी -उत्पीड़न घर की चार -दिवारी से ही शुरू होता है  , माँ से अपमान -जनक शब्दों में बात करना ,माँ-बाप घर के अन्य वरिष्ठ सदस्यों की अवमानना करना  ,पत्नी  ,बहन बेटी  पर हाथ उठाना।  
जो घर पर अपनी माँ-बहन की इज़्ज़त नहीं कर सकता वो बाहर किसी और की बेटी से दुश्व्यवहार नहीं करेगा इसकी कोई गारंटी नहीं 
हम ही हैं सामाजिक प्राणी    और हमसे ही पनपतें हैं हैं कुछ जहरीले पौधे जो धीरे -धीरे विष -वृक्ष बन जातें हैं 
हमारी सृष्टि में आधी सत्ता नारी  की है आधी पुरुषों की  । दोनों की ही समान भागीदारी है इस दुनिया को चलाने की    ……………… फिर क्यों  …………………………………… जिस मुख से नारी को प्रेम और सौंदर्य की प्रतिमा माना जाता है , उसको सौभाग्यशालिनी की पदवी दे कर आसमान पर बिठाया जाता है ,सम्मान-पूर्वक घर की लक्ष्मी बना कर गृहस्थ -जीवन की नीव डाली जाती है  ....... एक पत्नी -व्रती होने का वचन लिया जाता है , फिर कैसे वो ही पुरुष किसी परायी -नारी पर बुरी नज़र डाल कर उसके साथ कुत्सित व्यवहार कर डालता है  ,, क्या चलता होगा उस वक़्त उसके मन में 
एक नारी को 'प्रेयसी ' या 'पत्नी ' बना ,उसे दिव्य-रूपिणी ,आत्मा की संगिनी कहकर उसे इतना मान देता है कि सृष्टि की सारी उपमाएँ फीकी पड़ जाती हैं ,सारे रिश्ते पवित्रता भर जातें हैं और स्त्री ये सब मान पाकर खुद को गौरान्वित महसूस करती है ,  ....... दूसरी ओर उसी स्त्री से जन्मा पुरुष   ……… पौरुष दिखा   ………… बलपूर्वक ,हठपूर्वक प्रारम्भ करता है घोर तिरस्कार ,घोर अत्याचार  . बन जाता है कठोर ,निरंकुश 

डॉ शालिनी अगम